अगहन मास गणेश चौथ व्रत कथा – Ganesh Chaturthi Vrat Katha.
आज कल व्रत और त्यौहार को लेकर सभी के मन में संदेह बहुत है गणेश चतुर्थी व्रत कब है एकादशी व्रत कब है, गणेश चतुर्थी का महत्व क्या है तो चलिए इसी विषय पर लेख लिख रहे है।
पुराणों में गणेश चतुर्थी का दिन श्री गणेश भगवान का दिन बताया गया है विशेष रूप से स्त्रियों के लिए विशेष लाभकारी है इस दिन निराहार व्रत रहने वाली स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
गणेश चतुर्थी गणपति की तिथि है इस दिन गणपति की मूर्ति की श्रद्धा व भक्ति के साथ पूजा और सहस्रनाम जप करते हुए उनकी साधना करें, आराधना करें। ऐसा करने से गणेश चतुर्थी फलदायिनी सिद्ध होगी ।
सभी पुराणों में सभी तिथियों के वर्णन मिलते हैं। जैसे एकादशी व्रत, पूर्णमासी व्रत, सप्तमी व्रत, अष्टमी व्रत आदि । किन्तु सर्वाधिक फलदायिनी पवित्र तिथि चतुर्थी है । इस तिथि को वरदान दिया था कि जो कोई निराहार रहकर इस दिन व्रत करेगा उसके सब कार्य सिद्ध होंगे। अतः प्रत्येक मास की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखकर गणपति गणेश जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए हो सके तो संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करें।
गणेश चतुर्थी पूजा विधि – Ganesh Chaturthi Puja Vidhi.
चलिए इस भाग में आप जानेंगे गणेश चतुर्थी पूजा विधि में क्या क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए, पूजन सामग्री क्या होनी चाहिए :-
- सबसे पहले सुबह नहा लें.
- उसके बाद गिली मिट्टी से गणेश जी की मूर्ति बना लें.
- अब इसे सुखा दें.
- शुद्ध घी और सिंदूर, हल्दी, चंदन से उनका श्रृंगार कर दें.
- उन्हें जनेऊ पहनाएं.
- घर के उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित कर दें.
- धूप-दीपक जलाएं.
- फल-फूल उन्हें अर्पित करें और मोदक व लड्डुओं का भोग लगाएं.
- व्रत कथा पढ़ें और कथा पूर्ण होने पर 11 नामों से हवन करें.
- अब कपूर जलाकर उनकी आरती करें.
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गणेश चतुर्थी व्रत कथा – Ganesh Chaturthi Vrat Katha.
श्री पार्वतीजी बोलीं-हे वत्स ! मार्गशीर्ष की चतुर्थी को कौन-सा व्रत करना चाहिये । गणेशजी ने कहा हे मातेश्वरी ! मार्गशीर्ष मास में गजानन्द नामक गणेश का व्रत करना चाहिए उस दिन निराहार रहकर चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमा को अर्घ्य प्रदान करें। दिन में जौ, तिल, चावल के साकल्य से हवन करें और अर्ध्य देने के बाद भोजन करें । इस व्रत में कथा को पढ़ें अथवा सुनानी चाहिए।
त्रेतायुग में महाराज दशरथ को श्रवणकुमार के पिता ने श्राप दिया था कि जैसे तुमने मेरे पुत्र को मारकर पुत्र वियोग से दुखी किया है वैसे ही तुम भी पुत्र के वियोग में तड़पकर करोगे महाराज दशरथ को पुत्र न होने से उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ किया जिससे चार पुत्र उत्पन्न हुए। सबसे बड़े का नाम राम था उनका विवाह सीताजी से हुआ था पिता की आज्ञा से राम को चौदह वर्ष का वनवास हुआ। उसके साथ सीता और लक्ष्मण भी गये । एक दिन रावण सीता का हरण कर ले गया।
सीता के वियोग में दुखी होकर राम ढूंढ़ते हुए ऋष्यमूक नामक पर्वत पर पहुंच गये वहां के राजा सुग्रीव से उन्होंने मित्रता की जिसने वानरों के साथ हनुमानजी को सीता को ढूंढने के कार्य में लगा दिया। सब वानर चारों ओर सीताजी की खोजन करने लगे । वन में घूमते हुए वानरों को सम्पाती मिला । सम्पाती से पूछा कि तुम कौन हो और इधर क्यों आये हो सब वानरों ने रावण द्वारा सीता का अपहरण और सीता की रक्षा में जटायु द्वारा अपने प्राण त्याग की घटना सुनाई।
सम्पाती ने कहा कि मुझे दिव्य दृष्टि प्राप्त है । मुझे समुद्र के पार राक्षसों की लंका नगरी में अशोक वृक्ष के नीचे बैठी हुई सीताजी दिखलाई पड़ रही हैं । हनुमान राम की कृपा से सीता को वहाँ से ला सकता है। श्री हनुमानजी से कहा कि तुम मार्गशीष मास की चतुर्थी को संकट नाशक श्री गणेशजी का व्रत करो। इस व्रत के प्रभाव से आप क्षणभर में समुद्र लांघकर सीताजी को खोजकर उन्हें ला सकोगे । हनुमानजी ने श्री गणेशजी का व्रत किया और समुद्र को लांघ कर राक्षसों से युद्ध कर सीताजी को ले आए।
श्रीकृष्णजी ने धर्मराज से कहा कि तुम भी इसी प्रकार श्री गणेशजी का व्रत मार्गशीष की चतुर्थी को करो जिससे शत्रुओं से अपने राज्य को प्राप्त कर सको श्री धर्मराज ने वैसा ही किया और शत्रुओं को हराकर अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लिया।
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