भए प्रगट कृपाला दीन दयाला भजन | Bhaye Pragat Kripala Din Dayala Bhajan

Bhaye Pragat Kripala Din Dayala Lyrics –
जय श्री राम – भए प्रगट कृपाला दीन दयाला रामचरितमानस से प्रस्तुत बहुत ही सुन्दर रचना है यह स्तुति प्रायः श्री राम जन्मोत्सव पर आधारित रचना है मन आनंदित हो उठता है जिस तरह श्री हरि स्तोत्र और संकटनाशन गणेश स्तोत्र पढने जैसा अनुभव, जब इसके छंद और श्लोक की ध्वनि कानों में गूंजती है मानों एक अलौकिक शक्ति और शांति का अनुभव, जिसके लिए धन्यवाद करता हूँ इसके रचनाकार तुलसीदास जी रचित, रामचरित मानस, बालकाण्ड-192 से लिया गया है।

यह रचना प्रभु श्री रामअवतार स्तुति के लिए वर्णित है,प्रभु श्री रामचंद्र जी के इस धरती पर अवतरित की एक सुंदर अनुभूति को शाब्दिक (वर्णित) करती है।

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी श्लोक श्री रामअवतार जन्मोत्सव स्तुति का उपयोग प्रायः नवजात शिशु के बधाई, सोहर, जन्मदिन जैसे अवसरों पर अत्यधिक लोकप्रिय माना जाता है। इन स्तुति शब्दों को सुनने के पश्चात प्रभु श्रीराम भक्त कुछ और सुनने की चाह अपने मन से त्याग ही देते है बड़ी ही मनमोहक और सुन्दर स्तुति। चलिए श्रवन करते है भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी श्लोक:-

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भए प्रगट कृपाला दीन दयाला स्तुति :-
Bhaye Pragat Kripala Din Dayala Kaushalya Hitkari :-

|| छंद: ||

भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,

कौसल्या हितकारी ।

हरषित महतारी, मुनि मन हारी,

अद्भुत रूप बिचारी ॥

लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,

निज आयुध भुजचारी ।

भूषन बनमाला, नयन बिसाला,

सोभासिंधु खरारी ॥

कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,

केहि बिधि करूं अनंता ।

माया गुन ग्याना,तीत अमाना,

वेद पुरान भनंता ॥

करुना सुख सागर, सब गुन आगर,

जेहि गावहिं श्रुति संता ।

सो मम हित लागी, जन अनुरागी,

भयउ प्रगट श्रीकंता ॥

ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,

रोम रोम प्रति बेद कहै ।

मम उर सो बासी, यह उपहासी,

सुनत धीर मति थिर न रहै ॥

उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,

चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।

कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,

जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥

माता पुनि बोली, सो मति डोली,

तजहु तात यह रूपा ।

कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,

यह सुख परम अनूपा ॥

सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,

होइ बालक सुरभूपा ।

यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,

ते न परहिं भवकूपा ॥

|| दोहा: ||

बिप्र धेनु सुर संत हित,

लीन्ह मनुज अवतार ।

निज इच्छा निर्मित तनु,

माया गुन गो पार ॥

– तुलसीदास रचित, रामचरित मानस, बालकाण्ड-192


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