भक्त और भगवान की कथा । Bhakt Aur Bhagwan ki katha.

Bhakt aur Bhagwan ki katha –जैसे कि आप सब यहां पर पढ़ते है हम लगातार आपके लिए धार्मिक कथा लिखते रहते है तो आज भी हम एक बहुत मैन को मोहने वाली कथा लेकर आये है जिसमे भक्त और भगवान के प्रेम का अटूट नाते के बारे में लिखित रूप दिया है उम्मीद है आपको पसंद आएगा।

इसमे आप पढेंगे की कैसे भगवान अपने भक्त को प्रेम करते है एक पिता अपने पुत्र से प्रेम करता है वैसा ही प्रेम आपको इस कथा में पढ़ने मिलेगा। ईश्वर की महिमा का उदाहरण है :-

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भक्त और भगवान में प्रेम – Katha Prem ki

एक बार संत सूरदास जी को एक सज्जन ने भजन के लिए आमंत्रित किया। भजनोपरांत सज्जन को उन्हें घर तक पहुंचाने का ध्यान ही नहीं रहा। सूरदास जी ने भी उसे तकलीफ नहीं देनी चाही और खुद ही लाठी लेकर गोविंद-गोविंद करते हुए अंधेरी रात में पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़े।
रास्ते में एक कुआं पड़ता था। वे लाठी से टटोलते-टटोलते, भगवान का नाम लेते हुए बढ़ रहे थे, कि उनके पांव और कुएं के बीच मात्र कुछ ही दूरी रह गई थी, और तभी उन्हें लगा कि किसी ने उनकी लाठी पकड़ ली है, उन्होंने पूछा- तुम कौन हो?

उत्तर मिला- बाबा! मैं एक बालक हूं। मैं भी आपका भजन सुन कर लौट रहा हूं। देखा कि आप गलत रास्ते जा रहे हैं, इसलिए मैं इधर आ गया। चलिए, आपको घर तक छोड़ दूं।

सूरदास जी ने पूछा- तुम्हारा नाम क्या है बेटा?

उत्तर मिला- बाबा! अभी तक मां ने मेरा नाम नहीं रखा है।

सूरदास जी ने पूछा- तब मैं तुम्हें किस नाम से पुकारूं ?

उत्तर मिला- कोई भी नाम चलेगा बाबा।

सूरदास जी ने रास्ते में और भी कई सवाल पूछे और तब उन्हें लगा कि हो न हो, यह कन्हैया हैं। वे समझ गए कि आज गोपाल खुद मेरे पास आए हैं। क्यों नहीं मैं इनका हाथ पकड़ लूं। और यह सोचकर वे अपना हाथ उस लाठी पर भगवान श्री कृष्ण की ओर बढ़ाने लगे।
भगवान श्री कृष्ण उनकी यह चाल समझ गए।
सूरदास जी का हाथ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। जब केवल चार अंगुल अंतर रह गया, तब भगवान श्री कृष्ण लाठी को छोड़कर दूर चले गए। और जैसे ही उन्होंने लाठी छोड़ी, सूरदास जी विह्वल हो गए, उनकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली, और वे बोले- मैं अंधा हूं, और ऐसे अंधे की लाठी छोड़कर चले जाना, कन्हैया तुम्हारी बहादुरी है क्या? और फिर उनके श्रीमुख से वेदना के यह स्वर निकल पड़े-

हाथ छुड़ाये जात हो,निर्बल जानि के मोय।
हृदय से जब जाओ,तो सबल जानूँगा तोय।।

सार- मुझे निर्बल जानकार मेरा हाथ छुड़ाकर जाते हो, पर मेरे हृदय से जाओ तो मैं तुम्हें सबल कहूं।

तब भगवान कृष्ण जी ने कहा- बाबा! अगर मैं ऐसे भक्तों के हृदय से चला जाऊं, तो फिर मैं कहां रहूं?

।। जय जय श्री राम।।।।हर हर महादेव।।

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