आप सभी को गणेश चतुर्थी व्रत और गणेशोत्सव की हार्दिक बधाई। आज हम आपको इस लेख में बताएंगे गणेश चतुर्थी व्रत का फल और उपवास की विधि जिससे आ रही गणेश चतुर्थी में पूजन को विधि विधान के साथ कर सकें। (Ganesh Chaturthi Vrat)
गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है ?
जय गणपति, गणनायक जय है ! जन-मन मंगल त्राता,
एक रदन, गजवदन, विनायक, चतुर्थी के दिन आता ॥
भगवान श्री गणेश का जन्म शिव पुराण के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था जो कि गणेश चतुर्थी कहलाती है । भगवान शिव ने जब त्रिशूल से बाल गणेश का सिर छेदन कर दिया था तब पार्वती द्वारा उत्पन्न शक्तियों ने प्रलय मचा दिया था । किन्तु उसी समय भगवान विष्णु ने हाथी के शिशु का सिर जोड़कर गणेश को जीवित कर दिया था तो पार्वती जी प्रसन्न हो गई थीं । शिवजी ने गणेशजी को अनेक वर दिये थे जिनके अनुसार वे देवों के देव, हर पूजन और दीपावली में लक्ष्मी जी से पहले और हर पूजन में सर्वप्रथम पूज्य, विघ्न विनाशक और मंगल व सिद्धि प्रदाता बने।
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तभी शिवजी ने गणेश जी को यह वर भी दिया था कि जो व्यक्ति तुम्हारी जन्मतिथि अर्थात् गणेश चतुर्थी से व्रत प्रारम्भ करके प्रत्येक मास की इस तिथि को तुम्हारा पूजन और व्रत करेगा, उसे सभी सिद्धियाँ प्राप्त होंगी । शिव कहते हैं कि जो मानव गणेश चतुर्थी के दिन श्रद्धा, विश्वास और भक्ति से श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए व्रत-उपवास करेगा, सहस्त्रनाम से विधिपूर्वक पूजा करेगा, उसके सभी विघ्न सदा के लिए नाश हो जायेंगे । उसके कार्य सिद्ध होते रहेंगे।
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गणेश चतुर्थी व्रत का फल और व्रत उपवास की विधि (Ganesh Chaturthi Vrat Vidhi)
उपवास के फल बताते हुए स्वयं भगवान शिव आगे कहते हैं कि सभी के लिए यह फलदायक है । इस व्रत को करने वाले की इच्छाएँ पूर्ण होती हैं ।
गणेश जी के पूजन का दिन गणेश चतुर्थी बताया गया है जो कि भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष में आती है ।
गणेश जी को पुत्ररूप में पाने के लिए पार्वती जी ने ब्रह्मा का ध्यान किया था और कठोर तप किया था । वे बारह वर्ष तक एकाक्षरी गणपति मन्त्र का जाप करती रही थीं । उसी से प्रसन्न होकर गणेश जी प्रकट हुए और पुत्र रूप में प्राप्त हुए ।
गणेश चतुर्थी गणपति की तिथि है। इस दिन गणपति की मूर्ति की श्रद्धा व भक्ति के साथ पूजा और सहस्त्रनाम जप करते हुए उनकी साधना करें, आराधना करें। ऐसा करने से गणेश चतुर्थी फलदायिनी सिद्ध होगी ।
सभी पुराणों में सभी तिथियों के वर्णन मिलते हैं । जैसे एकादशी व्रत, पूर्णमासी व्रत, सप्तमी व्रत, अष्टमी व्रत आदि । किन्तु सर्वाधिक फलदायिनी पवित्र तिथि चतुर्थी है। इस तिथि को वरदान दिया था कि जो कोई निराहार रहकर इस दिन व्रत करेगा उसके सब कार्य सिद्ध होंगे । अतः प्रत्येक मास की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को व्रत रखकर गणपति गणेश जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए ।
स्त्रियों को प्रत्येक चतुर्थी का व्रत या कम से कम भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी, कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, माघ कृष्ण चतुर्थी का व्रत अवश्य करना चाहिये जिन्हें क्रमशः बहुला चौथ, करवा चौथ और तिल चौथ या संकट चौथ कहते हैं। इस दिन पूजा कर गणेश सहस्त्रनाम के पाठ से स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
व्रत-उपवास की विधि
(बहुला चौथ, करवा चौथ, तिल चौथ)
1. गणेश चतुर्थी या बहुला चतुर्थी-भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी।
2. करवा चौथ-कार्तिक कृष्ण चतुर्थी ।
3. तिल चौथ या संकट चौथ-माघ कृष्ण चतुर्थी । उपरोक्त तीनों चतुर्थी के व्रत-विधान एक समान हैं ।
व्रत उपवास करने वाले स्त्री यो पुरुष प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में नित्यकर्म से निवृत्त हो पुस्तक में अग्रणित विधि से श्रीगणेश का पूजन कर दिन भर गणेश सहस्त्रनाम का पाठ करें तथा गणेश जी के समक्ष निम्नानुसार प्रसाद रखें ।
1. गणेश चतुर्थी के दिन-चूरमे के लड्डू (आटे, घृत व शक्कर से निर्मित)
2. करवा चौथ-दस दीपक (करवे) पकवान से भरें ।
3. तिल चौथ-गुड़ व तिल्ली से निर्मित लड्डू ।
फिर गणेश जी को अर्घ्य दें, चतुर्थी तिथि को अर्घ्य दें, बाद में चन्द्रमा को अर्घ्य दें । चन्द्रमा को सात बार अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य के बाद गणेश जी को प्रणाम कर अपने पति की मंगल कामना कर पति के दर्शन करें। फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएँ एवं दक्षिणा देकर स्वयं भोजन करें।
यही चतुर्थी व्रत की विधि है । उपरोक्तानुसार व्रत करने से स्त्रियों को निम्नलिखित फल की प्राप्ति होती है।
1. पति के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।
2. धन चाहने वालों को धन की प्राप्ति होती है।
3. पुत्र की मनोकामना पूर्ण होती है।
4. रोगी रोगमुक्त हो जाते हैं।
5. कुँवारी कन्या को सुयोग्य पति की प्राप्ति होती है।
6. सुख चाहने वालों को सुख मिलता है और सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं।
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