कहते है यदि आपके मन में किसी यज्ञ करके सफलता प्राप्त करने का विचार है या फिर किसी कार्य की सफलता के लिए पूजा अर्चना का विचार कर रहे है तो आपके लिए षटतिला एकादशी 2023 (Shattila Ekadashi 2023 Vrat) बहुत उत्तम फल प्रदान करने वाला व्रत हो सकता है | क्यूंकि शास्त्रों की माने तो षटतिला एकादशी व्रत कथा और पूजन करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ के बराबर का फल मिलता है ऐसा शास्त्रों में बताया गया है।
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एकादशी के विषय में पंडित श्री नंद कुमार जी महाराज ने बताया कि इस दिन मनुष्य को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान ध्यान चाहिए। यदि तीर्थ स्नान संभव नहीं है तो घर पर ही स्नान जल में गंगाजल की कुछ बूंदे डालकर स्नान करने से तीर्थ जल स्नान का फल मिलता है। इस दिन एकादशी तिथि पर तिल स्नान का महत्व भी बताया गया है। क्यूंकि षटतिला एकादशी व्रत माघ महीने के संयोग में आती है। इसलिए पानी में थोड़े से तिल मिलाकर स्नान करना चाहिए और श्री हरि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इस तरह स्नान करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं श्री हरि विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है।
षटतिला एकादशी व्रत पर सूर्य देव की पूजा का खास महत्व होता है। सूर्य देव यानि भगवान विष्णु का ही रूप है, इसलिए इन्हें सूर्य नारायण भी कहा गया है यह नाम भी भगवान विष्णु जी के एक नाम है। माघ महीने के स्वामी सूर्य ही होने से इस दिन उगते हुए सूरज को जल चढ़ाने और नमस्कार करने का विधान है इससे आपकी मन और तन में एक उर्जा का प्रसार होता है। इसके बाद दिन में श्रद्धा अनुसार जरूरतमंद लोगों को कपड़े या खाने की चीजों का दान दें और हो सके असहाय लोगो की मदद अवश्य करें।
षटतिला एकादशी 2023 कब है – Shattila Ekadashi 2023 Kab Hai
हमारे हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की 11वीं तीथि को एकादशी कहा जाता है। एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित तिथि मानी जाती है। एक महीने में दो पक्ष होने के कारण दो एकादशी होती हैं, एक शुक्ल पक्ष मे तथा दूसरी कृष्ण पक्ष मे। इस प्रकार वर्ष मे कम से कम 24 एकादशी हो सकती हैं, परन्तु अधिक मास की स्थति मे यह संख्या 26 भी हो सकती है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी तिथि 17 जनवरी 2023 दिन मंगलवार को शाम 06 बजकर 05 मिनट से शुरू होगी, अगले दिन 18 जनवरी 2023 को बुधवार को शाम 4 बजकर 03 मिनट पर ये समाप्त होगी. ऐसे में एकादशी व्रत उदया तिथि में 18 जनवरी 2023 को रखा जाएगा.
षटतिला एकादशी व्रत का पारण समय रहेगा – सुबह 07:14 – सुबह 09: 21 (19 जनवरी 2023)
षटतिला एकादशी 2023 महत्त्व | Shattila Ekadashi 2023 Ka Mahatav
Shattila Ekadashi 2023 – माघ की षटतिला एकादशी का व्रत 18 जनवरी 2023 को है। षटतिला का अर्थ है 6 तरह के तिल, इस एकादशी पर तिल का खास महत्व है हिंदू धर्म में माघ का महीना अति पवित्र और पुण्यदायी माना गया है। इस महीने में स्नान, दान, व्रत, तपस्या से भगवान विष्णु जी की कृपा जल्द ही प्राप्त होती है।
माघ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षटतिला एकादशी कहा जाता है। पंचांग के अनुसार नए साल 2023 में माघ की षटतिला एकादशी का व्रत 18 जनवरी 2023 को है। षटतिला एकादशी पर स्नान-दान और श्री हरि विष्णु जी की आराधना करने से साधक मोक्ष को प्राप्त होता है तथा उसके समस्त पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं। षटतिला का अर्थ है 6 तरह के तिल, इस एकादशी पर तिल का खास महत्व है जैसा हमने उपर आपको बताया।
षटतिला एकादशी व्रत कथा | Shattila Ekadashi 2023 Vrat Katha
एक समय की बात है नारद जी ने भगवान श्री विष्णु से एक प्रश्न किया था और भगवान ने जो षटतिला एकादशी का माहात्म्य नारद जी से बताया उसे आज मैं कहता हूँ। भगवान विष्णु ने नारदजी से कहा कि हे नारद! मैं तुमसे सत्य घटना कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।
प्राचीनकाल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत किया करती थी। एक बार उसने एक मास (महीने) तक व्रत धारण किया। इससे उसका शरीर अत्यंत शीण और दुर्बल हो गया। यद्यपि वह अत्यंत बुद्धिमान थी तथापि उसने कभी देवताअओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान नहीं किया था। इससे मैंने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है, अब इसे विष्णुलोक तो मिल ही जाएगा परंतु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया, इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है ऐसा भगवान ने मन में विचार किया।
भगवान ने आगे कहा: ऐसा सोचकर मैं भिखारी के वेश में मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उससे भिक्षा माँगी।
वह ब्राह्मणी बोली: महाराज किसलिए आए हो?
मैंने कहा: मुझे भिक्षा चाहिए।
इस पर उसने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में डाल दिया। मैं उसे लेकर स्वर्ग में लौट आया। कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी शरीर त्याग कर स्वर्ग में आ गई। उस ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला, परंतु उसने अपने घर को अन्नादि सब सामग्रियों से शून्य पाया अर्थात उसके घर में अन्न का एक भी दाना नहीं था।
घबराकर जब वह मेरे पास आई और कहने लगी कि हे भगवन् मैंने अनेक व्रत आदि से आपकी पूजा की परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है। इसका क्या कारण है?
इस पर मैंने कहा: पहले तुम अपने घर जाओ। देवस्त्रियाँ आएँगी तुम्हें देखने के लिए। पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लो, तब द्वार खोलना। मेरे ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई। जब देवस्त्रियाँ आईं और द्वार खोलने को कहा तो ब्राह्मणी बोली: आप मुझे देखने आई हैं तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो।
उनमें से एक देवस्त्री कहने लगी कि मैं कहती हूँ। जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तब द्वार खोल दिया। देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है। उस ब्राह्मणी ने उनके कथनानुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया।
अत: मनुष्यों को मूर्खता त्यागकर षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिलादि का दान करना चाहिए। इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार षटतिला एकादशी व्रत कथा समाप्त हुई।
जय श्री हरि !!
आरती षटतिला एकादशी व्रत :-
– श्लोक –
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्.,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
– आरती प्रारंभ –
जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट, छन में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे..
जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका।
सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका॥
ॐ जय जगदीश हरे..
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे..
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे..
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं मुरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे..
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती॥
ॐ जय जगदीश हरे..
दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पडा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे..
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढाओ, संतन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे..
षटतिला एकादशी व्रत से सम्बंधित :-
उपर के भाग में हमने आपको षटतिला एकादशी व्रत की विधि, षटतिला एकादशी व्रत की कहानी, षटतिला एकादशी व्रत पूजा से सम्बंधित जानकारियाँ बताई है यहाँ हम आपको आपके द्वारा पूछे गए कुछ प्रश्न के उत्तर भी बता रहे है जिनके बारे में प्रायः लोग जानना चाहते है।
षटतिला एकादशी व्रत के नियम क्या है?
षटतिला एकादशी व्रत के नियम में दशमी की रात से लेकर द्वादशी के सुबह एकादशी व्रत के पारण करने तक अन्न ग्रहण नहीं किया जाता, स्त्री हो या पुरुष भक्त को अपनी श्रद्धा और शक्ति से निर्जला, सिर्फ पानी लेकर, फल लेकर या एक समय फलाहार लेकर एकादशी व्रत को करना चाहिए। यदि आप व्रत धारण करना चाह रहे है तो एकादशी व्रत में दशमी को सूर्यास्त के पहले भोजन करके कुछ नहीं खाना चाहिए और प्रभु श्री नारायण का ध्यान करना चाहिए।
पवित्र षटतिला एकादशी व्रत कैसे धारण करें?
व्रत पूजा कोई भी हो स्थान या सामग्री इन सब से ज्यादा आपका मन साफ़ होना चाहिए ज्ञात रखें इस दिन किसी भी का झूट अधर्म या जीव हत्या न हो इन सबका भी विशेष ध्यान रखें। षटतिला एकादशी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर साफ-सफाई करके स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु का मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का ध्यान करें और व्रत का संकल्प मन में ही लें। पूजा के लिए भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या फिर तस्वीर को चौकी पर स्वच्छ लाल कपड़े बिछाकर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल से तस्वीर समेत चारों तरफ छीटें दें और पूजा करें।
षटतिला एकादशी के व्रत में क्या भोजन करना चाहिए?
षटतिला एकादशी का व्रत बहुत ही नियमों के साथ किया जाने वाला उपवास है। कहते है कि इस दिन चावल का सेवन निषेध है गुरूजी के अनुसार मनुष्य व्रत धारण करे या न धारण करे लेकिन चावल का सेवन न करे, शास्त्रों में भी ऐसा कहा गया है कि चावल का सेवन करने से मनुष्य रेंगने वाले जीव की तरह योनि में जन्म लेता है। इस एकादशी के दिन एकदम सादा भोजन ग्रहण करना चाहिए।
षटतिला एकादशी व्रत का पारण समय कब रहेगा?
षटतिला एकादशी व्रत का पारण समय रहेगा – सुबह 07:14 – सुबह 09: 21 (19 जनवरी 2023)
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