बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि और कथा | Baikunth Chaturdashi Katha Puja.

बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि और कथा – Baikunth Chaturdashi Katha Puja.

चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – 06 नवम्बर को 04:25 से।
चतुर्दशी तिथि समाप्त – 07 नवम्बर को 04:11 तक।

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चौदस के नाम से जाना जाता है।

इस वर्ष यह व्रत, रविवार 06 नवम्बर 2022 को रखा जाएगा। प्राचीन मान्यता है कि इस दिन हरिहर मिलन होता है। यानी इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु का मिलन होता है। इसलिए यह दिन शिव एवं विष्णु के उपासक बहुत धूमधाम और उत्साह से मनाते हैं। खासतौर पर उज्जैन, वाराणसी में बैकुंठ चतुर्दशी को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। उज्जैन में भगवान महाकाल की सवारी धूमधाम से निकाली जाती और दीपावली की तरह आतिशबाजी की जाती है।

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बैकुंठ चतुर्दशी की कथा पौराणिक मान्यता

बैकुंठ चतुर्दशी के संबंध में हिंदू धर्म में मान्यता है कि संसार के समस्त मांगलिक कार्य भगवान विष्णु के सानिध्य में होते हैं, लेकिन चार महीने विष्णु के शयनकाल में सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। जब देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं तो उसके बाद चतुर्दशी के दिन भगवान शिव उन्हें पुन: कार्यभार सौंपते हैं। इसीलिए यह दिन उत्सवी माहौल में मनाया जाता है।

एक बार नारद जी भगवान श्री विष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पा सकने का मार्ग पूछते है। नारद जी के कथन सुनकर श्री विष्णु जी कहते हैं कि हे नारद, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करते हैं और श्रद्धा – भक्ति से मेरी पूजा करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं अत: भगवान श्री हरि कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं. भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा पूजन करता है वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है।

बैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा कैसे कर्रें – Baikunth Chaturdashi Puja

शैव और वैष्णव दोनों मतों को मानने वालों के लिए यह दिन महत्वपूर्ण है। इस दिन दोनों देवों की विशेष पूजा की जाती है। उज्जैन महाकाल में भव्य पैमाने पर बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव का विभिन्न् पदार्थों से अभिषेक करने का बड़ा महत्व है। उनका विशेष श्रृंगार करके भांग, धतूरा, बेलपत्र अर्पित करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।

  • बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करके उनका भी श्रृंगार करना चाहिए।
  • विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए।
  • विष्णु मंदिरों में भी इस दिन दीपावली की तरह जश्न मनाया जाता है।
  • इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके दान-पुण्य करना चाहिए। इससे समस्त पापों का प्रायश्चित होता है।
  • नदियों में दीपदान करने से विष्णु-लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

बैकुंठ चतुर्दशी को व्रत कर तारों की छांव में तालाब, नदी के तट पर 14 दीपक जलाने चाहिए। वहीं बैठकर भगवान विष्णु को स्नान कराकर विधि विधान से पूजा अर्चना करें। उन्हें तुलसी पत्ते डालकर भोग लगाएं।

इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत करें। शास्त्रों की मान्यता है कि जो एक हजार कमल पुष्पों से भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन कर शिव की पूजा अर्चना करते हैं, वे बंधनों से मुक्त होकर बैकुंठ धाम पाते हैं।

विष्णु मंत्र

पद्मनाभोरविन्दाक्ष: पद्मगर्भ: शरीरभूत्। महर्द्धिऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुडध्वज:।।
अतुल: शरभो भीम: समयज्ञो हविर्हरि:। सर्वलक्षणलक्षण्यो लक्ष्मीवान् समितिञ्जय:।।

शिव मंत्र

वन्दे महेशं सुरसिद्धसेवितं भक्तै: सदा पूजितपादपद्ममम्।
ब्रह्मेन्द्रविष्णुप्रमुखैश्च वन्दितं ध्यायेत्सदा कामदुधं प्रसन्नम्।।

बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व – Baikunth Chaturdashi Mahatv Pradeep Mishra Ji.

कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी भगवान विष्णु तथा शिव जी के “ऎक्य” का प्रतीक है. प्राचीन मतानुसार एक बार विष्णु जी काशी में शिव भगवान को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढा़ने का संकल्प करते हैं. जब अनुष्ठान का समय आता है, तब शिव भगवान, विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर देते हैं. पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपने “कमल नयन” नाम और “पुण्डरी काक्ष” नाम को स्मरण करके अपना एक नेत्र चढा़ने को तैयार होते हैं।
भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर प्रकट होते हैं। वह भगवान शिव का हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि तुम्हारे स्वरुप वाली कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी “बैकुण्ठ चौदस” के नाम से जानी जाएगी।

भगवान शिव, इसी बैकुण्ठ चतुर्दशी को करोडो़ सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं। इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं।

—- व्रत कथा समाप्त —-


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