Sharad Purnima Hindi – पढ़िए शरद पूर्णिमा व्रत कथा मावे के पेड़ा वाली कथा, शरद पूर्णिमा 2022
|| शरद पूर्णिमा पूजन विधि : ||
श्री शरद पूर्णिमा व्रत के लिये सर्वप्रथम पूजन सामग्री की तैयारी करे जिसमें श्री नर्मदा जल (यदि सुविधा से उपलब्ध हो तो) अगरबत्ती,दूबा ,हवन सामग्री ,कपड़ा ,नारियल,पान,सुपाड़ी,हल्दी, रोरी,चंदन,धूप,कपूर,घी,जवा,चावल,तिली,केला,खीर,पेडा,दूध,दही,पंचमेवा,फूल,माला,शक्कर आदि की व्यव्स्था करे |उसके बाद पूजन कार्य शुरु करे |
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|| श्री शरद पूर्णिमा व्रत कथा || Sharad Purnima Hindi ||
बहुत पुराने समय की बात है की श्री नारद मुनि नारायण-नारायण कहते हुए विष्णु लोक पहुचे श्री विष्णु भगवान की स्तुति वंदना भक्ति भाव पूर्ण रूप से करने लगे तब भगवान विष्णु प्रसन्न होकर प्रगट हुए और बोले हे मुनि श्रेष्ठ केसे याद किया |तब नारद जी बोले हे प्रभु आप तो सब जानते हो हम क्या चाहते है, प्रभु मुस्कुराये और बोले हे मुनि श्रेष्ठ आप ही वर्णन करे नारद बोले जैसी आप की आज्ञा प्रभु मै मृत्युलोक से चला आ रहा हूँ वहा मानव की व्यथा देखी नहीं गई प्रभु बोले आप क्यों दुखी हो रहे है ,यह सब कर्मो के फल है, हे नारद मुनि सुनो मै तुमको शरद पूर्णिमा के व्रत को बताता हूँ जिसको विधि पूर्वक करने से कष्ट दूर होते हैं | सो तुम ध्यान लगाकर सुनो|
मथुरा नगरी में सुभद्रा नाम की ब्राम्हणी रहती थी वह शरद पूर्णिमा का व्रत रखती थी भगवान जी उससे प्रसन्न हुए एवं वरदान देते हुए कहा, इसकी विधि विधान सभी को बताइए| तब वह एक साहूकार को यह व्रत की विधि बताती है साहूकार ध्यान से सुनने लगता है ,सुभद्रा बोली मै शरद पूनो का व्रत करती हूँ यह उशी का फल है साहूकार ने पूछा इसकी विधि क्या है सुभद्रा बोली एक लकड़ी के पटा पर एक लोटा पवित्र जल भरकर रखे एक रोली से स्वास्तिक चिन्ह लोटे पर बनाइए इसके बाद पीतल के गिलास में गेहू के दाने भरकर रख दे |गिलास पर दक्षिणा रखे इसके बाद स्वयं तिलक लगावे इसके बाद ढाई पाव शक्कर ढाई पाव खोवा दोनों को मिलाकर छ: पड़े बनावे इसके बाद पूजन कर एक पेड़ा प्रभु को चढ़ावे दूसरा पेड़ा स्वयं (पतिदेव) ग्रहण करें| तीसरा पैदा अपने मानदान को दें जैसे भांजे , भानज, नन्द, बहिन आदि को दिया जाएगा चौथा पेड़ा अपनी सहेली से बदलें यदि सहेली न बदले तो मन्दिर में चढ़ावे जो सहेली छ: माह व्रत रखे उसे ही पेड़ा दें, पाचवा पेड़ा घर के सदस्यों को बाटे | छटवा पेड़ा के छ: भाग बनाइये |
- (1)तुलसी को चढ़ावे
- (2)गौ माता को खिलावे
- (3)अहीर को देवे
- (4)गर्भवती स्त्री को देवे
- (5)राहगीर बालक को देवे
- (6)कुवारी कन्या को खिलावे |
इस प्रकार छ: पेड़ा वितरित करे | लोटे में रखे जल को चंद्रोदय के समय चंद्रमा को जल चढ़ावे | घर जाकर साहूकार ने पत्नी को व्रत रखने के लिए कहा जब उसकी पत्नि ने व्रत की विधि पूछी तो साहूकार ने व्रत की विधि समझाई तब उसने व्रत रखना आरुम्भ कर दिया जिसका कहा जब उसकी पत्नि ने व्रत को विधि पूछो व्रत को विधि समझाई तब व्रत शुरू कर दिया जिसका फल यह मिला साहूकार के यहाँ दो कन्याओं का जन्म हुआ। बड़ी का नाम सावित्री और छोटी का नाम चन्द्रमुखी दोनों पूजन कार्यों में बहुत रूचि रखती थीं एवं प्रतिदिन पूजन करती थीं।
यह देखकर कुछ समय बाद दोनों का ब्याह सम्पन्न घराने में कर दिया गया। दोनों बहिनें शरद पूनों का व्रत रखती थीं। सावित्री विधि विधान से व्रत रखती थी। अतः उसे सुन्दर संतान की प्राप्ति हुई इसके विपरीत चन्द्रमुखी अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण यह फल हुआ उसके पुत्र कुछ दिन जीवित रहकर स्वर्ग सिधार जाते थे। इस कारण चन्द्रमुखी दुखी रहती थी आखिर एक दिन चन्द्रमुखी एक ज्योतिषी से इसका कारण पूछती है तब ज्योतिषी ने कहा तुम अधूरा व्रत रखती हो इस कारण तुम्हारी संतान स्वर्ग को प्राप्त करती है। अत: तुम बड़ी बहन सावित्री से विधि विधान पूछकर व्रत रखो क्योंकि सावित्री विधि विधान से पूजा करती है एवं श्रद्धा से करती है।
प्रत्येक वर्ष की तरह शरद पूनों फिर आई चन्द्रमुखी फिर अधूरा व्रत करती उसका पुत्र फिर मृत्यु को प्राप्त हुआ चन्द्रमुखी ने अपने मृत पुत्र को पटा पर लिटा दिया जिस पर वह पूजा करती थी। संयोग से प्रभु इच्छा से उसकी बड़ी बहन सावित्री उसी दिन घर पर आयी।
उसने तुरंत प्रभु का नाम लेकर मृत बालक के सिर पर हाथ फेरा तो वह जीवित हो उठा। चन्द्रमुखी खुशी से नाच उठी। तब उसे शरद पूनों व्रत का महत्व समझ में आया। उसने तुरंत प्रभु से क्षमा मांगी बारंबार प्रभु के चरण स्पर्श किये और कहा ऐसी भूल अब कभी न होगी। साथ ही सभी पड़ौस में सगे संबंधियों का यह व्रत करने की सलाह दी व व्रत की विधि विस्तार पूर्वक समझाने लगी। अतः इस व्रत के करने से प्रत्येक स्त्री व पुरुष सभी की मनोकामना पूरी हो जाती है। जय हो लक्ष्मीनारायण की जय हो चन्द्रदेव की से-चन्द्रमुखी की इच्छा पूर्ण हुई वैसे सबकी इच्छा पूरी करें। इति श्री
— शरद पूर्णिमा व्रत कथा —