आज इस लेख में हम आपको बताएँगे की नवरात्रि दुर्गा पूजा में दुर्गा पूजन-सहस्त्रनाम पाठ विधि और दुर्गा सप्तशती हवन विधि? (Durga Saptsati Havan Vidhi) से कैसे सम्पूर्ण करें
नवरात्रि में अष्टमी की रात्रि को दुर्गा सप्तशती द्वारा हवन किया जाता है। गणेश स्मरण, संकल्प, गणपति, मातृका, नवग्रह, रुद्र, कलश, पूजनपूर्वक भगवती की पूजा कराके ब्रह्मपूजन ब्राह्मण वरणादि करावें । पीछे आचार्य कवच, अर्गला, कीलक तथा रात्रिसूक्त का पाठ करें ।
कुशकुंडिका करें और “प्रजापतये स्वाहा” से लेकर वरुण, गणपति तथा नवग्रह की आहुतियां दें । पीछे नवार्णमन्त्र तथा प्रथम अध्याय से हवन आरम्भ करें। प्रत्येक मन्त्र की आहुति १३ अध्याय तक देवें । किसी भी पुस्तक में हवन विधि नहीं लिखी होने से साधारण पण्डित यथाविधि नहीं करा पाते हैं।
॥ अध्याय के अन्त में ॥
इति शब्दो हरे लक्ष्मी बधः कुलविनाशकः ।
अध्यायो हरेत प्राणान् मार्कण्डेयादिकं वदेत् ॥ अध्याय के अन्त में इति बोलने से लक्ष्मी का नाश, बध बोलने से कुल का नाश, अध्याय बोलने से प्राणों का नाश होता है । इसलिये आचमनी में जल लेकर इस प्रकार बोलकर जल छोड़ दें। ॐ जय जय
मार्कण्डेय पुराणे सावर्णिक मन्यन्तरे देवी माहात्प्सये सत्या सन्तु मम यजमानस्य कामाः श्री ।
॥ प्रथमोऽध्यान्ते ।।
वैदिक तान्त्रिक आहुति
एक साबुत पान पर शाकल्य घी में भिगोकर १ कमल गट्ठा, १ सुपारी, २ लौंग, १ छोटी इलायची, गूगल, शहद ये सब चीजें श्रुचि में रखकर होकर बोलें-
ॐ प्रणाय स्वाहाऽपानाय, स्वाहा व्यानाय स्वाहा, अम्बे अम्बिके अम्बालिके नमानयति कश्चन ससम्त्यश्वकः सुभद्रिकां कांपील्यवासिनी ॐ स्वाहा । इसमें अग्नि में छोड़ें ।
तांत्रिक आहुति मंत्र- ॐ सागायै सायुधायै स्त्रशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै ऐ बीजाधिष्ठायै महाकालिकात्र्यै महाहुति समर्पयामि नमः ॥
बाद में निम्न मन्त्र से पाँच बार घी छोड़ें । ॐ घृतं घृतपावनः पितववसों वसापावान पिवतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा। दिशः प्रदिशऽआदिशो
त्विद्दशऽउद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ।
॥ द्वितीयोध्यायान्ते ॥
सामान तथा विधान प्रथम अध्यायवत् वैदिक आहुति पूर्ववत्
तांत्रिक आहुति मन्त्र- ह्रीं सांगायै सायुधायै सशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै श्री महाल क्ष्यै अष्टाविशतिवर्णात्मिकायै लक्ष्मीबीजाधिष्ठात्र्यै नमः महाहुति समर्पयामि स्वाहा ।
॥ तृतीयोध्यायान्ते ।।
गर्ज गर्ज क्षणं मूढ० ॥ मन्त्र ३८ से शहद की आहुति दें । अध्यायान्त में सामग्री पूर्ववत् ही श्रुचि में रखकर नीचे के मन्त्र से आहुति पूर्ववत् है ।
तांत्रिक आहुति मन्त्र- ॐ जयन्ती सांगायै सायुधाये सशक्तिकायै परिवारायै सवाहनायै लक्ष्मीबीजाधिष्ठात्र्यै नमः महाहुति
समर्पयामि स्वाहा ॥
॥ चतुर्थोध्यायान्ते ।।
मन्त्र २४ ‘शूलेन पाहि नो देवि’ से मन्त्र २७ तक की आहुति नहीं देनी चाहिये । अतः मन्त्र बोलकर आधे मिनट ठहर कर “ॐ नमश्चण्डिकायै स्वाहा” से आहुति देनी चाहिये अन्त में प्रथम अध्यायवत् सामग्री, विशेष पायस व मिश्री से आहुति देनी है।
तांत्रिक आहुति मन्त्र- हीं जयंती सशक्तिकायै सपरिवरायै सवाहसागायै श्री महालक्ष्म्यै अष्टाविंशतिवर्णात्मिकायै लक्ष्मीबीजाधि ष्ठात्र्यै नमः महाहुति समर्पयामि स्वाहा ।।
वैदिक मन्त्र-ओं प्राणाय स्वाहा० इत्यादि पूर्ववत यानि प्रथम अध्याय के मन्त्र बोल कर आहुति दें और घी की पाँच आहुतियाँ दें ।
॥ पंचमोऽध्यायान्ते ।।
आहुति सामग्री-१ पान, शाकल्य, १ कमल गट्टा, १ सुपारी, २ लौंग, इलायची, गूगल, कपूर, पुष्प तथा ऋतुफल ।
तांत्रिक मन्त्र आहुति-क्लीं जयन्ती सांगायै सायुधायै सशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै धूम्रक्ष्यैविष्णुमायादि चतुर्विशद्दे वताभ्यो नमः समर्पयामि स्वाहा ।। वैदिक मन्त्र पूर्ववत ।
॥ षष्ठोऽध्यायान्ते ॥
सामग्री पूर्ववत् । विशेष भोजपात्र । तांत्रिक आहुति मन्त्र-क्लीं जयन्ती सांगायै सायुधायै सशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै सपर्मयामि नमः स्वाहा ॥ वैदिक मंत्र पूर्वतत् ।
।। सप्तामोऽहयायान्ते ॥
सामग्री पूर्ववत् । विशेष दो जायफल । तांत्रिक आहुति मन्त्र-ॐ जयन्ती सांगायै सायुधायै सशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै कालीचामुण्डादेव्यै कर्पूरबीजाधिष्ठात्र्यै महाहुति समर्पयामि नमः स्वाहा । वैदिक मन्त्र पूर्ववत् ।
।। अष्टमोऽध्यायान्ते ।।
सामग्री पूर्ववत् । विशेष लाल चन्दन ।
तांत्रिक आहुति मन्त्र-ॐ जयन्ती सांगायै सायुधायै सशक्तिकायै सपरिवारयै सवाहनायै रयताक्ष्यै अष्टमातृसाहितायै महाहु समर्पयामि नमः ।। वैदिक मन्त्र
॥ नवमोऽध्यायान्ते ॥
सामग्री पूर्ववत् । विशेष १ बेजफल या मैनफल । तांत्रिक आहुति मन्त्र-क्लीं जयंती सांगायै सायुधायै सपरिवरायै सवाहनायै सशक्तिकायै भैरव्ये तारादेव्यै महाहुतिः समर्पश्यामि नमः स्वाहा ॥ वैदिक मन्त्र पूर्ववत् ।.
।। दशमऽध्यायान्ते ॥
सामग्री पूर्ववत् । विशेष विल्वफल व मैनफल तांत्रिक तथा वेदमन्त्र आहुति के लिए नवम् अध्याय के समान ही हैं ।
॥ एकादशोऽध्यायन्ते ॥
यहाँ खीर का हवन होता है ।
- “रोगानशेषनहंसि” मन्त्र २९ से गिलोय की आहुति दें ।
- “सर्वाबाधाप्रशमनम्” मन्त्र ३९ से सफेद सरसों या काली मिर्च की आहुति दें ।
- “भक्षयन्त्याश्च०” मन्त्र ४४ से अनार की कली की आहुति दें ।
- “तपो मां देवतत० ” मन्त्र ४९ से रक्त चन्दन की आहुति दें ।
- “शाकम्भरीति०” मन्त्र ४९ से बथुआ या
पालक शाक की आहुति दें. । अध्याय के अन्त में सामान पूर्ववत् विशेष पायस खीर व पुष्प ।
तान्त्रिक आहुति मन्त्रः- क्लीं जयन्ती सांगायै सायुधायै सशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै लक्ष्मीबीजाधिष्ठात्र्यै गरुडवाहिनी नारायणी दैव्यै महाहुति समर्पयामि नमः स्वाहा । वैदिक मन्त्र पूर्ववत् ।
॥ द्वादशोऽभ्यायान्ते ॥
“बलिप्रदाने पूज्या” मन्त्र १० के कुक्ष्माण्ड को अथवा नारियल को बाँध कर उसकी बलि रखें । अध्यायान्त में सामान वही पूर्ववत् । विशेष ऋतु फल केला ।
तांत्रिक आहुति मन्त्रः- क्लीं जयन्ती सांगायै सायुधायै सशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै वरप्रदाय वैष्णवीदेव्यै महाहुति समर्पमामि नमः स्वाहा । वैदिक मन्त्र वही प्रथम अध्याय के अन्त वाले ।
॥ त्रयोदशोऽध्यायान्ते ॥
सामान प्रथम अध्यायवत् । विशेष एक फल व फूल ।
तांत्रिक आहुति मन्त्रः- क्लीं जयन्ती सांगायै सायुधायै सशक्तिकायै सपरिवारायै सवाहनायै श्रीविद्यायै महाहुति समर्पयामि नमः स्वाहा ।
वैदिक मन्त्र ॐ प्रणाय स्वाहाऽपानाया स्वाहा ब्यानाम स्वाहा अम्बे अम्बिके अम्बालिके नमानयति कश्चन ससस्त्यश्वकः कापीलवासिनी ॐ स्वाहा ॥
ॐ घृतं घृतपावानः पितवसां वसापावानः पिवतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा । दिशः प्रदिश आदिशोत्विद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ।
पश्चात् श्रीसूक्तहवन, स्विष्टकृत होम् दिक्पाल भैरव पूजा, बलिदान कराने के पश्चात् जवारों की पूजा करके छेदन ले आवें । पीछे पूर्णहुति करके यज्ञ विभूति लें और देवी जी के सामने आरती करें । पुष्पांजलि में पुष्प, अक्षत, जवारे भी देवें । बाद में यजमान का अभिषेक, तिलक, रक्षा आदि करायें सुवासणी, आरती आदि सारा कार्य करा देवें तथा बटुक और कन्याओं के तिलकादि करके उन्हें भोजन करा दें ।
॥ इति श्री दुर्गा सप्तशती हवन विधानम् ॥
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