हलषष्ठी व्रत कथा व पूजा विधि (हरछठ व्रत) | Hal Shashthi Har Chhath Vrat Katha.

Hal Shashthi Har Chhath Vrat Katha 2024 – हलषष्ठी व्रत कथा व पूजा विधि (हरछठ व्रत) प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की छठी तिथि को महिलाएं अपने पुत्र के दीर्घायु होने और उन्हें असामयिक मौत से बचाने के लिए हरछठ या हलषष्ठी व्रत करती हैं। 

हलषष्ठी व्रत कथा व पूजा विधि (हरछठ व्रत) – Hal Shashthi Har Chhath Vrat Katha.

हलषष्ठी व्रत कथा व पूजा विधि संतान की दीर्घायु के लिए हलषष्ठी की व्रत कथा हर छठ व्रत कथा पूजा विधि यह व्रत भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को किया जाता है। कहीं कहीं भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन बलरामजी का जन्म भी हुआ था।

सुमिर भवानी शङ्करहि, गणपति को शिर नाय ।
हलषष्ठी व्रत की कथा, कहीं पुराण विधि गाय ॥

हलषष्ठी व्रत कथा
Har Chhath Vrat Katha.

एक समय राजा युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण से कहा कि आपने संसार की भलाई के लिए ही अवतार धारण किया है। इस समय सुभद्रा और द्रोपदी अपने पुत्रों के मरने से शोकाग्रस्त हैं तथा अभिमन्यु की स्त्री उत्तरा का गर्भ भी अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से खण्डित हो गया है। माता-पिता को सन्तान के बिना अत्यन्त दुःख है। अतः हे प्रभो। आप कोई ऐसा व्रत, दान अथवा उपाय बतायें जिससे कि माता-पिता संतान-शोक से दुःखी न हों और उत्तम, दीर्घायु तथा स्वस्थ सन्तान उत्पन्न हों। ये सुनकर भगवान् कहने लगे, हे राजन! मैं तुमको एक व्रत बतलाता हूँ, जिसको नियमपूर्वक करने से खण्डित गर्भ भी जीवन पा जाता है तथा सन्तान दुःखी नहीं होती।

हलषष्ठी व्रत कथा प्रारंभ

युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा कि प्राचीन काल में सुभद्र नाम का एक प्रसिद्ध राजा था। उसकी रानी का नाम सुवर्णा था और उनके एक हस्ती नाम का प्रतापी पुत्र था, जिसने अपने नाम से हस्तिनापुरी बसाई राजपुत्र एक दिन धात्री के साथ गंगाजी में खान करने गया और गंगाजी में जल क्रीड़ा करने लगा। इतने ही में एक ग्राह उसे जल में खींच ले गया। यह सुनकर रानी सुवर्णा बहुत दुःखी हुई और क्रोध में उसने धात्री के पुत्र को धधकती हुई अग्नि में डाल दिया। तदनन्तर राजा और रानी अपने-अपने प्राण त्यागने को तैयार हो गये।

वह धात्री भी अपने पुत्र शोक में किसी निर्जन वन में चली गई। वह धात्री वहाँ एक सुनसान मंदिर में शिवजी, पार्वती तथा गणेशजी की पूजा करने लगी। प्रतिदिन पूजन व ध्यान करके वह तृण धान्य तथा महुआ खाया करती थी। भगवान् बोले कि हे राजा युधिष्ठिरा इस प्रकार व्रत करते हुए उसके प्रताप से भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की के दिन नगर में एक अदभुत दर्शन हुआ कि एकाएक धात्री का पुत्र अग्नि में से जीवित निकल आया। राजा रानी ने भी उस धात्री के पुत्र को अग्नि में से निकलते हुए देखा जिससे उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पंडितों से उसके जीवित बचे रहने को कारण पूछा।

इसका रहस्य बताने के लिए शिवजी की आज्ञा से दुर्वासा ऋषि वहाँ आये। राजा ने दुर्वासा ऋषि को आया जानकर उनकी अगवानी करके अर्ध्य आदि से उनका पूजन किया तथा बारम्बार नमस्कार करके पात्री के पुत्र के जीवित निकलने का कारण पूछा। दुर्वासा ऋषि ने कहा कि हे राजन्! उस धात्री ने वन में जाकर नियमपूर्वक अति भक्तिभाव से भगवान शिवजी का स्वामी कार्तिक, पार्वतीजी एवं गणेशजी का ध्यान पूजन स्मरण इत्यादि श्रद्धा सहित तथा नियमपूर्वक व्रत किया है।

यह उस व्रत का ही प्रभाव है जिसके कारण धात्री का पुत्र जीवित ही मिल गया। अतः आप भी वहाँ जाकर यह धार्मिक कर्म करें। श्री कृष्ण जी ने राजा युधिष्ठिर से कहा कि हे राजन राजा और रानी ने दुर्वासा ऋषि को विदा कर दिया, तदुपरान्त वे दोनों को साथ लेकर उस धात्री के निवास स्थान वन को गए। वहाँ राजा, रानी तथा धात्री पुत्र ने उस धात्री को भगवान शिव का कुश पलाश (ढाक) के नीचे अति श्रद्धा के साथ पूजन अर्चना करते हुए देखा। राजा ने धात्री को उसके पुत्र से मिला दिया। धात्री ने राजा को इस उत्तम व्रत के महात्म्य को सविस्तार बता दिया |

उसने कहा कि हे राजन! जिस दिन से आपके भय से त्रस्त में यहाँ आई मैंने केवल वायु को ही भोजन करते हुए भगवान शिव, कार्तिकय, पार्वती जी एवं गणेशजी की पूजा की है। एक दिन आधी रात के समय स्वप्र में भगवान शिव ने मुझे दर्शन दिया और कहा कि तेरा पुत्र जीवित हो गया है क्योंकि तूने हमारा एवं पूजन बड़ी बद्धा तथा भक्ति से किया है। यदि तुम्हारी रानी भी इसी व्रत को विधि पूर्वक करे तो उसका पुत्र भी उसको जीवित मिल जाएगा तथा और भी बहुत से पुत्र उत्पन्न होंगे।

भगवान श्री कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर से कहा- राजन! भादों के महीने में कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह उत्तम व्रत करना चाहिए। उस दिन प्रात:काल स्नान करके क्रोध, लोभ, मोह त्यागकर व्रत को नियम पूर्वक कर लेना चाहिए।

जब तक व्रती रहे किसी जीव की भी हिंसा न करे। व्रत सम्पूर्ण करने के लिए चींटी आदि का मार्ग भी उल्लंघन न करे तथा दोपहर के समय मित्रों सहित पलाश (ढाक) तथा कुशा के नीचे भगवान् शिव, पार्वती स्वामी कार्तिकेय तथा गणेशजी की मूर्ति स्थापित करके धूप, दीप, नैवेद्य आदि से विनम्र भक्ति भाव से पूजा करे और प्रार्थना करे कि हे सौम्यमूर्ति, पंचमुख, शूलधारी, नन्दी श्रृंगी, महाकाय आदि गणों से युक्त आप भगवान शिव को में साष्टांग नमस्कार करता हूँ।

शिव हरकान्ता, प्रकृति श्रेष्ठ हेतु सौभाग्यदायिनी गोरी और माता पार्वती को मैं नमस्कार करता हूँ । है मयूरवाहन! हे क्रोंच पर्वत को विदीर्ण करने वाले कुमार विशाख और स्कन्द आप स्वामी कार्तिकेय को बारम्बार नमस्कार है। फिर एकदंत गणेशजी की अभ्यर्थना करे कि हे प्रभो! मूषकवाहन, लम्बोदर, आपको साष्टांग प्रणाम है।

इस प्रकार इन चारों देवताओं की भली प्रकार पूजा करें। फिर ब्राह्मणों सहित गाजे बाजे से अपने घर को जावे। उस दिन समों के चावल का भोजन करे और दही, दूध, घी तथा मट्ठा विशेष रूप से खाये। श्री कृष्ण ने कहा कि हे राजन! जो स्त्री पुरुष इस व्रत को विधि से करता है वह पुत्र और पौत्रवान होकर सुखी होता है। धात्री की ऐसी बात सुनकर राजा रानी ने विधिपूर्वक इस व्रत को किया जिसके प्रताप से वह राज पुत्र शीघ्र ही ग्राह के गले से निकलकर बोलने लगा।

यह चमत्कार देखकर राजा-रानी ने भगवान शिव के चरणों में नमस्कार किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा को और भी कई आयुष्मान पुत्र प्राप्त हुए तथा राज्य में अनावृष्टि, महामारी, दुर्भिक्ष आदि के उपद्रव दूर हो गये और राजा अनेक वर्षों तक निर्विघ्न राज्य करते रहे।

और स्कन्द आप स्वामी कार्तिकेय को बारम्बार नमस्कार है। फिर एकदंत गणेशजी की अभ्यर्थना करे कि हे प्रभो! मूषकवाहन, लम्बोदर, आपको साष्टांग प्रणाम है। इस प्रकार इन चारों देवताओं की भली प्रकार पूजा करें। फिर ब्राह्मणों सहित गाजे बाजे से अपने घर को जावे। उस दिन समों के चावल का भोजन करे और दही, दूध, घी तथा मट्ठा विशेष रूप से खाये।

श्री कृष्ण ने कहा कि हे राजन! जो स्त्री पुरुष इस व्रत को विधि से करता है वह पुत्र और पौत्रवान होकर सुखी होता है। धात्री की ऐसी बात सुनकर राजा रानी ने विधिपूर्वक इस व्रत को किया जिसके प्रताप से वह राज पुत्र शीघ्र ही ग्राह के गले से निकलकर बोलने लगा। यह चमत्कार देखकर राजा-रानी ने भगवान शिव के चरणों में नमस्कार किया।

इस व्रत के प्रभाव से राजा को और भी कई आयुष्मान पुत्र प्राप्त हुए तथा राज्य में अनावृष्टि, महामारी, दुर्भिक्ष आदि के उपद्रव दूर हो गये और राजा अनेक वर्षों तक निर्विघ्न राज्य करते रहे।

श्रीकृष्ण भगवान ने कहा कि हे युधिष्ठिर! यदि उत्तरा भी यह व्रत नियमपूर्वक करे तो उसके सब दुःख दूर हो जायेंगे। भगवान के ऐसे वचन सुनकर राजा युधिष्ठिर कृतकृत्य हो गये और अश्वत्थामा द्वारा खंडित किया हुआ उत्तरा का गर्भ इस व्रत के प्रभाव से जीवित हो गया।

इस व्रत के करने से वंश स्थिर होता है। इस प्रसंग को भगवान कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर से कहा तथा दुर्वासा ऋषि ने राजा सुभद्र से कहा कि हे राजन! इस व्रत को करने के उपरान्त फिर उसका शास्त्रोक्त रीति से उद्यापन करे।

हलषष्ठी व्रत का उद्यापन

उद्यापन में सुवर्ण, महिषी, गौ और वस्त्र ब्राह्मणों को दान में दे। सोने अथवा चाँदी की मूर्ति बनाकर वेदपाठी ब्राह्मणों सहित उनका पूजन करे। दुर्वासा ऋषि ने कहा कि हे राजन! विद्वान धर्म-निष्ठ राजा युधिष्ठिर ने भी इस व्रत को उत्तरा से करवाया था जिसके प्रभाव से उसका अश्वत्थामा द्वारा खंडित किया हुआ गर्भ उदर में हिलने डुलने लगा तथा वहीं गर्भ राजा परीक्षित के रूप में प्रकट हुआ। जो कोई मनुष्य यह उत्तम व्रत करता है उसके सब कार्य सिद्ध होते हैं। पुत्र, पौत्रों की प्राप्ति होती है तथा शिवलोक में उसकी पूजा होती है।

** इति श्री हलषष्ठी व्रत कथा समाप्त **


भगवान शिव जी की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय ॥

एकानन  चतुरानन  पञ्चानन राजे ।

हंसासन  गरूड़ासन  वृषवाहन  साजे ॥ ॐ जय ॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय ॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी ।

त्रिपुरारी  कंसारी  कर  माला  धारी ॥ ॐ जय ॥

श्वेताम्बर  पीताम्बर  बाघम्बर अंगे ।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय ॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी ।

सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥ ॐ जय ॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥ ॐ जय ॥

लक्ष्मी   व   सावित्री   पार्वती   संगा ।

पार्वती अर्द्धांगी,   शिवलहरी गंगा ॥ ॐ जय ॥

पर्वत सोहें पार्वती,   शंकर कैलासा ।

भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ॥ ॐ जय ॥

जटा में गंग बहुत है, गल मुण्डन माला ।

शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥ ॐ जय ॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी ।

नित उठ दर्शन पावत,  महिमा अति भारी ॥ ॐ जय ॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पायें ॥ ॐ जय ॥


हलषष्ठी व्रत कब है ?

इस वर्ष हलषष्ठी व्रत 2023 में 5 सितम्बर दिन मंगलवार तिथि भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठीं को मनाया जायेगा जिसे हरछठ व्रत के नाम से भी जाना जाता है, इस दिन महिलाये अपने सुहाग की लम्बी आयु और समृद्धि के लिए पूजा अर्चना करती है।

हलषष्ठी व्रत कथा हिंदी कहा से पढ़ें ?

हलषष्ठी व्रत की कथा पढने के लिए आप इस लिंक हलषष्ठी व्रत कथा व पूजा विधि में जाकर पढ़ सकते है हरछठ व्रत कथा और पूजन से संबधित सारी जानकारियाँ मिल जाएगी।

हलषष्ठी कब है 2024 में ?

इस वर्ष हलषष्ठी व्रत 2024 25 अगस्त दिन रविवार तिथि भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठीं को मनाया जायेगा।

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