श्री गणेशाय नमः, शास्त्रों में निहित है (Ganesh Ji Ka Parivar) अनंत काल की रचनाओ के बाद श्री गणेश का जन्म माता पार्वती द्वारा हुआ लेकिन इसके पीछे का उद्देश्य कुछ अलग ही था, जिसकी कल्पना हम प्राणियों के सोच के परे है लेकिन कलंतारो से चले आ रहे विवाद सर्वप्रथम पूजन को विराम देने के लिए परमात्मा स्वरुप भगवान श्री गणेश की प्रकोत्य हुए, तो इस लेख में आज हम आपको श्री गणेश जी का परिवार परिचय की जानकारी देंगे जिससे आप समझ पाएंगे अंततः भगवान श्री गणेश की प्रकोत्य संसार के लिए आवश्यक है।
गणेश जी के पिता ‘शिव’ हैं। शिव का अर्थ है कल्याण तथा पुत्र विघ्ननाशक है । इसका रहस्य है कि शिव तत्त्व की प्राप्ति के लिए अनन्तर साधक के साधन मार्ग की समस्त विघ्न-बाधाएँ स्वतः ही नष्ट हो जाएँगी और विघ्न-बाधाओं के नष्ट होते ही साधक को अनन्त ऋद्धियाँ एवं सिद्धियाँ प्राप्त हो जाएँगी । शिव तत्व प्राप्त होने पर मायिक बन्धन रूपी विघ्नों के महाध्वंस गणेश का प्रादुर्भाव होगा। गणेश-विघ्नों का अंत ऋद्धि-सिद्धि-मंगल की प्राप्ति।
दूसरा रहस्य यह है कि शिब तत्व को प्राप्त किये बिना-
1. माया और प्रपंच के बंधन रूपी बाधाओं से मुक्ति।
२. मंगल प्राप्ति एवं
३. साधना में सिद्धि प्राप्ति । ये असंभव है क्योंकि पिता के बिना पुत्र का जन्म असम्भव है ।
गणेशजी की माता पार्वती जी गणेश जी की माता हैं। पार्वती का अर्थ ‘पर्ववती’ है। तीन पर्व होते हैं । ज्ञान, इच्छा और क्रिया (त्रिपर्व) इन पर्वत्रयों में सामरस्य की प्रतिमूर्ति पार्वती जी हैं। पार्वती जी की भांति साधकों के भी ज्ञान, इच्छा एवं क्रिया रूप पर्वत्रय में सामरस्य की स्थिति आने पर गणेश का जन्म होगा ।
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गणेश जी के भ्राता-कार्तिकेय (षडानन) गणेश जी के बड़े भ्राता हैं। शिव के बड़े पुत्र हैं ।
षडानन अर्थात् पाँच इन्द्रियाँ और एक मन। भौतिक जगत् षडानन तक ही सीमित है और उनकी अन्तिम शक्ति सेना एवं सेनापति में प्रतिष्ठित है। देवता भोगी होते हैं, तपस्वी नहीं। अतः ‘षडानन’ से परे नहीं जा सकते। षडानन (५+१) देवों के सुरक्षा प्रहरी हैं। देवताओं में षडानन से परे जाने की क्षमता नहीं किन्तु गणेश षडानन से परे हैं । आध्यात्मिक शक्ति, आध्यात्म बल, बुद्धि के स्वामी हैं। वे बुद्धि के देवता हैं, देवों के अध्यक्ष हैं। प्रत्युत षडानन के छोटे होने पर भी उनके अग्रगण्य हैं।
गणेश जी की पत्नियाँ-ऋद्धि, सिद्धि (बुद्धि) गणेश जी की पत्नियाँ हैं। इसका रहस्य यह है कि जब साधना क्षेत्र में शिव तत्व प्राप्ति के अनन्तर विघ्नों के नाशक गणेश बनने की क्षमता आ जाती है और तब सभी ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ साधक के लिए स्वपन्निवत् स्ववश्वर्तिनी हो जाती हैं ।
गणेश जी के पुत्र-गणेश के पुत्रों के नाम शुभ (क्षेम) एवं लाभ है। इसका रहस्य यह है कि साधना क्षेत्र में सनातन ‘क्षेम’ एवं सनातन ‘लाभ’ प्राप्त करने के लिए गणेश अर्थात् शिवपुत्र बनना ही पड़ेगा। अन्यथा ‘क्षेम’ एवं लाभ की प्राप्ति संभव नहीं है ।
गणेश जी का स्तोत्र
पिता पंच आनन है, अग्रज षडानन है ।
स्वयं गज आनन है संकट निवारते ॥
गिरिजा के नन्दन हैं, पूज्य गजवन्दन हैं ।
भक्त उर चन्दन है, ऋद्धि-सिद्धि वारते ॥
मंगल-विधायक है, बुद्धि के प्रदायक हैं ।
महागण-नायक हैं, विघ्न-व्यूह टारते ॥
मोद को बढ़ाते, भक्त मोदक चढ़ाते ।
शुण्ड-दण्ड से उठाते, मुख-मण्डल में धारते ।।
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