रात्रि सूक्त, जिसे “रात्रि सूक्तम्” भी कहा जाता है, ऋग्वेद का एक महत्वपूर्ण मंत्र है रात्रि देवी से सुरक्षा, शांति और आशीर्वाद की प्रार्थना करता है।(Ratri Suktam) नवरात्रि में माँ दुर्गा की साधना में देवी सूक्त का पाठ बहुत फलदायी होता हैं। देवी शक्तियों से ओतप्रोत देवी सूक्त का पाठ साधक की हर मनोरथ को पूरी करता है, किसी कार्य में आने वाली अड़चनो को दूर करता है, मानसिक संताप दूर करता है, धन, ऐश्वर्य और वैभव देकर आनंद और शांति देता है।
नवरात्र में शक्ति साधना व कृपा प्राप्ति का सरल उपाय देवी-सूक्त का पाठ है। देवी सूक्तम् ऋग्वेद का एक मंत्र है जिसे अम्भ्राणी सूक्तम् भी कहते हैं। इसमें 8 श्लोक हैं। यह वाक् (वाणी) को समर्पित है।
।। रात्रि सूक्तम ।।
अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्र्चराम्यहमादित्यैरुत विश्र्वदेवैः।
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्र्विनोभा॥1॥
ब्रह्मस्वरुपा मैं रुद्र, वसु, आदित्य और विश्र्वदेवता के रुप में विचरण करती हूँ, अर्थात् मैं ही उन सभी रुपो में भासमान हो रही हूँ। मैं ही ब्रह्मरुप से मित्र और वरुण दोनों को धारण करती हूँ। मैं ही इन्द्र और अग्नि का आधार हूँ। मैं ही दोनो अश्विनी कुमारों का धारण-पोषण करती हूँ।
अहंसोममाहनसंबिभर्म्यहंत्वष्टारमुतपूषणंभगम्।
अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते॥2॥
मैं ही शत्रुनाशक, कामादि दोष-निवर्तक, परमाल्हाददायी, यज्ञगत सोम, चन्द्रमा, मन अथवा शिव का भरण पोषण करती हूँ। मैं ही त्वष्टा, पूषा और भग को भी धारण करती हूँ। जो यजमान यज्ञ में सोमाभिषव के द्वारा देवताओं को तृप्त करने के लिये हाथ में हविष्य लेकर हवन करता है, उसे लोक-परलोक में सुखकारी फल देने वाली मैं ही हूँ।
अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम्।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्यावेशयन्तीम्॥3॥
मैं ही राष्ट्री अर्थात् सम्पूर्ण जगत् की ईश्र्वरी हूँ। मैं उपासकों को उनके अभीष्ट वसु-धन प्राप्त कराने वाली हूँ। जिज्ञासुओं के साक्षात् कर्तव्य परब्रह्म को अपनी आत्मा के रुप में मैंने अनुभव कर लिया है। जिनके लिये यज्ञ किये जाते हैं, उनमें मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ। सम्पूर्ण प्रपञ्चके रुप में मैं ही अनेक-सी होकर विराजमान हूँ। सम्पूर्ण प्राणियों के शरीर में जीवनरुप में मैं अपने-आपको ही प्रविष्ट कर रही हूँ। भिन्न-भिन्न देश, काल, वस्तु और व्यक्तियों में जो कुछ हो रहा है, किया जा रहा है, वह सब मुझ में मेरे लिये ही किया जा रहा है। सम्पूर्ण विश्वके रुपमें अवस्थित होने के कारण जो कोई जो कुछ भी करता है, वह सब मैं ही हूँ।
मया सो अन्नमत्ति यो विपश्यति यः प्राणितियईं श्रृणोत्युक्तम्।
अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धिवं ते वदामि॥4॥
जो कोई भोग भोगता है, वह मुझ भोक्त्री की शक्ति से ही भोगता है। जो देखता है, जो श्र्वासोच्छ्वास रुप व्यापार करता है और जो कही हुई सुनता है, वह भी मुझसे ही है। जो इस प्रकार अन्तर्यामिरुपसे स्थित मुझे नहीं जानते, वे अज्ञानी दीन, हीन, क्षीण हो जाते हैं। मेरे प्यारे सखा! मेरी बात सुनो, मैं तुम्हारे लिये उस ब्रह्मात्मक वस्तुका उपदेश करती हूँ, जो श्रद्धा-साधन से उपलब्ध होती है।
अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः।
यं कामये तं तमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम्॥5॥
मैं स्वयं ही ब्रह्मात्मक वस्तु का उपदेश करती हूँ। देवताओं और मनुष्यों ने भी इसी का सेवन किया है। मैं स्वयं ब्रह्मा हूँ। मैं जिसकी रक्षा करना चाहती हूँ, उसे सर्वश्रेष्ठ बना देती हूँ, मैं चाहूँ तो उसे सृष्टि कर्ता ब्रह्मा बना दूँ और उसे बृहस्पति के समान सुमेधा बना दूँ। मैं स्वयं अपने स्वरुप ब्रह्मभिन्न आत्मा का गान कर रही हूँ।
अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्विषे शरवे हन्तवा उ।
अहं जनाय समदं कृणोम्यहं द्यावापृथिवी आ विवेश॥6॥
मैं ही ब्रह्मज्ञानियों के द्वेषी हिंसारत त्रिपुरवासी त्रिगुणाभिमानी अहंकारी असुर का वध करने के लिये संहारकारी रुद्र के धनुष पर प्रत्यञ्चा चढाती हूँ। मैं ही अपने जिज्ञासु स्तोताओं के विरोधी शत्रुओं के साथ संग्राम करके उन्हें पराजित करती हूँ। मैं ही द्युलोक और पृथिवी में अन्तर्यामिरुप से प्रविष्ट हूँ।
अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन् मम योनिरप्स्वन्तः समुद्रे।
ततो वि तिष्ठे भुवनानु विश्वोतामूं द्यां वर्ष्मणोप स्पृशामि॥7॥
इस विश्वके शिरोभाग पर विराजमान द्युलोक अथवा आदित्य रुप पिता का प्रसव मैं ही करती रहती हूँ। उस कारण में ही तन्तुओं में पटके समान आकाशादि सम्पूर्ण कार्य दीख रहा है। दिव्य कारण-वारिरुप समुद्र, जिसमें सम्पूर्ण प्राणियों एवं पदार्थों का उदय-विलय होता रहता है, वह ब्रह्मचैतन्य ही मेरा निवास स्थान है। यही कारण है कि मैं सम्पूर्ण भूतों में अनुप्रविष्ट होकर रहती हूँ और अपने कारण भूत मायात्मक स्वशरीर से सम्पूर्ण दृश्य कार्य का स्पर्श करती हूँ ।
अहमेव वात इव प्र वाम्यारभमाणा भुवनानि विश्र्वा।
परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना सं बभूव॥8॥
वायु किसी दूसरे से प्रेरित न होने पर भी स्वयं प्रवाहित होता है, उसी प्रकार मैं ही किसी दूसरे के द्वारा प्रेरित और अधिष्ठित न होने पर भी स्वयं ही कारण रुप से सम्पूर्ण भूत रुप कार्यों का आरम्भ करती हूँ। मैं आकाश से भी परे हूँ और इस पृथ्वी से भी। अभिप्राय यह है कि मैं सम्पूर्ण विकारों से परे, असङ्ग, उदासीन, कूटस्थ ब्रह्मचैतन्य हूँ। अपनी महिमा से सम्पूर्ण जगत् के रुप में मैं ही बरत रही हूँ, रह रही हूँ।
॥इति देवी सूक्त॥
ऐसा माना जाता है कि यदि नवरात्र में जो साधक दुर्गा सप्तशती का पाठ न कर सके वह केवल देवी-सूक्त के पाठ करने से ही पूर्ण दुर्गा सप्तशती के पाठ का फल प्राप्त कर लेता हैं। देवी-सूक्त से माँ दुर्गा बहुत प्रसन्न होती हैं।
Ratri Suktam – रात्रि सूक्तम विशेष
रात्रि सूक्त, जिसे “रात्रि सूक्तम्” भी कहा जाता है, ऋग्वेद का एक महत्वपूर्ण मंत्र है, जो रात्रि देवी की स्तुति करता है। यह सूक्त रात्रि के शांतिपूर्ण और सुरक्षात्मक गुणों का वर्णन करता है और रात्रि देवी से सुरक्षा, शांति और आशीर्वाद की प्रार्थना करता है।
रात्रि सूक्तम की मुख्य बातें
- स्तुति का उद्देश्य: रात्रि सूक्त का मुख्य उद्देश्य रात्रि के समय की सुरक्षा और कल्याण की कामना करना है। यह मानव जीवन में रात्रि के महत्व को उजागर करता है।
- शांति और सुरक्षा: इस सूक्त में रात्रि देवी को शांति, सुरक्षा और कल्याण का प्रतीक माना गया है। यह भक्तों को भय और चिंता से मुक्ति दिलाने का उपाय है।
- ऋग्वेद का भाग: रात्रि सूक्त ऋग्वेद के मंडल 10 का हिस्सा है, जिसमें रात्रि देवी की महिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है।
- अर्थ और प्रभाव: इसे पाठ करने से मानसिक शांति, तनाव से मुक्ति, और रात्रि में सुरक्षित और शांतिपूर्ण नींद की प्राप्ति की कामना की जाती है।
रात्रि सूक्त एक अद्भुत प्रार्थना है जो रात्रि की देवी की आराधना करती है और मानव जीवन में रात्रि के महत्व को रेखांकित करती है। इसे विशेष रूप से रात्रि में पाठ करने की परंपरा है, ताकि रात्रि के समय शांति और सुरक्षा का अनुभव किया जा सके।
रात्रि सूक्त क्या है?
यह ऋग्वेद का एक मंत्र है जो रात्रि देवी की स्तुति करता है और रात्रि के समय की सुरक्षा और शांति की प्रार्थना करता है।
रात्रि सूक्त का पाठ कब किया जाता है?
इसे आमतौर पर रात्रि में सोने से पहले या विश्राम के समय पढ़ा जाता है, ताकि मन को शांति मिले और अच्छी नींद आ सके।
रात्रि सूक्त के लाभ?
यह मानसिक तनाव को कम करता है, शांति और सुरक्षा की भावना प्रदान करता है, और गहरी नींद के लिए सहायक होता है।
क्या यह किसी विशेष त्योहार से जुड़ा है?
यह विशेष रूप से नवरात्रि या अन्य देवी पूजा के समय में पढ़ा जा सकता है, लेकिन इसका पाठ नियमित रूप से भी किया जा सकता है।
इसका मूल संदेश क्या है?
रात्रि सूक्त का मूल संदेश यह है कि रात्रि का समय विश्राम और सुरक्षा का होता है, और यह देवी से प्रार्थना करता है कि वे भक्तों को सुरक्षित रखें।
क्या इसे किसी विशेष भाषा में पढ़ना आवश्यक है?
यद्यपि यह संस्कृत में लिखा गया है, लेकिन इसे हिंदी या अन्य भाषाओं में भी समझकर पढ़ा जा सकता है, यदि भक्त समझ सके कि वह क्या पढ़ रहा है।
रात्रि देवी का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?
रात्रि देवी को शांति, विश्राम और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। वे भय, चिंता और तनाव को दूर करने में सहायक होती हैं।
नवरात्रि में चौथा दिन कौन सी माता का होता है?
नवरात्रि में चौथा दिन कुष्मांडा माता का होता है, माँ कुष्मांडा की पूजा उपासना करना चाहिए।
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