इस वर्ष अक्षय नवमी 10 नवंबर को मनाई जा रही है। इसे आंवला नवमी भी कहते हैं (Amla Navami), और इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन का पूजन करने के लिए खास मुहूर्त (सुबह 6:40 से दोपहर 12:05 तक) और परिक्रमा करने की विधि है। इसके अलावा, सुहागिन स्त्रियाँ इस दिन सुहाग का सामान दान करती हैं, और परिवार सहित आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करना शुभ माना जाता है। पूजा से जुड़े नियम और देवी लक्ष्मी की कथा भी इस दिन खास हैं:-
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अक्षय नवमी की पूजा सामग्री
- आंवला वृक्ष (या आंवला फल अगर पेड़ संभव न हो)
- दीपक (शुद्ध घी का)
- कच्चा सूत या मौली (वृक्ष के चारों ओर परिक्रमा के लिए)
- हल्दी और कुमकुम (तिलक के लिए)
- चावल और फूल
- फल, मिठाई, और नारियल
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर)
- सुपारी और पान का पत्ता
- पवित्र जल (गंगाजल यदि उपलब्ध हो)
- भोग के लिए भोजन सामग्री (परंपरागत व्यंजन)
इन वस्त्रों से पूजन विधि को संपन्न करें और परिवार के साथ वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने का विशेष महत्व है।
आंवला नवमी क्यों मानते है?
अक्षय नवमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण तिथि है, जिसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इसे “आंवला नवमी” भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है और इसका संबंध दीर्घायु, समृद्धि, और पुण्य लाभ से जुड़ा हुआ है।
अक्षय नवमी पर आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाना, भोग लगाना और भोजन ग्रहण करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने से व्यक्ति के सभी पाप खत्म होते हैं और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन जो भी दान-पुण्य किया जाता है, उसका फल कभी नष्ट नहीं होता।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अक्षय नवमी को ही सतयुग की शुरुआत हुई थी। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है ताकि घर में सुख, शांति, और समृद्धि बनी रहे।
अक्षय नवमी का महत्व और पौराणिक कथा
अक्षय नवमी की कथा के अनुसार, देवी लक्ष्मी को एक बार महादेव और भगवान विष्णु की संयुक्त पूजा करने का विचार आया। उन्होंने पाया कि आंवला वृक्ष (जिसमें तुलसी और बिल्व के गुण माने जाते हैं) की पूजा से दोनों देवताओं को प्रसन्न किया जा सकता है। इसलिए, उन्होंने विधि-विधान से आंवला वृक्ष की पूजा की। इससे शिव और विष्णु प्रसन्न हुए, और देवी लक्ष्मी को अक्षय पुण्य का आशीर्वाद मिला। इस कारण अक्षय नवमी पर आंवला वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है, जिससे अक्षय फल और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
आंवला वृक्ष की पूजा का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व
आंवला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि इसके औषधीय गुणों के कारण इसे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना गया है। आयुर्वेद में इसे अमृत के समान माना गया है क्योंकि यह शरीर को पोषक तत्व प्रदान करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इस दिन इसकी पूजा से आध्यात्मिक शक्ति और स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है।
अक्षय नवमी की पूजा विधि और सावधानियाँ
- व्रत और संकल्प: पूजा से एक दिन पहले सात्विक भोजन करें और व्रत का संकल्प लें।
- स्नान और पूजा तैयारी: सुबह जल्दी स्नान करें और शुभ मुहूर्त में पूजा आरंभ करें।
- आंवला वृक्ष की पूजा: वृक्ष पर जल, हल्दी, कुमकुम, और मौली चढ़ाएं।
- परिक्रमा और कथा: वृक्ष के चारों ओर परिक्रमा करें और लक्ष्मी की कथा सुनें।
- भोजन और दान: वृक्ष के नीचे भोजन करें और सुहागिनों को उपहार दें।
उपहार और दान का महत्व (Amla Navami)
अक्षय नवमी पर दान और उपहार देने का विशेष महत्व है। सुहागिन स्त्रियाँ लाल चुनरी, चूड़ियाँ और अन्य वस्त्र दान करती हैं। यह दान सौभाग्यवती स्त्रियों के सम्मान और पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना को दर्शाता है।
परिवार के साथ अक्षय नवमी मनाने के तरीके
इस पर्व का एक खास पहलू है कि इसे परिवार के साथ आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर मनाया जाता है। परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिलकर भोजन करने से सामाजिक बंधन और प्रेम को बल मिलता है, जो त्योहार का एक मुख्य उद्देश्य है।
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