भगवान विष्णु के प्रथम अवतार की कथा | Bhagwan Vishnu Avtars

नमस्कार मित्रो, ज्ञान चर्चा में आज से हम भगवान विष्णु के प्रथम अवतार की कथा श्रवण करेंगे, जिसका उल्लेख भगवान के 24 अवतारों का वर्णन श्रीमद्भागवत महापुराण के में भी है। आप सभी लाभ प्राप्त करें। (Bhagwan Vishnu Avtars)

ब्रह्मा जी के ही मानस पुत्रों में प्राकट्य सनकादि ऋषियों के नाम से विख्यात भगवान नारायण का यह प्रथम अवतार बताया जाता है। जिनका नाम है

  • सनक
  • सनंदन
  • सनातन
  • सनत्कुमार

ये चारों महात्मा सदा सर्वदा 5 वर्ष की ही अवस्था में रहकर साधना करते हैं। ये सदा भगवद्धर्म का अनुष्ठान करते हैं।

इन्होंने स्वयं शेष जी के द्वारा वेद और भागवत जी का श्रवण किया था। इन्होनें ही वही भागवत कथा नारद जी को सुनाया है। ये चारों भाई मानों स्वयं वेद ही देह धारण कर प्रकट हुए हैं।

एक बार इन्होंने वैकुण्ठ जाकर भगवान विष्णु के दर्शन का निश्चय किया, जब वहां पहुंचे तो द्वार सेवकों ने जिनका नाम जय और विजय है ने रोक दिया। जिसमे सनंदन कुमार ने शाप दे दिया कि तुम तीन जन्मों तक राक्षस योनियों में जन्म लोगे। जय विजय ने विलाप किया तब कुमारों ने कहा जन्म तो तुम्हारा राक्षस योनियों में तीन बार होगा ही पर उद्धार भी तुम्हे भागवान विष्णु ही करेंगे। वही जय विजय प्रथम जन्म में हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप हुए। दूसरे जन्म में रावण और कुम्भकर्ण तीसरे जन्म में शिशुपाल और दन्तवक्र के रूप में जन्म लेकर पुनः वैकुण्ठ निवास करने लगे।

इस अवतार में भगवान का प्रयोजन मात्र भक्ति और भगवान के सृष्टि कार्य में सहायक रूप में अवतार लिया।


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