आरती श्री गिर्राज महाराज की – Aarti Shri Giriraj ji Maharaj Ki
जै-जै गोवर्धन महाराज, नाथ तुम भक्तन हितकारी ।
दानघाटी वाले गिर्राज, राखियो जन अपने की लाज ।
आप हो भक्तन के सिरताज ।।
औपा आपकी से प्रभु अत्र धन और कुटुम्ब ।
भुक्ती-मुक्ती को करे धन्य तरहटी भूमि ।।पूजा लई छिनाय इन्द्र नै गर्व कियो भारी ।
जै-जै गोवर्धन महाराज, नाथ तुम भक्तन हितकारी ।।१।।
बीचा मैं भरी मानसी गंगा, लहर की अद्भुत उठें तरंग करें स्नाना पाप होय भंग ।।
बच्छासुर को कृष्णा ने दीनों धरण पछार ।
ताही के कारणा प्रभु मन से प्रगटी धार ।।
कार्तिक बदी अमावस्या को दीपदान भारी ।
जो-जो गोवर्धना महाराजा, नाथा तुमा भक्तना हितकारी ॥॥२॥
करै जो एक रात्रि जागरण, कभी नहीं होया जम्मा अरू मरणा॥ जाययें श्रीकृष्णहिं की शरण ॥
जो कोई दे प्रदक्षिणा कुण्ड-कुण्ड लेय पान ।
जन्म सुफल है जात है सुन लेउ चतुर सुजान ।।
करि देऊ बेड़ा पार मेरो तुम गिरवर गिरधारी ।
जै-जै गोवर्धन महाराज, नाथ तुम भक्तन हितकारी ।।३।।
विप्र महेश की यही अरदास, सदा ब्रज में ही करूँ निवास । रहूँ मैं सब गुणियन को दास ।।
सब गुणियन को दास हूँ, करि हों माफ कसूर ।
बार-बार विनती करूँ, बनिहों ब्रज की धूरि ।।
घासीराम युगल छबि ऊपर जाऊँ बलिहारी ।
जै-जै गोवर्धन महाराज, नाथ तुम भक्तन हितकारी ।।४।।
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