देव- पूजा में निषिद्ध पत्र – पुष्प क्या है ?

भारतवर्ष की इस पावन भूमि का महात्म्य स्वयं में एक स्वयंभू है जिसकी पावन धरा पर अनेक चमत्कार और पराक्रम की गाथाएं है और हमारे देश में जितने तीर्थ है उतने शायद ही कही है, और हम देवी और देवताओं की पूजा को विशेष महत्त्व देते है चाहे वो किसी भी समाज या जाती के हो सबके लिए इश्वर सामान है। फिर भी हम आज भी कुछ बातों से अनभिग्य है जैसे किस देवी या देव- पूजा में निषिद्ध पत्र – पुष्प कौन से है तो इसी के विषय में हमारी चर्चा गुरूजी श्री नंद कुमार जी से हुई और उन्होंने हमें इसके विषय में बताया जो हम आज यहाँ आपको लिखित रूप में बता रहे है तो चलिए पढ़ें देव- पूजा में निषिद्ध पत्र – पुष्प क्या है।

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देवी के लिये विहित प्रतिषिद्ध पत्र – पुष्प

आक और मदारकी तरह दूर्वा, तिलक, मालती, तुलसी, भंगरैया और तमाल विहित प्रतिषिद्ध हैं अर्थात् ये शास्त्रोंसे विहित भी हैं और निषिद्ध भी । विहित- प्रतिषिद्धके सम्बन्धमें तत्त्वसागरसंहिताका कथन है कि जब शास्त्रोंसे विहित फूल न मिल पायें तो विहित प्रतिषिद्ध फूलोंसे पूजा कर लेनी चाहिये।

शिवार्चा में निषिद्ध पत्र – पुष्प

कदम्ब, सारहीन फूल या कठूमर, केवड़ा, शिरीष, तिन्तिणी, बकुल (मौलसिरी), कोष्ठ, कैथ, गाजर, बहेड़ा, कपास, गंभारी, पत्रकंटक, सेमल, अनार, धव, केतकी, वसंत ऋतुमें खिलनेवाला कंदविशेष, कुंद, जूही, मदन्ती, शिरीष, सर्ज और दोपहरिया के फूल भगवान् शंकरपर नहीं चढ़ाने चाहिये । वीरमित्रोदयमें इनका संकलन किया गया है।

विष्णु के लिये निषिद्ध फूल

विष्णुभगवान्पर नीचे लिखे फूलोंको चढ़ाना मना है – आक, धतूरा, कांची, अपराजिता (गिरिकर्णिका), भटकटैया, कुरैया, सेमल, शिरीष, चिचिड़ा (कोशातकी), कैथ, लाङ्गुली, सहिजन, कचनार, बरगद, गूलर, पाकर, पीपर और अमड़ा (कपीतन) । घरपर रोपे गये कनेर और दोपहरियाके फूलका भी निषेध है।

सूर्य के लिये निषिद्ध फूल

गुंजा (कृष्णला), धतूरा, कांची, अपराजिता (गिरिकर्णिका), भटकटैया, तगर और अमड़ा – इन्हें सूर्यपर न चढ़ाये। वीरमित्रोदय इन्हें सूर्यपर चढ़ानेका स्पष्ट निषेध किया है।


देव- पूजा में निषिद्ध पत्र – पुष्प क्या है ?

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