हमारे सनातन धर्मशास्त्रों में मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है और गर्भाधान संस्कार 16 संस्कारों में से प्रथम है।
गर्भधारण संस्कार – गर्भाधान संस्कार
- अगर माता- पिता उत्तम संतान की इच्छा रखते हैं तो उन्हें गर्भाधान से पहले उत्तम व सकारात्मक मन और स्वस्थ तन के साथ यह संस्कार करना अहम होता है।
- वैदिक काल में इस संस्कार को काफी अहम माना जाता था। गर्भाधान संस्कार स्त्री और पुरुष के उचित समय पर शारीरिक मिलन को ही कहा जाता है।
- प्राकृतिक दोषों से बचने के लिए यह संस्कार किया जाता है जिससे गर्भ सुरक्षित रहता है और उत्तम गुणों वाली सुयोग्य संतान प्राप्त होती है।
- सनातन शास्त्र व वेदों में गृहस्थ का परम दायित्व यदि कोई बताया गया है तो वह है- एक उत्तम संतान की उत्पत्ति करना।
- शास्त्रों के अनुसार जब एक गृहस्थी उत्तम संतान पैदा करता है तो वह सभी ऋणों से मुक्त हो जाता है। क्योंकि एक अच्छी संतान कुल के साथ- साथ पूरे समाज व देश के लिए भी हितकर होती है और ऐसी संतान ईश्वर की सृष्टि के संरक्षण व संवर्धन में भी अपनी भूमिका निभाने के कारण ईश्वर के प्रेम व कृपा की अधिकारी बन जाती है।
उत्तम संतान प्राप्ति के लिए गर्भावस्था के दौरान कुछ छोटे-छोटे उपाय अवश्य करें-:
गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क अपनी माता के मस्तिष्क से जुड़ा होता है इसलिए उसके साथ स्वथ्य व शुभ विचारों के साथ संवाद स्थापित करें। गर्भकाल में हमेशा अच्छे विचार ही अपने मन में ध्यान �����रे�����।
गर्भ के दौरान पवित्र व पौष्टिक- संतुलित आहार ग्रहण करें ताकि उसके मस्तिष्क का अच्छा विकास हो सके। उसके मस्तिष्क में ज्यादा जानकारियां इकट्ठा हो सकें, स्मरण शक्ति तीक्ष्ण हो सके तथा सही व त्वरित निर्णय लेने में सक्षम हो।
श्री रामचरितमानस व गीता जैसे उच्च मूल्य व आदर्श वाले शास्त्र व किताबें पढ़ें, महापुरुषों का चिंतन करें, उनकी जीवनी का अध्ययन करें, अच्छे साहित्य पढ़े।
मन में हमेशा सकारात्मक विचार रखें और सकारात्मक विचारधारा के लोगों से साथ ज्यादा से ज्यादा संपर्क रखें।
अश्लील, हिंसा, दुर्घटना व नकारात्मक समाचारों व घटनाओं से और नकारात्मक वातावरण व नकारात्मक लोगों से अपने आप को दूर रखें।
प्रतिदिन सुबह-शाम गुरु मंत्र व श्री विष्णु हरि के मंत्र या गायत्री मंत्रों का व भगवान के पवित्र नामों का जप करें।
गर्भधारण संस्कार की प्रक्रिया हमेशा उत्तम समय, तिथि, नक्षत्र, योग इत्यादि का ध्यान रखते हुए ही करें।
गर्भसंस्कार सही अर्थों में गर्भस्थ शिशु के साथ माता का स्वस्थ संवाद है अतः शास्त्र अनुकूल गर्भधान संस्कार की प्रक्रिया को संपन्न करें और एक अच्छी उत्तम संतान की उत्पत्ति करें, जिससे आपका, आपके समाज व देश का और आपकी संतान का कल्याण हो सके।
जब किसी परिवार में कोई स्त्री गर्भवती होती है तो उसे परिवार की बड़ी जिम्मेदारी होती है कि परिवार के सभी लोग गर्भवती स्त्री का ध्यान रखें, उसके आसपास अच्छा वातावरण बनाकर रखें, उसका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखें और भावनात्मक लगाव रखें।
(यदि कोई परिवार व गर्भवती महिला मिलकर एक गर्भकाल के दौरान लगभग 9- 10 महीने का थोड़ा सा तप कर लेते है अर्थात थोड़ी सी मेहनत कर लेते हैं तो निश्चित मानिए उस परिवार में एक दिव्य व ओजस्वी संतान का जन्म संभव हो सकता है)
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