तुलसी विवाह कब है एकादशी तुलसी विवाह व्रत कथा और पूजन विधि | Ekadashi Tulsi Vivah.

Ekadashi Tulsi Vivah – इस वर्ष त्योहारों की बौछार ने पिछले दो वर्षों के अधूरे मनाये हुए त्योहारी की आपूर्ति की पूर्ति की है| इस वर्ष दिवाली के बाद आ रही एकादशी तुलसी विवाह |

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जानिए तुलसी विवाह पूजा-विधि

शास्त्रों के अनुसार तुलसी विवाह भगवान विष्णु के विग्रह स्वरुप शालिग्राम के साथ कराने की मान्यता है इस दिन प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प ले सबसे पहले एक साथ चौकी पर तुलसी के पौधे का गमला स्थापित करें और दूसरी चौकी पर शालिग्राम रखें।

तुलसी के गमले में गन्ने का मंडप बनाएं और जल से भरा कलश रखें अब घी का दीपक जलाएं तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल छिड़क कर उन्हें रोली, चंदन का टीका करें अब तुलसी को सुहाग का प्रतीक लाल चुनरी, चूड़ी व अन्य श्रंगार और पूजन सामग्री अर्पित करें इसके बाद शालिग्राम को हाथ में लेकर तुलसी की परिक्रमा करें इसके बाद व्रत कथा का पाठ कर आरती करें तुलसी विवाह संपन्न होने के बाद सभी को प्रसाद वितरित करें मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से कन्यादान करने के बराबर फल प्राप्त होता है।

क्या है शुभ मुहूर्त तुलसी विवाह

मुहूर्त और दिन को लेकर हमारे त्योहारों में बड़ा असमंजस बना रहता है ऐसे में तुलसी विवाह मुहूर्त के बारे में जानना जरुरी है |

  • एकादशी तिथि प्रारंभ होगी – 3 नवंबर शाम 7:30 पर।
  • एकादशी तिथि समाप्त होगी  – 4 नवंबर शाम 6:08 पर ।
  • तुलसी विवाह का पारण मुहूर्त होगा – 6 नवंबर रविवार दोपहर 1:00 बज के 9:00 मिनट से लेकर 3:18 तक ।

पढ़िए तुलसी विवाह व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जालंधर नाम का एक राक्षस था जो बहुत ही पराक्रमी था उसकी वीरता का रहस्य उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म था एक बार जालंधर के उधर से परेशान होकर देवता गण भगवान विष्णु के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की तब भगवान विष्णु ने जालंधर की शक्ति को खत्म करने के लिए देवी वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग करने का निश्चय किया और जालंधर का रूप धरकर छल से वृंदा का सतीत्व नष्ट कर दिया जिस कारण जालंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में हार गया।

जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया इस घटना के बाद वृंदा सती हो गई जिस स्थान पर वह बस में हुई बहुत तुलसी का पौधा प्रकट हुआ तब भगवान विष्णु ने वृंदा के पतिव्रता धर्म से प्रसन्न होकर उसे वचन दिया कि तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा तुलसी विवाह करेगा वह परमधाम को प्राप्त होगा तभी से विष्णु जी के एक रूप शालिग्राम के साथ तुलसी विवाह करने की परंपरा चली आ रही है।


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