पौराणिक महा शिवरात्रि व्रत कथा | Maha Shivaratri Vrat Katha 2025

जय भोलेनाथ !! हर वर्ष की तरह इस वर्ष महा शिवरात्रि व्रत की वो घडी आ रही है जिस दिन हमारे महादेव और माता पार्वती की वर्षगांठ मनाई जाएगी तो इस बार 18 फरवरी 2025 दिन शनिवार को महा शिवरात्रि व्रत कथा और रुद्राभिषेक पूजन और आरती का आनंद सम्पूर्ण भारत उठाएगा और इस वर्ष उज्जैन में महाकाल की नगरी में विशेष आयोजन हो रहा है उसका भी आनंद अवश्य उठाएं :
Maha Shivaratri Vrat Katha 2025 :-

पढ़िए महा शिवरात्रि व्रत कथा | Maha Shivaratri Vrat Katha

महाशिवरात्रि व्रत कथा के से जुड़ी एक रोचक पौराणिक कथा –

एक बार की बात है चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब का पेट पालता था। किसी आवश्यकता वश वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन ऋण समय पर न चुका पाने पर क्रोधित साहूकार ने उसको शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन महा शिवरात्रि थी।

बंदी रहते हुए शिकारी मठ में शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा, वहीं उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होने पर साहूकार ने उसे बुलाया और ऋण चुकाने के लिए पूछा तो शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन दिया। साहुकार ने उसकी बात मान ली और उसे छोड़ दिया। शिकारी जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था।

सूर्यास्त होने पर वह एक जलाशय के समीप गया और वहां एक घाट के किनारे एक पेड़ पर थोड़ा सा जल पीने के लिए लेकर, चढ़ गया क्योंकि उसे पूरी उम्मीद थी कि कोई न कोई जानवर अपनी प्यास बुझाने के लिए यहाँ ज़रूर आयेगा। वह पेड़ बेल-पत्र का था और उसी पेड़ के नीचे शिवलिंग भी था जो सूखे बेलपत्रों से ढके होने के कारण दिखाई नहीं दे रहा था। शिकारी को उसका पता न चला। भूख और प्याेस से थका वो उसी मचान पर बैठ गया।

मचान बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।

एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची उसके हाथ के धक्के से कुछ पत्ते एवं जल की कुछ बूंदे नीचे बने शिवलिंग पर गिरीं और अनजाने में ही शिकारी की पहले प्रहर की पूजा हो गयी।

मृगी बोली, मैं गर्भिणी हूं शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना। शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। सम�����प आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। कुछ बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और अनायास ही शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गयी।

तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, क‍ि मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

दो बार शिकार को खोकर वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी धनुष पर तीर चढ़ा कर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।

शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी इनकी फिक्र है इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं। मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया।

शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। उसकी तीसरे प्रहर की पूजा भी स्वतः ही संपन्न हो गयी।

पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।

मृग की बात सुन कर शिकारी ने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, वे मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।

उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। उसके हाथ से धनुष तथा बाण छूट गया और उसने मृग को जाने दिया। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।

देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। उसके ऐसा करने पर भगवान् शंकर ने प्रसन्न हो कर तत्काल उसे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया तथा उसे सुख-समृद्धि का वरदान देकर गुह नाम प्रदान किया। यही वह गुह था जिसके साथ भगवान् श्री राम ने मित्रता की थी।

इस प्रकार पौराणिक महा शिवरात्रि व्रत कथा समाप्त हुई।

ॐ नमः पार्वती पतये हर हर महादेव !!


आरती महा शिवरात्रि व्रत कथा | Aarti Maha Shivaratri Vrat Katha

– Lord Shiva Aarti | भगवान शिव की आरती –

जय शिव ओंकारा ऊं जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अद्र्धांगी धारा

॥ ऊं जय शिव…॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे

॥ ऊं जय शिव…॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे

॥ ऊं जय शिव…॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी। चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी

॥ ऊं जय शिव…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे

॥ ऊं जय शिव…॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता। जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता

॥ ऊं जय शिव…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका

॥ ऊं जय शिव…॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी

॥ ऊं जय शिव…॥

त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे

॥ ऊं जय शिव…॥


महा शिवरात्रि व्रत कथा से जुड़े प्रश्न –

महाशिवरात्रि व्रत का महत्व क्या है ?

कहते है महा शिवरात्रि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मनाई जाती है। यह एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव ने पार्वती जी से विवाह किया था।

महाशिवरात्रि व्रत कब है?

इस बार 18 फरवरी 2023 दिन शनिवार को महा शिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा |

महाशिवरात्रि कब है 2023 ?

इस बार 18 फरवरी 2023 दिन शनिवार को महा शिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा |

महाशिवरात्रि व्रत नियम ?

महा शिवरात्रि 2023 पूजा विधि के बारे में जानना भी आवश्यक है, महा शिवरात्रि के लिए पूजा की विधि, महा शिवरात्रि के शुभ दिन पर भगवान शिव को सम्मान देने के लिए किए जाने वाले पूजन और अनुष्ठान सामग्री।पूजा विधि में पूजा की शुद्धता और पवित्रता सुनिश्चित करने के लिए एक विशिष्ट क्रम में पालन किए जाने वाले चरणों की एक श्रृंखला शामिल है। जिससे आपकी पूजा में किसी भी प्रकार की चूक और विघ्नता न आए, नहीं तो कई बार एक एक चीज़ के लिए परेशान होना पढता है।

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