सोमवार व्रत के नियम विधि (Somvar Somvar Vrat Niyam Vidhi)

देवादिदेव महादेव जिनसे संसार में कुछ भी अनभिग्य नहीं है, सारी सृष्टि के त्रिदेवों में से एक महादेव जिनके दिन है (Somvar Somvar Vrat Niyam Vidhi) सोमवार, और सोमवार व्रत विधि विधान से करने से साधाक के सारे कष्ट भगवान शिव हार लेते है और शिव जी का सावन चल ही रहा है, अगर आप भी शिव जी व्रत प्रारंभ करना चाहते है तो इस अभी शुरू कर दीजिये और पढ़िए सावन सोमवार व्रत के नियम विधि।

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सोमवार व्रत के नियम विधि (Somvar Somvar Vrat Niyam Vidhi)

सोमवार का व्रत देवाधिदेव भगवान शंकर की प्रसन्नता के लिये किया जाता है। ये भक्तों की सेवा-पूजा से शीर्घ ही प्रसन्न हो जाते हैं और उनके अपराध, पाप और दोषों को क्षमा कर उन्हें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पदार्थों को प्रदान करते हैं। इनकी लीलाओं का वर्णन शिवपुराणादि ग्रंथों में दिया गया है जिनसे इनके दयालु, आशुतोष और अवढरदानी होने के अनेकानेक प्रणाम मिलते हैं। सोमवार के व्रत तीन प्रकार के होते हैं-

सोमवार का व्रत हर सोमवार को किया जाता है। चैत्र, वैशाख, श्रावण, कार्तिक अथवा मार्गशीष (अगहन) मास के किसी भी सोमवार से व्रत रखना शुरु कर सकते हैं। इनमें श्रावण मास के सोमवार से व्रत शुरु करने का अधिक महत्व है। भविष्य पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल अष्टमी को यदि सोमवार को आर्द्रा नक्षत्र हो तो उस दिन व्रत का आरम्भ करना अधिक शुभकारी है।

सोलह सोमवार के व्रत श्रावण के प्रथम सोमवार से शुरु करके लगातार चार मासों के प्रत्येक सोमवार के व्रत श्रावण के प्रथम सोमवार से शुरु करके लगातार चार मासों के प्रत्येक सोमवार को किये जाते हैं। सोमवार का व्रत जब भी प्रदोष व्रत के दिन पड़ता हो, उस दिन सोम प्रदोष रखा जाता है। सोमवार व्रत को स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं तथा किसी भी महीने के सोमवार से व्रत शुरु करें तो इसमें कोई दोष आदि नहीं होता।

भगवान शंकर का यहव्रत श्रद्धा और नियमपूर्वक करने पर कभी निष्फल नहीं होता। प्राचीनकाल में विचित्रकर्मा की पुत्री सीमन्तिनी का पति चित्रांगद नाव उलट जाने से जल में डूबकर नागलोक जा पहुँचा था। सीमन्तिनी द्वारा किये गये व्रत के प्रभाव से वह वापिस आकर विचित्रवर्मा का उत्तराधिकारी बना और बहुत वर्षों तक राज्य कर शिवलोक को गया।

व्रती को पहले से ही व्रत की सब सामग्री जुटाकर व्रत करने का संकल्प करना चाहिए, और स्नानदि से निवृत हो स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर शिव-पार्वती का ध्यान करते हुए सुगन्धित श्वेत पुष्पों के साथ षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। शिवजी का ‘ॐ नमः शिवाय’ तथा पार्वतीजी का ‘ॐ नमः शिवायै’ मन्त्र जाप करते हुए पूजन करने का अधिक महत्व है।

पूजन में श्री शिव-पार्वती की मूर्ति या चित्र तथा ताम्रपात्र पर अंकित शिवयंत्र को रखना चाहिए। आक के फूल, धतूरे का फल भी रख सकते हैं। पूजन में जलधार एवं बिल्वपत्र चढ़ाना चाहिए। घृत का दीपक जलाकर, धूपादि से स्थान सुगन्धित कर लेना चाहिए। फल-फूल ऋतुफल, नैवेद्य, दक्षिणादि अर्पित करनी चाहिए।

पूजा के पश्चात् व्रत की कथा का पाठ करें अथवा सुनें। शिवजी के भजन गाएँ, आरती-स्तुति कर साष्टांग दण्डवत् करें। भस्म और रुद्राक्ष धारण कर सारे दिन शान्त चित्त से भगवान शिव-पार्वती का ध्यान करें। विशेष रूप से उस दिन दुर्वचन न बोलें और क्रोध-कलहन करें। साधारणतः व्रत तीसरे प्रहर तक किया जाता है।

व्रत में फलाहार, फलों का रस पीना तथा एक समय ही भोजन करना चाहिए। व्रत के लिये किसी भी विशेष विधि को अपनाया जाये लेकिन आवश्यकता विशेष यह है कि पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से अन्तरात्मा को जाग्रत करके व्रत सम्पन्न करना चाहिए। इसीसे शिवजी प्रसन्न होते हैं तथा सायुज्य भी प्रदान करते हैं।

प्रति सोमवार व्रत उद्यापन विधि (Somvar Vrat Udyapan Vidhi)

कामनाओं की पूर्ति के पश्चात् व्रत को उद्यापन द्वारा पूर्णता प्रदान की जाती है। यह शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार किया जाता है। इस दिन व्रत करके सोने, चाँदी या ताँबे की शिव-पार्वती की मूर्ति पूजा में रखते हैं। षोडस उपचारों से पूजन और हवन करके ब्राह्मणों को भोजन कराके और यथाशक्ति दान देकर उन्हें सन्तुष्ट करना चाहिए। सायंकाल शिव कथा का श्रवण एवं कीर्तन करके मन को शिव तत्व के आनन्द में भरना चाहिए।


भगवानम डॉट कॉम  पर हमने आपको इस साल आने वाली सभी व्रत और उपवास के नियम, पूजन की विधि – विधान और उनसे जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में जानकारी दी है। यहाँ आप विस्तार से जान सकते हैं कि उस दिन क्या-क्या किया जाना चाहिए। और सत्यनारायण व्रत के नियम क्या है (Brihaspativar vrat katha lyrics) जिससे आपको व्रत रखने में और व्रत कथा में किसी भी प्रकार की समस्या न हो।

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