Karwa Chauth Vrat – लोगो को त्योहारों से सम्बंधित बहुत से सन्देह है जैसे करवा चौथ कब है तो जैसा सभी जानते है करवा चौथ व्रत हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। यह भारत के विभिन्न राज्यों में जैसे: जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला विशेष पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती स्त्रियाँ मनाती हैं। पति की शुभ कामनाओ के लिए इस दिन विशेष पूजन, प्रार्थना और अर्चना की जाती है करवा चौथ की कहानी में चार कहानियां वर्णित है जिसका वर्णन हम यहाँ कर रहे तो आइये कथा पूजन और प्रभु स्मरण में ध्यान लगाये :-
नोट :- करवा चौथ व्रत कहानी चार कहानियां सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए पूजा विधि और आरती सहित हमने यहाँ लिखी है|
करवा चौथ व्रत का महत्त्व – Karwa Chauth Vrat Mahatv.
जो सौभाग्यवती स्त्रियाँ इस करक चतुर्थी का व्रत करके सायंकाल विधि विधान से पूजन करेंगी, वे अचल सौभाग्य, धन, पुत्र तथा बड़े भारी यश को प्राप्त करेंगी। ‘करक’ इस मंत्र को पढ़कर दुग्ध अथवा जल से भरा कलश लेकर उसमें पंचरत्न डालकर ब्राह्मण को दें और कहें कि हे गणेश जी ! इस कर ‘करवा’ के दान से मेरे पति बहुत काल तक जीवित रहें, मेरा सौभाग्य बना रहे। सुहागिन स्त्रियों को भी दें और उनसे लें भी। इस प्रकार से सौभाग्य की इच्छा करने वाली स्त्रियाँ, जो भी इस व्रत को करेंगी वह सौभाग्य, पुत्र तथा अचल लक्ष्मी को प्राप्त करेंगी। कहा जाता है कि इसे पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी ने भी किया था।
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करवा चौथ पूजन विधि सामग्री – Karwa Chauth Vrat Vidhi.
व्रत की विधि – यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष को चन्द्रोदय चतुर्थी को ‘करवा चौथ ‘ कहते हैं । इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ चावल पीसकर, दीवार पर करवा चौथ बनाती हैं, जिसे ‘वर’ कहते हैं ।
इस करवा चौथ में पति के अनेक रूप बनाये जाते हैं तथा सुहाग की वस्तुएँ, जैसे – चूड़ी, बिन्दी, बिछुआ, मेंहदी और महावर आदि के साथ-साथ दूध देने वाली गाय, करूआ बेचने वाली कुम्हारी, महावर लगाने वाली नाइन, चूड़ी पहनाने वाली मनिहारिन, सात भाई और उनकी इकलौती बहन, सूर्य, चन्द्रमा, गौरा और पार्वती आदि देवी-देवताओं के भी चित्र बनाये जाते हैं ।
सुहागिन स्त्रियों को इस दिन निर्जल व्रत रखना चाहिए। रात्रि को जब चन्द्रमा निकल आये, तब उसे अर्घ्य देकर भोजन करना चाहिए। पीली मिट्टी की गौरा बनाकर उसकी पूजा करनी चाहिए ।
(नोट:- यदि दीवार पर करवा चौथ बनाने में कोई असुविधा हो तो करवा चौथ का चित्र बाजार से लाकर दीवार पर चिपकाया जा सकता है।
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करवा चौथ व्रत कथा कहानी – Karwa Chauth Vrat Katha Kahani.
करवा चौथ व्रत-कथा 1 –
एक साहूकार था जिसके सात बेटे और एक बेटी थी | सातों भाई व बहन एक साथ बैठ कर भोजन करते थे|एक दिन कार्तिक की कृष्ण पक्ष की चौथ का व्रत आया तो भाई बोला की बहन आओ भोजन करे|बहन बोली की आज करवा चौथ का व्रत है, चाँद उगने पर ही खाऊगी |
तब भाइयो ने सोचा की चाँद उगने तक बहन भूखी रहेगी तो एक भाई ने दिया जलाया,दूसरें भाई ने छलनी लेकर उसे ढंका और नकली चाँद दिखाकर बहन से कहने लगा की चल चाँद निकल आया है –अर्ध्य दे लें |बहन अपनी भाभियों से कहने लगी की चलो अर्ध्य दें ,तो भाभिया बोली,तुम्हरा चाँद उगा होगा हमारा चाँद तो रात में उगेगा | बहन ने अकेले ही अर्ध्य दे दिया और खाना खाने लगी तो पहले ही ग्रास में बाल आ गया, दूसरे ग्रास में कंकड आया और तीसरा ग्रास मुँह तक किया तो उसकी ससुराल से संदेशा आया कि उसका पति बहुत बीमार है जल्दी भेजो |
माँ ने जब लड़की को विदा किया तो कहा की रास्ते में जो भी मिले उसके पांव लगना और जो कोई सुहाग का आशीष दे तो उसके पल्ले में गाँठ लगाकर उसे कुछ रूपये देना|बहन जब भाइयों से विदा हुई तो रास्ते में जो भी मिला उसने यही आशीष दिया की तुम सात भाइयो की बहन तुम्हारे भाई सुखी रहें और तुम उनका सुख देखो|
सुहाग का आशीष किसी ने भी नही दिया | जब वह ससुराल पहुँची तो दरवाजे पर उसकी छोटी नन्द खड़ी थी, वह उसके भी पाव लगी तो उसने कहा की सुहागिन रहो ,सपूती होओं उसने यह सुनकर पल्ले में गाठ बांधी और नन्द को सोने का सिक्का दिया|तब भीतर गई तो सास ने कहा कि पति धरती पर पड़ा है,तो वह उसके पास जाकर उसकी सेवा करने के लिए बैठ गई |
बाद में सास ने दासी के हाथ बची – कुची रोटी भेज दी इस प्रकार से समय बीतते – बीतते मार्गशीष की चौथ आई तो चौथ माता बोली –करवा ले, करवा ले ,भाईयो की प्यारी बहन करवा ले | लेकिन जब उसे चौथ माता नही दिखलाई दी तो वह बोली हे माता ! आपने मुझे उजाड़ा है तो आप ही मेरा उध्दार करोगी | आपको मेरा सुहाग देना होगा | तब उस चौथ माता ने बताया की पौष की चौथ आएगी, वह मेरे से बड़ी है उसे ही सब कहना | वही तुम्हरा सुहाग वापस देगी | पौष की चौथ आकर चली गई , फाल्गुन की चली गई, चैत्र ,वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, भादों की सभी चौथ आयी और यही कहकर चली गई की आगे वाली को कहना |असौज की चौथ आई तो उसने बताया की तुम पर कार्तिक की चौथ नाराज है, उसी ने तुम्हरा सुहाग लिया है ,वही वापस कर सकती है ,वही आएगी तो पाव पकड़ कर विनती करना | यह बताकर वह भी चली गई |
जब कार्तिक की चौथ आई तो वह गुस्से में बोली –भाइयों की प्यारी करवा ले ,दिन में चाँद उगानी करवा ले, व्रत खंडन करने वाली करवा ले, भूखी करवा ले, तो यह सुनकर वह चौथ माता को देख कर उसके पांव पकड़कर गिडगिडाने लगी | हे चौथ माता !मेरा सुहाग तुम्हारे हाथो में है – आप ही मुझे सुहागिन करे | तो माता बोली –पापिन ,हत्यारिन मेरे पांव पकड़कर क्यों बैठ गई |तब वह बोली की जो मुझसे भूल हुई उसे क्षमा कर दो, अब भूल नहीं करुगी, तो चौथ माता ने प्रसन्न होकर आखो का काजल,नाखूनों में से मेहदी और टीके में से रोली लेकर छोटी उंगली से उसके आदमी पर छीटा दिया तो वह उठकर बैठ गया और बोला की आज मै बहुत सोया |
वह बोली – क्या सोये,मुझे तो बारह महीने हो गये, अब जाकर चौथ माता ने मेरा सुहाग लौटाया |तब उसने कहा की जल्दी से माता का पूजन करो| जब चौथ की कहानी सुनी, करवा का पूजन किया तो प्रसाद खाकर दोनों पति –पत्नी चौपड़ खेलने बैठ गये |नीचे से दासी आयी, उसने दोनों को चौपड़ पांसे से खेलते देखा तो उसने सासु जी को जाकर बताया |तब से सारे गांव में यह बात प्रसिद्ध हो गई की सब स्त्रींया चौथ का व्रत करे तो सुहाग अटल रहेगा |
जिस प्रकार से साहूकार की बेटी का सुहाग दिया उसी प्रकार से चौथ माता सबको सुहागिन रखना | यही करवा चौथ के उपवास की सनातन महिमा है |
– करवा चौथ माता की कहानी – कथा 1 समाप्त –
करवा चौथ की कहानी कथा 2
अति प्राचीन काल की बात है एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तप करने के लिए नील गिरी पर्वत पर चले गये थे |इधर पांडवों पर अनेक मुसीबतें पहले से ही थी |इससे द्रोपदी ने शोक विहल हो ,कृष्ण उपस्थित हुए और पूछा –कहो !क्या कष्ट है तुम्हें ?
प्रभु !द्रोपदी ने हाथ जोड़कर कहा –“मुझे क्या कष्ट है आप तो स्वयं जानते है |आप तो अन्तर्यामी हो मुझे कष्टो के बोझ ने विहल कर दिया है |क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे इन कष्टो से छुटकारा मिल सकें ?
“तुम्हारा प्रशन अति उत्तम है द्रोपदी !”कृष्ण मुस्करा कर बोले |
“प्रभु !फिर मुझ दुखी नारी का कष्ट दूर करने का उपाय बताइए? द्रोपदी ने कहा –श्रीकृष्ण बोले –यही प्रशन एक बार पार्वती जी ने शिवजी से किया था तब श्री शिवजी ने पार्वती जी को करवा चौथ व्रत का विधि विधान बताया था |
तब द्रोपदी बोली – प्रभु करवा चौथ व्रत की जानकारी मुझे भी दीजिये और उसकी कथा कहिये |
तब कृष्ण एक पल सोचने के बाद कहा –“दुख-सुख जो सांसारिक माना जाता है ,प्राणी उसमे सदा ही लिप्त रहता है |मै तुम्हें अति उत्तम करवा चौथ व्रत की कथा सुनाता हूँ ”इसे ध्यान से सुनो –प्राचीन काल में गुनी ,विद्वान ,धर्मपरायण एक ब्राम्हण रहता था उसके चार पुत्र तथा गुणवती सुशील पुत्री थी |पुत्री ने विवाहित होकर चतुर्थी का व्रत किया किन्तु चन्द्रोदय से पूर्व ही उसे क्षुधा ने बाध्य कर दिया इससे उसके भाइयोने छल से पिपल कि आङमे चन्द्रमा बनाकर दिखा दिया | बहन ने आरधय दे दिया और भोजन कर लिया |भोजन करते हि उसके पति कि हिर्दय गति बंद हो गई |इससे दुखी हो,उसने अन्न जल त्याग दिया उसी रात्रि में इन्द्राणी भुविचरण करने आई ब्राम्हण पुत्री ने उससे अपने दुःख का कारण पूछा इन्द्राणी ने बताया –तुम्हें करवा चौथ व्रत में चौथ दर्शन से पूर्व भोजन कर लेने से यह कष्ट मिला है तब उस लड़की ने अंजलि बांधकर विनय की कि इससे मुक्त होने का कोई उपाय बताइये |
इस पर इन्द्राणी ने कहा “यदि तुम विधि पूर्वक अगली करवा चौथ का व्रत करो तो तुम्हारे पति पुनर्जीवित हो जायेगे |कन्या ने ऐसा करने का वचन दिया तो उसका पति स्वस्थ हो गया इस पर उस कन्या ने वर्ष भर प्रत्येक चतुर्थी का व्रत किया और अनन्त अखण्ड सुहाग प्राप्त किया श्री कृष्ण ने कहा “हे द्रोपदी !यदि तुम इस व्रत को तुम्हारे सभी संकट टल जायेगे
इस प्रकार द्रोपदी ने यह व्रत किया और पांडव सभी क्षेत्रोंमे विजयी हुए इस प्रकार सोभाग्य ,पुत्र –पौत्रादि और धन –धान की इच्छुक स्त्रियों को यह व्रत विधी पूर्वक करना चाहिए | इस व्रत में भगवान शंकर की आरती की जाती है |
– करवा चौथ व्रत-कथा 2 समाप्त –
करवा चौथ की कहानी कथा 3
एक ब्राम्हण परिवार में सात बहुए थी छ: बहुओ के मायके वाले बहुत अमीर थे इसी कारण ससुराल में उनका बड़ा मान था परन्तु छोटी के मायके में कोई न था वह घर का सारा काम –काज करती,सबकी सेवा करती ,पर कोई भी उससे प्यार नही करता ,सभी धुत्कारते रहते |
तीज –त्यौहार पर भी जब उसके मायके से कोई न आता तो वह बहुत दु :खी होती हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी करवा चौथ का व्रत आया |अन्य बहुओ के मायको से उनके छोटे भाई करवा लेकर आये पर छोटी के मायके में कोई होता तो करवा लाता |सास भी छोटी को खरी –खोटी सुना रही थी वह दुखी हो घर से निकल पड़ी और जंगल में जाकर रोने लगी ,एक नाग बहुत देर से उसका रोना सुन रहा था ,अंतमे वह अपने बिल से निकल आया तथा छोटी से पूछने लगा –“बेटी क्या बात है ?तुम रो क्यों रही हो ?छोटी बहू बोली आज करवा चौथ है मेरा कोई भाई नहीं है यदि मेरा कोई भाई होता तो आज जरुर करवा लेकर आता नाग को छोटी बहू पर दया आ गई नाग ने कहा –बेटी तुम घर चलो ,मै अभी करवा लेकर आता हूँ ” थोड़ी देर बाद नाग बहू की ससुराल पहुँचा ससुराल वाले इतना सामान देख कर चकित हो गये सास भी प्रसन्न हो गई सास ने प्रसन्न मन से छोटी बहू को नाग देवता के साथ भेज दिया |
नाग देवता ने छोटी बहू को अपना सारा महल दिखाया और कहा –जितने दिन चाहो आराम से रहो मन चाहा खाओ मन चाहा पहनो पर एक बात याद रखना सामने रखी नांद कभी मत खोलना |छोटी बहू सारा समय महल में आराम से काटती पर नांद के बारे में उसकी उत्सुकता बढ़ती जाती एक दिन जब घर में कोई न था,उसने नांद को उठाकर देखा तो हजारों छोटे-छोटे सांप के बच्चे इधर-उधर रेगने लगे उसने जल्दी ही नांद को ढंक दी जल्दी में एक सांप की पूंछ नांद के नीचे आकर कट गई |शाम को नाग के आने पर छोटी बहू ने अपनी गलती स्वीकार कर ली नाग ने भी उसे क्षमा कर दिया जब छोटी ने ससुराल जाने की इच्छा की तो उसे धन –रतन आदि देकर विदा किया |छोटी बहू के ससुराल में अब उसकी बड़ी इज्जत होने लगी |
जिस सांप की पूंछ कटी थी उसे सभी बंडा कह कर तंग करते एक दिन उसने अपनी माँ से पूछा कि मेरी पूछ कैसे कटी है माँ ने कहा की छोटी बहू के नांद उठाने और जल्दी में रखने में ही तुम्हारी पूंछ कटी है तो वह बोला कि मै छोटी से बदला लूगा | माँ के बहुत समझाने पर भी वह एक दिन चुपचाप छोटी के घर जा छुपा और मौका पाकर उसे काटने की सोचने लगा वहाँ छोटी बहू और उसकी सास में किसी बात पर बहस हो रही थी तो छोटी कसम खा कर कह रही थी कि मैने ऐसा नही किया वह कह रही थी कि मुझे बंडा भैया से प्यारा कोई नही है ,उन्ही की कसम खा कर कहती हूँ कि मैने ऐसा नही किया बंडा भाई ने जब सुना तो सोचने लगा –जो मुझसे इतना प्यार करती है मै उसे ही काटने आया हूँ| वह चुपचाप घर चला गया| माँ ने पूछा – ले आये बहन से बदला, वह कहने लगा माँ बहन से कैसा बदला?
तभी से बंडा भाई व छोटी बहन हुए भाई प्रतिवर्ष चौथ के दिन करवा लेकर जाता व बहन बड़े प्यार से करवा चौथ का व्रत करती|
– करवा चौथ व्रत-कथा 3 समाप्त –
करवा चौथ व्रत – कथा 4
प्राचीन काल में ‘करवा’ नाम की एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी किनारे एक गाँव में रहती थी । कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी (चौथ) के दिन उसका पति नदी में स्नान करने के लिए गया । स्नान करते समय एक मगर (मगरमच्छ) ने उसका पैर पकड़ लिया । वह’ करवा करवा’ नाम लेकर जोर-जोर से अपनी पत्नी को पुकारने लगा ।
उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी दौड़कर आई और उसने मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया । मगर को बाँधकर वह यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से बोली-भगवान! मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है।
अतः पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से उस मगरमच्छ को 18 नरक में ले जाओ यमराज ने कहा-अभी मगरमच्छ की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता । इस पर करवा ने कहा-यदि आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आपको श्राप देकर नष्ट कर दूँगी ।
यह सुनकर यमराज डर गये और उस पतिव्रता स्त्री करवा के साथ जाकर मगरमच्छ को उन्होंने यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु प्रदान की । उसी दिन से यह करवा चौथ मनाई जाती है और सुहागिन स्त्रियों के द्वारा व्रत रखा जाता है । हे करवा माता ! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना ।
– करवा चौथ व्रत-कथा 3 समाप्त –
आरती – करवा चौथ व्रत कथा की
शिवजी की आरती – Shiv ji Aarti
ॐ जय शिव ओंकारा, हर जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय०
एकानन, चतुराननं, पंचानन राजै ।
हंसानन, गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय०
दो भुज चारु चतुर्भुज दसभुज ते सोहे ।
तीनहुँ रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे ॥ॐ जय०
अक्षमाला, वनमाला, रुण्डमाला धारी ।
त्रिपुरारी कंसारी करमाली धारी ॥ ॐ जय०
श्वेताम्बर, बाघम्बर, पीताम्बर अंगे ।
ब्रह्मादिक सनकादिक प्रेतादिक संगे ॥ ॐ जय०
करके मध्ये सुकमण्डलु चक्रशूल धारी ।
सुखकारी, दुखहारी, जग पालन कारी ॥ ॐ जय०
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥ ॐ जय०
त्रिगुण स्वामी जी की आरति जो कोई गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख सम्पति पावे ॥ ॐ जय०
करवा चौथ गणेश व्रत कथा?
करवा चौथ गणेश व्रत कथा यहाँ पर उपलब्ध करवाई है आप पढ़ सकते है|
करवा चौथ की कहानी कहाँ पढ़ें ?
यहाँ पर पढ़िए करवा चौथ की कहानी हिंदी भाषा मे|
कारवा चौथ कहाँ कहाँ पर मनाई जाती है ?
यह भारत के विभिन्न राज्यों में जैसे: जम्मू, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला विशेष पर्व है।
करवा चौथ कब मनाया जाता है ?
यह भारत में मनाया जाने वाला विशेष पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती स्त्रियाँ मनाती हैं। पति की शुभ कामनाओ के लिए इस दिन विशेष पूजन, प्रार्थना और अर्चना की जाती है
करवा चौथ व्रत की पूजा विधि क्या है?
करवा चौथ के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी खाती हैं, जो सास द्वारा दी गई होती है। दिनभर निर्जल व्रत रखा जाता है, और शाम को करवा माता की पूजा की जाती है। इसके बाद महिलाएं छलनी से चंद्रमा और अपने पति को देखती हैं, फिर पति के हाथों से पानी पीकर व्रत तोड़ती हैं।
सरगी क्या होती है और इसका क्या महत्व है?
सरगी एक विशेष भोजन है जो करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले खाया जाता है। इसे सास अपनी बहू को देती है, जिसमें फल, मिठाई, सूखे मेवे, और पराठे होते हैं। सरगी खाने से महिलाओं को पूरे दिन व्रत करने में सहायता मिलती है।
यहाँ पर पोस्ट में बताई गयी सारी जानकारियाँ आस्था और जनरुचि को ध्यान में रखकर लिखी है इसकी पुष्टि जैसे की विधि और पूजन हमने हमारी जानकारी के आधार पर लिखा है यदि आपको किसी भी प्रकार की त्रुटी लगती है तो आप हमसे संपर्क कर सकते है संपर्क सूत्र के लिए हमने About us में उल्लेख लिया है|
धर्म के उपाय और सलाहों को आपनी आस्था और विश्वास पर आजमाएं। कंटेट का उद्देश्य मात्र आपको बेहतर सलाह देना है।
अंत तक पढने के लिया आपका धन्यवाद, जानकारी करवा चौथ व्रत की पूजा,कथा आपको कैसी लगी कमेंट में जरुर बताएं|