Amla Navami – कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन आंवला नवमी मनाई जाती है। इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य अक्षय फल देने वाला होता है। अर्थात् उसके शुभ फल में कभी कमी नहीं आती। शास्त्रों के अनुसार, अक्षय नवमी के दिन किया गया पुण्य जन्म-जन्मान्तर तक खत्म नहीं होते हैं। इस दिन किए गये शुभ कार्य जैसे दान, पूजा, भक्ति, सेवा आदि का पुण्य कई जन्मों तक प्राप्त होता है।
आंवला नवमी की पूजा और विधि | Amla Navami Puja Vidhi.
आंवला नवमी के दिन देवी लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है, तथा आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने की परंपरा प्रारंभ हुई है। शास्त्रोनुसार एक बार देवी लक्ष्मी जी पृथ्वी का भ्रमण करने आईं, रास्ते में उन्होंने भगवान विष्णु और शिव की एक साथ पूजा करने की कामना की। लक्ष्मी माँ ने माना कि विष्णु और शिव को एक साथ कैसे पूजा जा सकता है। तब उन्होंने महसूस किया कि तुलसी और बेल की गुणवत्ता के साथ आंवले के पेड़ में भी पाई जाती है।
तुलसी जी को भगवान विष्णु से प्रेम है और भगवान शिव जी को बेल पत्र से बहुत प्रेम है कहते है यदि भगवान शिव को सिर्फ एक बेलपत्र लेकर मन से उनकी भक्ति और शिवाष्टक पाठ करो तो भगवान स्वयं भक्त के पास दौड़े चले आते है |
आंवला नवमी के दिन ही भगवान कृष्ण ने वृन्दावन गोकुल छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था यह व्रत संतान और परिवार की सुख और शांति के लिए रखा जाता है कथनानुसार इसी दिन से वृंदावन की परिक्रमा भी प्रारंभ होती है। आंवला नवमी का व्रत संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह व्रत पति-पत्नी साथ में रखें और माता लक्ष्मी जी की आरती पूजन करें तो उन्हें इसका दोगुना शुभ फल प्राप्त होता है।
आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं। उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें ॐ केशवाय नमः माधवाय नमः नारायणाय नमः। फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें। वृक्ष की पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें। कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है। इसके बाद परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है। आंवला को वेद-पुराणों में अत्यंत उपयोगी और पूजनीय कहा गया है। आंवला का संबंध कनकधारा स्तोत्र से भी है।
आंवला नवमी कब है ?
इस वर्ष आंवला नवमी 2022 में 2 नवंबर कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को मनाई जाएगी।
आंवला नवमी की कथा | आंवला नवमी की कहानी | Amla Navami katha.
आंवला नवमी की कथा आपको कई जगह पे अलग अलग प्रारूप में लिखित है यहाँ पर हमने 3 प्रकार की कथाएं लिखी है जो प्रायः प्रचलित है आंवला नवमी के पूजन में आइये श्रवण करिए :-
आंवला नवमी की कथा – 1 (पौराणिक कथा)
– आंवला नवमी और शंकराचार्य की कथा –
एक कथा के अनुसार एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी, जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी । शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं।
शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे।
मां लक्ष्मी ने दिव्य दर्शन दिए इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बु मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए में इसकी को सहायता नहीं कर सकती।
शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा- हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतना भेंट करना पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी।
आंवला नवमी की कथा – 2
आंवला नवमी की कहानी व्रत के समय कही और सुनी जाती है। यहां पढ़ें, सुने और सुनाएं आंवला नवमी की यह विशेष कथा।
एक राजा था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आंवले दान करके ही खाना खाता था। इससे उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया। एक दिन उसके बेटे बहू ने सोचा कि राजा इतने सारे आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो | जायेगा। इसीलिए बेटे ने राजा से कहा की उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए। बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ और राजा रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गए।
जब भूखे प्यासे सात दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि मैने इसका प्रण नहीं रखा और इसका सत नहीं रखा तो विश्वास चला जाएगा। इसलिए भगवान ने, जंगल में ही महल, राज्य और बाग-बगीचे सब बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए। सुबह राजा रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है। राजा, रानी से कहने लगे रानी देख कहते हैं,
“सत मत छोड़े सूरमा सत छोड़या पत जाए, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आए।“
आओ नहा धोकर आंवले दान करें और भोजन करें। राजा-रानी ने आंवले दान करके खाना खाया और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे। उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि पिता ने उन्हें बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया। बेटे बहू सोच भी नहीं सकते कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मालिक भी हो सकते है सो उन्होंने भी अपने माता-पिता व नहीं पहचाना।
एक दिन बहू ने सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। उसे यह सोचकर रोना आने लगा की ऐसा मस्सा मेरी सा के भी था। हमने ये सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जाएगा। आज वे लोग न जाने कहां होगे ?
यह सोचकर बहू को रोना आने लगा और आंसू टपक टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरंत पलट कर देखा और पूछा कि, तू क्यों रो रही है?
उसने बताया आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया था इसलिए घर छोड़कर कहीं चले गए। तब रानी ने उन्हें पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना हाल बताया। अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन क नहीं होता बल्कि बढ़ता है। बेटे-बहू भी अब सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे। हे भगवान, जैसा राजा रानी का सत रखा वैसा सबका सत रखना। कहते-सुनते सारे परिवार का सुख रखना।
आंवला नवमी की कथा – 3
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक राजा रोजाना सवा मन आंवला दान करने के बाद ही भोजन करता था. जिसके कारण उसे आंवल्या राजा कहा जाने लगा। लेकिन आंवले का दान करना उसके पुत्र और पुत्रवधु को रास नहीं आया। वो सोचने लगे की राजा ऐसे आंवले का दान करेगा तो सारा खजाना खाली हो जाएगा। राजा के पुत्र ने उसे ऐसा करने से रोका, इससे दुखी होकर राजा ने रानी के साथ महल छोड़ने का फैसला लिया और जंगल चले गए।
जंगल में प्रण के अनुसार राजा ने बिना आंवला दान किए 7 दिनों तक भोजन नहीं किया। राजा की तपस्या और दृढ़ता को देख भगवान खुश हुए और राजा के महल बाग बगीचे जंगल के बीचोंबीच ही खड़े हो गए. उधर राजा के पुत्र और पुत्र वधु का राजपाट दुश्मनों ने छीन लिया। आखिर में दोनों को अपनी भुल का एहसास हुआ और वो राजा और रानी के पास वापस आ गए।
आंवला नवमी की आरती। Amla Navami ki Aarti.
आंवला नवमी की आरती के रूप में इस दिन श्री हरी विष्णु जी की आरती और पूजा विशेष रूप से की जाती है|
ॐ जय जगदीश हरे आरती लिरिक्स | श्री जगदीश जी की आरती
Om Jai Jagdish Hare Aarti Lyrics | Shri Jagdish Ji Ki Aarti.
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे ।
भक्त / दास जनों के संकट, दास जनों के संकट
क्षण में दूर करे ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का,
स्वामी दुःख विनसे मन का ।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी,
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा, प्रभु बिन और न दूजा
आस करूँ मैं जिसकी ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता,
स्वामी तुम पालन-कर्ता ।
मैं मूरख खल कामी, मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे…
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूँ दयामय , तुमको मैं कुमति ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे,
स्वामी तुम रक्षक मेरे ।
अपने हाथ उठाओ, अपनी शरण लगाओ,
द्वार पड़ा मैं तेरे ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,
स्वामी कष्ट हरो देवा ।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा-प्रेम बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
तन मन धन सब है तेरा,
स्वामी सब कुछ है तेरा ।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे ॥
ॐ जय जगदीश हरे…
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
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आंवला नवमी 2022 से सम्बंधित :-
2022 आंवला नवमी कब है ?
इस वर्ष आंवला नवमी 2022 में 2 नवंबर कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को मनाई जाएगी।
आंवला नवमी में किसकी पूजा की जाती है ?
आंवला नवमी के दिन आंवला वृक्ष के निचे देवी लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है
आंवला नवमी में किस बात का विशेष महत्त्व है ?
आंवला नवमी के दिन आंवला के पेड़ के निचे बैठ कर भोजन करने और करने का विशेष महत्त्व है |
यहाँ पर पोस्ट में बताई गयी सारी जानकारियाँ आस्था और जनरुचि को ध्यान में रखकर लिखी है इसकी पुष्टि जैसे की विधि और पूजन हमने हमारी जानकारी के आधार पर लिखा है यदि आपको किसी भी प्रकार की त्रुटी लगती है तो आप हमसे संपर्क कर सकते है संपर्क सूत्र के लिए हमने About us में उल्लेख लिया है|
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