श्री हरि स्तोत्र लिरिक्स | Shri Hari Stotram Lyrics in Hindi

Shri Hari Stotram Lyrics in Hindi –
हमारे हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में से एक श्री विष्णु पुराण के बहुमान्य पुराणानुसार श्री हरि विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप माना गया हैं। इसका उल्लेख आपको श्री हरि स्तोत्र लिरिक्स में भी मिलता है। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व या जगत का पालनहार कहा जाता है। वैदिककाल से ही श्री हरि विष्णु सम्पूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में मान्य हैं। यह भी मान्यता बहुशः स्वीकृत रही है कि न्याय को प्रश्रय अन्याय के विनाश तथा जीव (मानव) को परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग-ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार ग्रहण करनेवाले के रूप में विष्णु मान्य रहे हैं। जैसे नरसिंह अवतार , महिसासुर अवतार,सुदरी अवतार आदि…

ग्रंथों अनुसार जो संसार में सर्वोच्च ईश्वर (निराकार परब्रह्म) हैं, श्री विष्णु उनका निकटतम मूर्त स्वरुप हैं। श्री हरि विष्णु स्तोत्र में वर्णित चतुर्भुज रूप अत्यंत सुगम है, वे भक्तों की निष्काम भक्ति से प्रसन्न होते हैं तथा विष्णु पद का शाब्दिक अर्थ व्यापक या गतिशील होता है।

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प्रभु की जगत के संतुलन बनाए रखने में विशेष भूमिकार ही है, वे जगत का पालन तथा आसुरी शक्तियों से रक्षा करते हैं. वे अपने भक्तों के लिए दयामय शत्रुओं के लिए भयवह हैं। श्री हरि स्तोत्र के लाभ यही है कि इसका का पाठ करने से मन को शांति और भयमुक्त होने का आभास होता है और आपके सारे कार्य निर्विघ्न होते है इसमें कोई सन्देश नहीं है चलिए स्मरण करते है :-

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श्री हरि स्तोत्र लिरिक्स – Shri Hari Stotram Lyrics in Hindi

जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं, शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं

नभोनीलकायं दुरावारमायं, सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं ॥1॥

सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं, जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं

गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं, हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं ॥2॥

रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं, जलान्तर्विहारं धराभारहारं

चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं, ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं ॥3॥

जराजन्महीनं परानन्दपीनं, समाधानलीनं सदैवानवीनं

जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं, त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं ॥4॥

कृताम्नायगानं खगाधीशयानं, विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं

स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं, निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं ॥5॥

समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं, जगद्व�����म्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं

सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं, सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ॥6॥

सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं, गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं

सदा युद्धधीरं महावीरवीरं, महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं ॥7॥

रमावामभागं तलानग्रनागं, कृताधीनयागं गतारागरागं

मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं, गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ॥8॥

– फलश्रुति –

इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं, पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे:

स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं, जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो ॥


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श्री हरि स्तोत्र के लाभ क्या है ?

श्री हरि स्तोत्र के लाभ यही है कि इसका का पाठ करने से मन को शांति और भयमुक्त होने का आभास होता है और आपके सारे कार्य निर्विघ्न होते है इसमें कोई सन्देश नहीं है।

श्री हरि स्तोत्र मीनिंग इन हिंदी बताइए ?

श्री हरि स्तोत्र मीनिंग इन हिंदी हमने अपने अगले लेख लिया हुआ है आप यहाँ पर जाकर पढ़ सकते है।

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