आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ | Aditya Hridaya Stotra.

Aditya Hridaya Stotra : आदित्य हृदय स्तोत्र की रचना श्री अगस्त्य ऋषि द्वारा हुई पुराणों के अनुसार जब श्री राम और रावण का युद्ध चल रहा था तो एक समय ऐसा भी आया जब भगवान श्री राम का मन भी व्याकुल हो रहा था क्यूंकि राम सेना लंका युद्ध के दौरान राम सैनानीयों को  थकान हो रही थी तब अगस्त्य मुनि ने भगवान श्री राम का मार्गदर्शन करते हुए अगस्त्य ऋषि ने प्रभु श्री राम को सूर्य देव की स्तुति अर्थात आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने के लिए प्रेरित किया और उनकी सेना को प्रेरित करने के लिए कहा और तभी आदित्य हृदय स्तोत्र की संरचना भी मानी जाती है |

आज भी आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ, नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता पाने तथा मनोकामना सिद्ध करने के लिए किया जाता है। क्यूंकि इस स्तोत्र में प्रेरणा है जो आपको कार्य करने के लिए प्रेरित करती है और आपका मार्ग प्रसश्त करने में मदद करती है |

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आदित्य हृदय स्तोत्र – Shree Aditya Hridaya Stotram In Sanskrit Shlok – Prem Parkash Dubey

आदित्य हृदय स्तोत्र – Aditya Hridaya Stotra Hindi.

विनियोगः

ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः,

आदित्येहृदयभूतो भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः । 

आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ Aditya Hridaya Stotra Paath

|| अथ श्री आदित्य हृदय स्तोत्र प्रारंभ ||

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥

सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥

सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥

आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ की रचना किसने की थी ?

आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ रचना श्री अगस्त्य ऋषि द्वारा की गयी थी |

क्या भगवान श्रीराम ने भी आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ किया था ?

प्रेरणा की जरुरत किसको नहीं, हर व्यक्ति कभी न कभी एक समय पर व्याकुल हो जाता है ऐसा ही भगवान राम के साथ भी हुआ राम-रावण युद्ध के समय तब भगवान ने सूर्यदेव की स्तुति करी और आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ किया |

आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे क्या है ?

आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे एक नहीं है इसका पाठ आपको मन में शांति, सुख समृद्धि और आत्म विश्वास उर्जा से भर देता है वहीँ इस स्तोत्र से रोग विकार, आँखों की कमजोरी और शत्रुओं का भय आदि से संकटों से मुक्त रखता है इसके पाठ से असंख्य लाभ है |

राशी में सूर्य के प्रभाव या सूर्यदेव की कृपा के लिए भी आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किया जाता है ?

जिस भी मनुष्य की कुंडली में सूर्य प्रभाव कम या दुर्बल है उन लोगों को सूर्य देव की स्तुति और आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ जरुर करना चाहिए जिससे सूर्यदेव की कृपा उन पर होती है और उसके सारे कार्य सिद्ध होते है |

क्या रोग ग्रस्त व्यक्ति को आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ उपयोगी होता है ?

बिलकुल ! यदि कोई व्यक्ति किसी रुग या बीमारी से ग्रस्त है तो उसे आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ जरुर करना चाहिए और प्रतिदिन सूर्य को जल अर्पित करना चाहिएजिससे उसको रोग से मुक्ति मिलती है |

आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ कब कब करना चाहिए ?

यदि व्यक्ति प्रतिदिन प्रातः कर सके तो बहुत उत्तम होगा यदि ऐसा नहीं कर सकते हार रविवार को प्रातः सूर्यदेव का ध्यान और आदित्यहृदय स्तोत्र पाठ करें  उत्तम फल प्राप्त होगा |


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