श्री गणेश विसर्जन की परंपरा एवं अध्यात्मिक महत्व (Ganesh Visharjan)

श्री गणपति महोत्सव | Ganesh Mahotsav

▪️वैसे तो गणेश उत्सव केवल परंपरा मात्र नहीं है यह एक अनुष्ठान है, और अनुष्ठान हमेशा पूरी आस्था- विश्वास और प्रबल पुरुषार्थ से किए जाते हैं।

▪️अनुष्ठान ऐसे स्थान पर किए जाते हैं जहां का वातावरण- भौगोलिक परिस्थितियां उस अनुष्ठान के अनुकूल हो। या फिर हमारा इतना दृढ़ पुरुषार्थ हो कि हम वहां का वातावरण और वहां की परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना सकें।

▪️अनुष्ठान में हुड़दंग, अनुशासनहीनता, अपवित्रता, शास्त्र नियमों की अवहेलना बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। यदि किसी भी अनुष्ठान में अनुशासनहीनता व अपवित्रता होगी तो वह उत्सव- अनुष्ठान पूरी सृष्टि व जन समुदाय के लिए कदापि हितकर नहीं होता।

▪️ गणेशजी विसर्जन के समय आस्था के साथ-साथ प्रकृति व पर्यावरण का भी विशेष ध्यान रखें। आपने गणेश जी की 10 दिन तक विधिवत पूजा उपासना की है अतः गणेश जी का विसर्जन भी पूरे आदर व सम्मान के साथ करें।

श्री गणेश स्थापना व विसर्जन की परंपरा | Ganesh Visarjan Ka Mahatva

धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत ग्रंथ की रचना करने का निर्णय लिया और इस दिव्य अनुष्ठान को संपन्न करने के लिए वेदव्यास जी ने गंगा नदी के किनारे एकांत पवित्र स्थल का चुनाव किया। लेकिन, लेखन का कार्य महर्षि के वश का नहीं था। इसलिए उन्होंने इसके लिए भगवान श्री गणेश की आराधना की और उनसे प्रार्थना करी कि वे एक महाकाव्य जैसे महान ग्रंथ को लिखने में उनकी सहायत करें। गणपती जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ।

इसके लिए महर्षि वेद व्यास ने गणेश चतुर्थी वाले दिन से ही भगवान गणेश को लगातार 10 दिन तक महाभारत की कथा सुनाई थी जिसे श्री गणेश जी ने अक्षरशः लिखा था। महर्षि वेद व्यास जी ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की और लेखन का शुभ कार्य आरंभ कर दिया।

महाकाव्य कहे जाने वाले महाभारत ग्रंथ का लेखन कार्य लगातार 10 दिनों तक चला और अनंत चतुर्दशी के दिन यह लेखन कार्य संपन्न हुआ। लेकिन जब कथा पूरी होने के बाद महर्षि वेदव्यास ने आंखें खोली तो देखा कि इस दिव्य काव्य के तेज व अत्याधिक मेहनत करने के कारण गणेश जी के शरीर का तापमान बढ़ा हुआ है। ऐसे में गणेश जी के शरीर का तापमान कम करने के लिए महर्षि वेदव्यास जी ने गंगा नदी में गणेश जी स्नान करवाया।

अनंत चर्तुदशी के दिन गणेश जी के तेज को शांत करने के लिए गंगा नदी में स्नान कराया गया था, इसीलिए इस दिन गणेश प्रतिमा का विसर्जन करने का चलन भी शुरू हुआ। पौराणिक ग्रंथों में भी श्री गणेश प्रतिमा के विसर्जन का उल्लेख किया गया है।कहा जाता है कि सनातन हिंदू धर्म संस्कृति में तभी से भगवान गणपती को 10 दिनों तक बैठाने की प्रथा चल पड़ी। और दसवें दिन उनका विसर्जन यानी जल स्नान करवाया जाता है।।

सर्जन व विसर्जन का आध्यात्मिक महत्व | Ganesh Visarjan Ka Mahatva

सर्जन की कला के साथ-साथ विसर्जन की कला भी आनी चाहिए। और गणेशोत्सव जैसे अनुष्ठान हमें सर्जन व विसर्जन दोनों की कला सीखाते हैं। और जीवन के मायने भी कुछ ऐसे ही हैं, जिन्हें सर्जन के साथ-साथ विसर्जन की कला सीख ली, वही व्यक्ति अपने जीवन में प्रसन्न रह सकता है और परम आनंद को प्राप्त हो सकता है।

17 सितंबर, मंगलवार को सुबह पूजा उपासना के बाद आप विधिवत श्री गणेश जी का विसर्जन करें। गणेश जी का विसर्जन करने से पहले जाने -अनजाने में किसी भी प्रकार की त्रुटि (गलतियां) हुई है, उसके लिए गणेश जी से क्षमा याचना करें और सभी के मंगल की कामना करते हुए गणेश जी को पुनः जल्दी आने की प्रार्थना करें।।

प्रसन्न रहे/ आनंदित रहें और उत्सव को धूमधाम से मनाएं।


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