बृहस्पतिवार की कथा और आरती | Brihaspativar Vrat Katha aur Aarti | बृहस्पतिदेव की कथा

बृहस्पतिवार व्रत कथा | Brihaspativar ki vrat katha

बृहस्पतिवार के दिन जो भी स्त्री-पुरुष व्रत करें उनको चाहिए कि वह दिन में एक ही मय भोजन करें क्योंकि बृहस्पति भगवान् का इस दिन पूजन होता है । भोजन पीली चने दाल आदि का करें परन्तु नमक नहीं खावें और पीले वस्त्र पहनें पीले ही फलों का प्रयोग रें, पीले चन्दन से पूजन करें। पूजन के बाद प्रेमपूर्वक गुरु महाराज की कथा सुननी चाहिए। व्रत को करने से मन की इच्छायें पूरी होती हैं और बृहस्पति भगवान प्रसन्न होते हैं। पुत्र, विद्या तथा मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। परिवार को सुख तथा शान्ति मिलती है, इसलिए यह व्रत सर्वश्रेष्ठ और अति फलदायक है । यह व्रत सभी स्त्री व पुरुषों के लिए है। इस व्रत में केले का पूजन करना चाहिए। कथा और पूजन के समय मन, क्रम, वचन ने शुद्ध होकर जो इच्छा हो वह पूर्ण करते हैं। ऐसा मन में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए (Brihaspativar Vrat Katha aur Aarti)

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अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा

बृहस्पतिवार की कथा और आरती Brihaspativar Vrat Katha aur Aarti बृहस्पतिदेव की कथा

एक समय की बात है कि भारतवर्ष में एक नृपति राज्य करता था । वह बड़ा ही प्रतापी और दानी था। वह नित्य प्रतिदिन मन्दिर में दर्शन करने जाता था, वह ब्राह्मण और गुरु की सेवा किया करता था। उसके दरवाजे से कोई भी निराश होकर नहीं लौटता था तथा वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखता एवं पूजन करता था । प्रतिदिन गरीबों की सहायता करता था, परन्तु यह सब बातें उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थीं, वह न व्रत करती और न किसी को एक दमड़ी तक दान में देती थी तथा राजा से भी ऐसा करने को मना किया करती थी।

एक समय की बात है कि राजा तो शिकार खेलने वन को गये हुए थे, घर पर रानी और दासी थी। उस समय गुरु बृहस्पतिदेव एक साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने गए तथा भिक्षा मांगी तो रानी कहने लगी- हे साधु महाराज! मैं इस दान पुण्य से तंग आ गई हूँ। मेरे से तो घर का कार्य ही समाप्त नहीं होता। इस कार्य के लिए तो मेरे पतिदेव ही बहुत हैं। अब आप इस प्रकार की कृपा करें कि वह सब धन नष्ट हो जाये फिर मैं आराम से रह सकूँ।

साधु बोले- हे देवी ! तुम तो बड़ी विचित्र हो। सन्तान और धन से कोई दुःख नहीं होता इसको सभी चाहते हैं पापी भी पुत्र और धन की इच्छा करते हैं यदि आपके पास धन अधिक है तो भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दक्षिणा दो, धर्मशाला बनवाओ, कुंआ, तालाब, बावड़ी, बाग-बगीचों आदि के निर्माण कराओ। इस प्रकार के सुकर्मों से आपके कुल और आपका नाम परलोक में सार्थक होगा एवं स्वर्ग की प्राप्ति होगी। मगर वह रानी इन बातों से खुश न हुई। वह बोली- हे साधु महाराज ! मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं जिसको मनुष्यों को दान दूं तथा जिसको रखने उठाने में मेरा सारा समय ही बर्बाद हो जाये।

साधु ने कहा- हे देवी! तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो ऐसा ही होगा। मैं तुम्हें बताता हूं वैसा ही करना। बृहस्पतिवार के दिन घर को गोबर से लीपना। अपने केशों को धोना, केशों को धोते हुए स्नान करना, राजा से कहना वह हजामत बनवाये, भोजन में मांस मदिरा खाना, धोबी के के यहाँ कपड़े धुलने डालना, इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा सब धन नष्ट हो जावेगा। ऐसा कहकर वह साधु महाराज वहां से अर्न्तध्यान हो गए। रानी ने साधु के कहने के अनुसार वैसा ही किया तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसका समस्त धन नष्ट हो गया और भोजन के लिए दोनों समय तरसने लगे। सांसारिक भोगों से दुःखी हो राजा ने कहा यहां पर मुझे सभी मनुष्य जानते हैं, इसलिए कोई कार्य भी नहीं कर सकता। देश चोरी परदेश भिक्षा बराबर है। ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया । वहाँ जंगल में जाता और लकड़ी काट कर लाता और शहर में बेचता इस तरह जीवन व्यतीत करने लगा। इधर राजा के घर रानी और दासी दुःखी रहने लगी किसी दिन भोजन मिलता और किसी दिन जल पीकर ही रह जाती।

एक समय रानी और दासी को सात रोज बिना भोजन के व्यतीत हो गये तो रानी ने अपनी दासी से कहा- हे दासी! यहां पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है। वह बड़ी धनवान है तू उसके पास जा और वहाँ से पांच सेर बेझर माँग ला जिससे कुछ समय के लिये गुजारा हो जावेगा। इस प्रकार रानी की आज्ञा मानकर दासी उसकी बहन के पास गई। उस समय रानी की बहिन पूजन कर रही थी क्योंकि उस रोज बृहस्पतिवार था। जब दासी ने रानी की बहन को देखा और उससे बोली-हे रानी ! मुझे तुम्हारी बहिन ने भेजा है। मेरे लिये पांच सेर बेझर दे दो। इस प्रकार दासी ने अनेक बार कहा परन्तु रानी ने कुछ उत्तर न दिया। क्योंकि वह उस समय बृहस्पतिवार की कथा सुन रही थी। इस प्रकार जब दासी को किसी प्रकार उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई एवं क्रोध भी आया और लौटकर अपने गांव आ रानी के पास आकर बोली-हे रानी ! तुम्हारी बहिन तो बहुत ही अभिमानी है, वह छोटे मनुष्यों से बात भी नहीं करती इसलिये मैंने उससे कहा तो उसने कोई उत्तर नहीं दिया, मैं वापिस चली आई।

रानी बोली- हे दासी ! इसमें उसका कोई दोष नहीं है। जब बुरे दिन आते हैं तब कोई सहारा नहीं देता अच्छे बुरे समय का पता विपत्ति में ही लगता है। जो ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा। यह सब हमारे भाग्य का दोष है । इधर उस रानी ने देखा कि मेरी बहन की दासी आई थी परन्तु मैं उससे नहीं बोली इससे वह बहुत दुखी हुई होगी। यह सोच कथा को सुन और विष्णु भगवान का पूजन समाप्त कर वह रानी अपनी बहिन के घर चल दी और जाकर अपनी बहन से कहने लगी कि हे बहन ! मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी जिस समय तुम्हारी दासी मेरे पास आई थी, परन्तु जब तक कथा होती है तब तक न उठते हैं और न बोलते हैं इसलिये मैं न बोली। कहो दासी क्यों गई थी ?

रानी बोली-बहिन ! हमारे घर में अनाज नहीं था । वैसे तुमसे कोई बात छिपी नहीं है इस कारण मैंने दासी को तुम्हारे पास पांच सेर बेझर लेने के लिये भेजा था। रानी बोली बहिन देखो ! बृहस्पति देव भगवान् सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। देखो शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो। इस प्रकार का वचन जब रानी ने सुना तो घर के अन्दर गई और वहां उसे एक घड़ा बेझर का भरा मिल गया। तब तो वह रानी और दासी बहुत ही खुश हुईं और दासी बोली-हे रानी देखो ! वैसे हमको जब भोजन नहीं मिलता तो हम रोज ही व्रत करते हैं अगर इनसे व्रत की विधि और कथा पूछ ली जावे तो हम भी व्रत किया करें। तब उस रानी ने अपनी बहिन से पूछा कि हे बहन ! बृहस्पतिवार के व्रत की कथा कैसे है तथा यह व्रत कैसे करना चाहिए। रानी की बहिन ने कहा-बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल, मुनक्का से विष्णु भगवान् का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलावें, पीला भोजन करें तथा कहानी सुनें। इस प्रकार करने से गुरु भगवान् प्रसन्न होते हैं। अन्न, पुत्र एवं धन देते हैं, मनोकामना पूर्ण करते हैं ।

इस प्रकार रानी और दासी दोनों ने निश्चय किया कि बृहस्पतिवार भगवान का पूजन जरूर करेंगे । सात दिन बाद जब बृहस्पतिवार आया तो उन्होंने व्रत रखा। घुड़साल में जाकर चना गुड़ बीन लाई तथा उसकी दाल से केले के जड़ का तथा विष्णु भगवान् का पूजन किया । अब भोजन पीला कहां से आवे बेचारी बड़ी दुखी हुई परन्तु उन्होंने व्रत किया था । इस कारण गुरु भगवान् प्रसन्न थे। वह महात्मा के रूप में दो ‘थालों में सुन्दर पीला भोजन लेकर आये और दासी को देकर बोले-हे दासी! यह तुम्हारे और रानी के लिए भोजन है तुम दोनों करना। दासी भोजन पाकर बड़ी प्रसन्न हुई और रानी से बोली चलो रानी जी भोजन कर लो। रानी को इस विषय में कुछ पता नहीं था इसलिए वह दासी से बोली-तू ही भोजन कर क्योंकि तू हमारी व्यर्थ में हंसी उड़ाती है। दासी बोली एक महात्मा भोजन दे गया है। रानी कहने लगी वह भोजन तेरे ही लिए दे गया है तू ही भोजन कर। दासी ने कहा वह महात्मा हम दोनों को दो थालों में भोजन दे गये हैं। इसलिए हम और तुम दोनों ही साथ-साथ भोजन करेंगी ।

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इस प्रकार रानी और दासी दोनों ने गुरु भगवान् को नमस्कार कर भोजन प्रारम्भ किया तथा अब वह प्रत्येक बृहस्पतिवार को गुरु भगवान् का व्रत और विष्णु भगवान् का पूजन करने लगीं । बृहस्पतिदेव भगवान् की कृपा से फिर रानी और दासी के पास धन हो गया और वह फिर इस प्रकार आलस्य करने लगीं तब दासी बोली- देखो रानी! तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थीं तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था इस कारण सभी धन नष्ट हो गया। अब गुरु भगवान् की कृपा से धन मिला है। तो फिर तुम्हें आलस्य होता है। बड़ी मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है। इसलिए हमें दान पुण्य करना चाहिए तथा भूखे मनुष्यों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दो, कुआँ, तालाब, बावड़ी आदि का निर्माण कराओ, मन्दिर, पाठशाला बनवाकर दान दो, क्वांरी कन्याओं का विवाह करवाओ । धन को शुभ कार्यों में खर्च करो, जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़े तथा स्वर्ग प्राप्त हो और पित्तर भी प्रसन्न होंगे। तब रानी ने इसी प्रकार कार्य करने प्रारम्भ किए तो काफी यश फैलने लगा।

एक दिन रानी और दासी विचार करने लगी न जाने राजा किस प्रकार से होंगे उनकी कोई खबर नहीं । गुरु भगवान से उन्होंने प्रार्थना की और भगवान् ने रात्री में राजा को स्वप्न में कहा- हे राजा ! उठ तेरी रानी तुझको याद करती है। अपने देश को जा। राजा प्रातः काल उठा और विचार करने लगा स्त्री जाति खाने और पहनने की संगिनी होती है पर भगवान् की आज्ञा मानकर वह अपने नगर के लिए चलने को तैयार हुआ। इससे पूर्व जब राजा परदेश चला गया तो परदेश में दुःखी रहने लगा । प्रतिदिन जंगल में से लकड़ी बीनकर लाता और उन्हें शहर में बेचकर अपने दुःखी जीवन को बड़ी कठिनता से व्यतीत करता था ।

एक दिन राजा दुःखी हो अपनी पुरानी बातों का याद करके राने लगा । तब उस जंगल में से बृहस्पति देव एक साधु का रूप धारण कर आये राजा के पास आकर बोले-हे लकड़हारे! तुम इस सुनसान जंगल में किस चिन्ता में बैठे हो ? मुझको बतलाओ यह सुन राजा के नेत्रों में आंसू भर आये और साधु की वन्दना कर बोला- हे प्रभो ! आप सब कुछ जानने वाले हो । इतना कह साधु को अपनी सम्पूर्ण कहानी बतला दी । महात्मा दयालु होते हैं। उस से बोले – हे राजा ! तुम्हारी स्त्री ने बृहस्पति देव का अपराध किया था, कारण तुम्हारी यह दशा हुई। अब तुम किसी प्रकार की चिन्ता मत करो। भगवान् तुम्हें पहले से अधिक धनवान करेंगा। देखो तुम्हारी स्त्री ने गुरुवार को व्रत प्रारम्भ कर दिया हैं और तुम मेरा कहा मानकर बृहस्पतिवार को व्रत करके चने की दाल गुड़ जल के लोटे में डालकर केले का पूजन करो । फिर कथा कहो और सुनो । भगवान् तेरी सब कामनाओं को पूर्ण करेंगे । साधु को प्रसन्न देखकर राजा बोला- हे प्रभो ! मुझे लकड़ी बेचकर इतना पैसा नहीं मिलता जिससे भोजन करने के उपरान्त कुछ बचा सकूं। मैंने रात्रि में अपनी रानी को व्याकुल देखा है। मेरे पास कुछ भी नहीं जिससे उसकी खबर तो मंगा सकूँ और फिर मैं कौन सी कहानी कहूं यह मुझको कुछ भी मालूम नहीं हैं।

साधु ने कहा- हे राजा ! तुम किसी बात की चिन्ता मत करो। बृहस्पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियां लेकर शहर को जाना। तुमको रोजाना से दोगुना धन प्राप्त होगा । जिससे तुम भली-भांति भोजन कर लोगे तथा बृहस्पति देव की पूजा का सामान भी आ जावेगा और बृहस्पतिवार की कहानी निम्न प्रकार से है।

बृहस्पतिदेव की कथा | Brihaspati bhagwan ki vrat Katha

बृहस्पतिवार की कथा और आरती Brihaspativar Vrat Katha aur Aarti बृहस्पतिदेव की कथा

प्राचीन काल में एक ब्राह्मण रहता था । वह बहुत निर्धन था उसके कोई सन्तान नहीं थी। उसकी स्त्री बहुत मलीनता के साथ रहती थी। वह स्नान ना करती किसी देवता का पूजन ना करती । प्रातःकाल उठते ही सर्वप्रथम भोजन करती, बाद में कोई अन्य कार्य करती थी। इससे ब्राह्मण देवता बड़े दुःखी थे। बेचारे बहुत कुछ कहते थे, किन्तु उसका कोई परिणाम न निकला। भगवान् की कृपा से ब्राह्मण की स्त्री के कन्या रूपी रत्न पैदा हुई और वह कन्या अपने पिता के घर में बड़ी होने लगी। वह बालिका प्रातः स्नान करके विष्णु भगवान् का जाप करने लगी । बृहस्पतिवार का व्रत करने लगी। अपने पूजन पाठ को समाप्त करके स्कूल जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती । तब ये जौ स्वर्ण के हो जाते लौंटते समय उनको बीनकर घर ले आती थी । एक दिन वह कन्या सूप में उन सोने के जौओं को फटककर साफ कर रही थी उसके पिता ने देख लिया और कहा- हे बेटी ! 

सोने के जौओं को फटकने के लिऐ सोने का सूप होना चाहिए। दूसरे दिन गुरुवार था इस कन्या ने व्रत रक्खा और बृहस्पति देव से प्रार्थना करके कहा- हे प्रभो ! मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो। बृहस्पतिवार देव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलाती हुई जाने लगी जब लौटकर जौ बीन रही थी तो बृहस्पति देव की कृपा से उसे सोने का सूप मिला उसे वह घर ले आई और उससे जौ साफ करने लगी परन्तु उसकी मां का वही ढंग रहा।

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एक दिन की बात है कि वह कन्या सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी। उस समय उस शहर का राजपुत्र वहाँ होकर निकला । इस कन्या के रूप और कार्य को देखकर मोहित हो गया तथा अपने घर आकर भोजन तथा जल त्याग कर उदास हो लेट गया। जब राजा को इस बात का पता लगा तो अपने प्रधान मंत्री के साथ उसके पास गये और बोले-हे बेटा ! तुम्हारा किसी ने अपमान किया है। अथवा कोई और कारण हो सो कहो मैं वही कार्य करूंगा। जिससे तुम्हे प्रसन्नता हो। अपने पिता की राजकुमार ने बातें सुनी तो वह बोला मुझे आपकी कृपा से किसी बात का दुःख नहीं है, न किसी ने मेरा अपमान किया हैं परन्तु मैं उस लड़की के साथ विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी।

यह सुन राजा आश्चर्य में पड़ा और बोला- हे बेटा ! इस तरह की कन्या का पता तुम्हीं लगाओ मैं उसके साथ तेरा विवाह अवश्य ही करवा दूंगा । राजकुमार ने उस लड़की के घर का पता बतलाया तब मंत्री उस लड़की के घर गये और ब्राह्मण देवता को सभी हाल बतलाया । ब्राह्मण देवता राजकुमार के साथ अपनी कन्या का विवाह करने के लिए तैयार हो गये विधि-विधान के अनुसार ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ हो गया। कन्या के घर से जाते ही पहले की भांति उस ब्राह्मण देवता के घर में गरीबी का निवास हो गया। अब भोजन के लिए भी अन्न बड़ी मुश्किल से मिलता था ।

एक दिन दुःखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गये। बेटी ने पिता की दुःखी अवस्था को देखा और अपनी मां का हाल पूछा । तब मह्मण ने सभी हाल कहा। कन्या ने बहुत सा धन देकर अपने पिता को बिदा कर दिया । इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय सुखपूर्वक व्यतीत हुआ । कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया । ब्राह्मण फिर अपनी कन्या के पास यहाँ गया और सभी हाल कहा तो किया हैं परन्तु मैं उस लड़की के साथ विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी। यह सुन राजा आश्चर्य में पड़ा और बोला- हे बेटा ! इस तरह की कन्या का पता तुम्हीं लगाओ मैं उसके साथ तेरा विवाह अवश्य ही करवा दूंगा ।

राजकुमार ने उस लड़की के घर का पता बतलाया तब मंत्री उस लड़की के घर गये और ब्राह्मण देवता को सभी हाल बतलाया । ब्राह्मण देवता राजकुमार के साथ अपनी कन्या का विवाह करने के लिए तैयार हो गये विधि-विधान के अनुसार ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ हो गया। कन्या के घर से जाते ही पहले की भांति उस ब्राह्मण देवता के घर में गरीबी का निवास हो गया। अब भोजन के लिए भी अन्न बड़ी मुश्किल से मिलता था ।

एक दिन दुःखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गये। बेटी ने पिता की दुःखी अवस्था को देखा और अपनी मां का हाल पूछा । तब मह्मण ने सभी हाल कहा। कन्या ने बहुत सा धन देकर अपने पिता को बिदा कर दिया । इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय सुखपूर्वक व्यतीत हुआ । कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया । ब्राह्मण फिर अपनी कन्या के पास यहाँ गया और सभी हाल कहा तो

लड़की बोली-हे पिताजी ! आप माताजी को यहां लिवा लाओ । मैं उसे विधि बता दूंगी। जिससे गरीबी दूर हो जाए । तब ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर पहुंचे तो पुत्री अपनी माँ को समझाने लगी-हे माँ ! तुम प्रातःकाल उठकर प्रथम स्नानादि करके विष्णु भगवान् का पूजन करो तो सब दरिद्रता दूर हो जावेगी । परन्तु उसकी मां ने एक भी बात नहीं मानी और प्रातःकाल उठकर अपनी पुत्री के बच्चों की झूठन को खा लेती थी ।

एक दिन उसकी पुत्री को भी बहुत गुस्सा आया एक रात कोठरी से सभी सामान निकाल दिया और अपनी मां को उसमें बन्द कर दिया। प्रातःकाल उसमें से निकाला तथा स्नानादि कराके पाठ करवाया तो उसकी मां की बुद्धि ठीक हो गई और फिर प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मां भी बहुत धनवान हो गयी और बृहस्पति जी के प्रभाव से स्वर्ग को प्राप्त हुई तथा वह ब्राह्मण भी सुख पूर्वक इस लोक के सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुआ।

इस तरह कहानी कहकर राजा जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचने गया उसे उस दिन और दिन से अधिक पैसा मिला। राजा ने चना गुड़ आदि लाकर गुरुवार का व्रत किया। उस दिन से उसके सभी कलेश दूर होने लगे परन्तु जब दुबारा गुरुवार का दिन आया तो बृहस्पतिवार का व्रत करना भूल गया । इस कारण बृहस्पति भगवान् नाराज हो गए । उस दिन उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा शहर में यह घोषणा करा दी कि कोई भी मनुष्य अपने घर भोजन न बनावे न आग जलावे समस्त व्यक्ति मेरे यहां भोजन करने आवे । इस आज्ञा को जो न मानेगा उसके लिए फाँसी की सजा दी जायेगी । इस तरह की घोषणा सम्पूर्ण नगर में करवा दी गई।

राजा की आज्ञानुसार शहर के सभी लोग भोजन करने गये । लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुंचा इसलिए राजा उसको अपने साथ घर ले गये और जब भोजन करा विदा कर रहे थे तो रानी की दृष्टि उस खूंटी पर पड़ी जिस पर उसका हार लटका हुआ था वह वहां पर दिखाई नहीं दिया। रानी ने निश्चय किया कि मेरा हार इसी मनुष्य ने चुरा लिया है। उसी समय पुलिस को बुलाकर उसको जेलखाने में डलवा दिया। जब राजा जेलखाने में पड़ गया और बहुत दुःखी होकर विचार करने लगा कि न जाने कौन से पूर्व जन्म के कर्म से मेरे लिए दुःख प्राप्त हुआ और उसी साधु की याद करने लगा जो कि जंगल में मिला था। उसी समय तत्काल बृहस्पति देव साधू के रूप में प्रगट हो गए और उसकी दशा को देखकर कहने लगे-अरे मूर्ख ! तूने बृहस्पति देवता की कथा नहीं की इस कारण तेरे लिए दुःख प्राप्त हुआ है। अब चिन्ता मत कर बृहस्पतिवार के दिन जेलखाने के दरवाजे पर चार पैसे पड़े मिलेंगे उनसे तू बृहस्पति देव की पूजा करना तेरे सभी कष्ट दूर हो जावेंगे।

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बृहस्पतिवार के रोज उसे चार पैसे मिले । राजा ने कथा कही उसी रात को बृहस्पति देव ने उस नगर के राजा को स्वप्न में कहा- हे राजा ! तुमने जिस आदमी को जेलखाने में बंद कर दिया है वह निर्दोष है। वह राजा है उसे छोड़ देना रानी का हार उसी खूंटी पर लटका हुआ है अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं तेरे राज्य का नष्ट कर दूंगा। इस तरह के स्वप्न को देख राजा प्रातःकाल उठा और खूंटी पर हार देखकर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी तथा राजा को योग्य सुन्दर वस्त्र आभूषण देकर विदा किया तथा गुरुदेव की आज्ञानुसार राजा अपने नगर को चल दिया। राजा जब नगर के निकट पहुंचा तो उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ। नगर में पहले से अधिक बाग, तालाब और कुएं तथा बहुत सी धर्मशाला मन्दिर आदि बन गई थी। राजा ने पूछा कि यह किसके बाग और धर्मशाला हैं। तब नगर के सब लोग कहने लगे यह सब रानो और बांदी के हैं, तब राजा को आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया । जब रानी ने यह खबर सुनी कि राजा आ रहे हैं तो उसने बांदी से से कहा कि हे दासी! देख राजा हमको कितनी बुरी हालत में छोड़ गये थे। वह हमारी ऐसी हालत देखकर लौट न जायें। इसलिए तू दरवाजे पर खड़ी हो जा ।

आज्ञानुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो गई और राजा आये तो उन्हें अपने साथ लिवा लाई । तब राजा ने क्रोध करके अपनी तलवार निकाली और पूछने लगे यह बताओ कि यह धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ है तब उन्होंने कहा कि हमें यह सब धन बृहस्पति देव के व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है ।

राजा ने निश्चय किया कि सात रोज बाद तो सभी बृहस्पति देव का पूजन करते हैं, परन्तु मैं रोजाना दिन में तीन बार कहानी कहा करूंगा तथा रोज व्रत किया करूंगा । अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बंधी रहती तथा दिन में तीर बार कहानी कहता । एक रोज राजा ने बिचार किया कि चलो अपनी बहन के यहां हो आवें ।

इस तरह निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार हो अपनी बहन के घर जाने लगा । मार्ग में उसने देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लिए जा रहे हैं उन्हें रोककर राजा कहने लगा-अरे भाइयो ! मेरी बृहस्पति देव की कहानी सुल लो वे बोले लो हमारा तो आदमी मर गया है इसको अपनी कथा की पड़ी है। परन्तु कुछ आदमी बोले अच्छा कहो हम तुम्हारी कथा भी सुनेंगे । राजा ने दाल निकाली और जब कथा आधी हुई थी कि मुर्दा हिलने लग गया और जब कथा समाप्त हो गई तो मुर्दा राम-राम करके मनुष्य खड़ा हो गया । आगे मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला । राजा ने उसे देखा और उससे बोला-अरे भइया ! तुम मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन लो । किसान बोला जब तक मैं तेरी कथा सुनूंगा तब तक चार हरैया जोत लूंगा जा अपनी कथा किसी और को सुनाना । इस तरह राजा आगे चलने लगा। राजा के हटते ही बैल पछाड़ खाकर गिर गए तथा उसके पेट में बहुत जोर से दर्द होने लगा उस समय उसकी मां रोटी लेकर आई उसने जब यह देखा तो अपने पुत्र से सब हाल पूछा और बेटे ने सभी हाल कह दिया तो बुढ़िया दौड़ी-दौड़ी उस घुड़सवार के पास गई और बोली मैं तेरी कथा सुनूंगी तू अपनी कथा मेरे खेत पर चलकर कहना । राजा ने बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा कही जिसके सुनते ही बैल खड़े हो गये तथा किसान के पेट का दर्द बन्द हो गया। राजा अपनी बहन के घर पहुंच गया। बहन ने भाई की खूब मेहमानी की । दूसरे रोज प्रातःकाल राजा जगा तो वह देखने लगा कि सब लोग भोजन कर रहे हैं ।

राजा ने अपनी बहन से कहा कि ऐसा कोई मनुष्य है जिसने भोजन न किया हो मेरी वह बृहस्पतिवार की कथा सुन ले। बहिन बोली- हे भैया ! यह देश ऐसा ही है। पहले यहां लोग भोजन करते है। बाद में अन्य काम करते हैं अगर कोई पड़ोस में हो तो देख लाऊँ ।

वह ऐसा कहकर देखने चली गई परन्तु उसे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला। जिसने भोजन न किया हो अतः वह एक कुम्हार के घर गई जिसका लड़का बीमार था । उसे मालूम हुआ कि उनके यहां तीन रोज से किसी ने भोजन नहीं किया है। रानी ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से कहा वह तैयार हो गया । राजा ने जाकर बृहस्पति की कथा कहीं, जिसको सुनकर उसका लड़का ठीक हो गया । अब तो राजा को प्रसन्नता होने लगी । एक दिन राजा ने अपनी  बहिन से कहा-हे बहिन ! हम अपने घर को जायेंगे तुम भी तैयार हो जाओ। राजा की बहिन ने अपनी सास से पूछा । सास बोली हां चली जा । परन्तु अपने लड़कों को मत ले जाना क्योंकि तेरे भाई के कोई सन्तान नहीं है। बहिन ने अपने भाई से कहा- हे भाई ! मैं तो चलूंगी मगर कोई बालक नहीं जायेगा । राजा बोला जब कोई बालक नहीं चलेगा तब तुम ही क्या करोगी ? बड़े दुःखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया। राजा ने अपनी रानी से कहा हम निरवंशी राजा हैं। हमारा मुंह देखने का धर्म नहीं है और कुछ भोजन आदि नहीं किया। रानी बोली-हे प्रभो ! बृहस्पति देव ने हमें सब कुछ दिया तो सन्तान भी अवश्य देंगे ।

उसी रात को बृहस्पति देव ने राजा से स्वप्न में कहा- हे राजा ! उठ, सभी सोच त्याग दे तेरी रानी गर्भ से है राजा को यह बात सुनकर बड़ी खुशी हुई नवें महीने में उसके गर्भ से एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ तब राजा बोला- हे रानी ! स्त्री बिना भोजन के रह सकती है। बिना कहे नहीं रह सकती जब मेरी बहिन आवे तुम उससे कुछ ना कहना। रानी ने सुनकर हाँ कर दिया। जब राजा की बहिन ने यह शुभ समाचार सुना तो वह बहुत खुश हुई तथा बधाई लेकर अपने भाई के यहां आई, तभी रानी ने कहा घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई गधा चढ़कर आई । राजा की बहन बोली भाभी मैं इस प्रकार न कहती तो तुम्हें औलाद कैसे मिलती ? बृहस्पति देव ऐसे ही हैं, जैसी जिसके मन में कामनाएं हैं, सभी को पूर्ण करते हैं। जो सद्भावना पूर्वक बृहस्पतिवार का व्रत करता है एवं कथा पढ़ता अथवा सुनता है और दूसरों का सुनाता है भगवान् बृहस्पति उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं ।

भगवान् बृहस्पति देव उसकी सदैव रक्षा करते हैं। संसार में सच्ची भावना से जो भगवान् जी का पूजन व्रत सच्चे मन और श्रद्धा से करते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जैसे सच्ची भावना से रानी और राजा ने उसकी कथा का गुणगान किया तो उनकी सभी इच्छाएं बृहस्पति देव जी ने पूर्ण की थीं। इसलिए सबको कथा सुनने के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिए। हृदय से उनका मनन करते हुए जयकारे बोलना चाहिए ।

बोलो बृहस्पति देव की जय । विष्णु भगवान की जय ॥


बृहस्पतिवार की कथा और आरती Brihaspativar Vrat Katha aur Aarti बृहस्पतिदेव की कथा

बृहस्पति देव जी की आरती | Brihaspativar vrat katha aarti

ॐ जय बृहस्पति देवा, स्वामी जय बृहस्पति देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा। (ॐ जय..)
पार ब्रह्म बृहस्पतिश्वर, तुम सबके स्वामी।
ज्ञान न जानूं ध्यान न जानू नित्य करू सेवा। (ॐ जय..)
तुम बिन बृहस्पति और न दूजा आस करूं किसकी।
मैं अज्ञान अगोचर, तुम फल के देवा। (ॐ जय..)
पार ब्रह्म परमात्मा, तुम हो प्राणपति।
दर्श दिखाओ मत तरसाओ चारों फल देवा। (ॐ जय..)
बृहस्पतिजी की आरती जो कोई नर गावे।
दर्शन पावे जो कोई ध्यावे विघ्न काटे देवा। (ॐ जय..)


भगवानम डॉट कॉम  पर हमने आपको इस साल आने वाली सभी व्रत और उपवास के नियम, पूजन की विधि – विधान और उनसे जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में जानकारी दी है। यहाँ आप विस्तार से जान सकते हैं कि उस दिन क्या-क्या किया जाना चाहिए। और सत्यनारायण व्रत के नियम क्या है (Brihaspativar vrat katha lyrics) जिससे आपको व्रत रखने में और व्रत कथा में किसी भी प्रकार की समस्या न हो।

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