Kaal Bhairav Ashtami – इस नाम से आप सब भली भांति परिचित होंगे यदि नहीं तो आपको बता दें काशी के कोतवाल कहलाते है क्यूंकि काशी विश्वनाथ की नगरी का भार बाबा काल भैरव के निगरानी में है कहते है यदि आप काशी में विश्वनाथ के दर्शन करके भैरव नाथ के दर्शन करते है तो आपकी प्रार्थना स्वीकार होती है | महापुराण के अनुसार मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को प्रदोष काल में कालभैरव जी का अवतार हुआ था । तब से इस दिन काल भैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इसीलिए काल भैरव की पूजा मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी पर करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार भैरव जी की उत्पत्ति भगवान शिव के रूद्र रूप से हुई थी ।
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काल भैरव अष्टमी पूजा विधि – Kaal Bhairav Ashtami Vrat Vidhi.
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काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था, तब से इसे भैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इसीलिए काल भैरव की पूजा मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी पर करनी चाहिए।
काशी नगरी की सुरक्षा का भार काल भैरव को सौंपा गया है इसीलिए वे काशी के कोतवाल कहलाते हैं। शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की अष्टमी को उनका अवतार हुआ था। शास्त्रों के अनुसार भारत की उत्पत्ति भगवान शिव के रूद्र रूप से हुई थी।
बाद में शिव के दो रूप उत्पन्न हुए प्रथम को बटुक भैरव और दूसरे को काल भैरव कहते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है और इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। जबकि काल भैरव की उत्पत्ति एक श्राप के चलते हुई, अतः उनको शंकर का रौद्र अवतार माना जाता है। शिव के इस रूप की आराधना से भय एवं शत्रुओं से मुक्ति, और संकट से छुटकारा मिलता है। काल भैरव भगवान शिव का अत्यंत भयानक और विकराल प्रचंड स्वरूप है।
शिव के अंश भैरव को दुष्टों को दण्ड देने वाला माना जाता है इसलिए इनका एक नाम दण्डपाणी भी है। मान्यता है कि शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी इसलिए उनको कालभैरव कहा जाता है।
एक बार अंधकासुर ने भगवान शिव पर हमला कर दिया था तब महादेव ने उसके संहार के लिए अपने रक्त से भैरव की उत्पत्ति की थी। शिव और शक्ति दोनों की उपासना में पहले भैरव की आराधना करने के लिए कहा जाता है। कालिका पुराण में भैरव को महादेव का गण बताया गया है और नारद पुराण में कालभैरव और मां दुर्गा दोनों की पूजा इस दिन करने के लिए बताया गया है।
इस तरह करें काल भैरव अष्टमी पूजा विधि – Puja Vidhi
भगवान काल भैरव का श्रृंगार सिंदूर औ����� चमेली क����� तेल से किया जाता है। भगवान शिव की तरह ही काल भैरव की पूजा प्रदोष काल में की जाती है अर्थात सूर्यास्त के बाद ही काल भैरव देव की पूजा होती है। प्रदोष काल में पूजा से पहले स्नान और स्वच्छ वस्त्र धार करें।
इसके बाद भैरव मंदिर में भगवान काल भैरव या शिवलिंग पर बेल पत्र पर लाल या सफेद चंदन से ‘ऊँ’ लिखकर ‘ऊँ कालभैरवाय नम:’ मंत्र का जप करते हुए चढ़ाएं और बेल पत्र चढ़ाते समय अपना मुख उत्तर की तरफ रखें। इसके बाद काल भैरव का श्रृंगार करें और फिर लाल चंदन, अक्षत, फूल, सुपारी, जनेऊ, नारियल, फूल की माला, दक्षिणा आदि अर्पित करें। इसके बाद गुड़-चने या इमरती आदि का भोग जलाएं। काल भैरव की पूजा में हमेशा ध्यान रखें कि सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इसके बाद काले कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं।
त्यौहार सम्बंधित नाम | काल भैरवाष्टमी – बटुक भैरव अष्टमी |
प्रारंभ तिथि | मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी |
त्यौहार का कारण | काल भैरव जी का अवतार दिन |
त्यौहार विधि विशेष | भजन-कीर्तन, रुद्राभिषेक, शिव मंदिर में अभिषेक और पूजन |
भैरवाष्टमी पर पढ़ें श्री भैरव चालीसा का पवित्र पाठ – Kaal Bhairav Ashtami Chalisa Path.
पुराणों के अनुसार भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं। बाबा भैरव को माता वैष्णो देवी का वरदान प्राप्त है। शिव पुराण में भैरव को महादेव का पूर्ण रूप बताया गया है। अत: जीवन के हर संकट से मुक्ति पाना है तो जातक को भैरव चालीसा का यह चमत्कारिक पाठ अवश्य पढ़ना चाहिए। आइए यहां पढ़ें संपूर्ण पाठ…
श्री भैरव चालीसा पाठ लिरिक्स – Kaal Bhairav Ashtakam.
पुराणों एवं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिव पुराण में भैरव को महादेव का पूर्ण रूप बताया गया है । इसलिए श्री काल भैरव नाथ जी की पूजा एवं पाठ की जाए तो प्राणियों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है प्रतिदिन श्री भैरव चालीसा का पाठ करने से सभी दुख- दर्द दूर हो जाते हैं। और सुख समृद्धि की बढोत्तरी होती है |
।।दोहा।।
गणपति, गुरू गौरी पद, प्रेम सहित धरि माथ ।
चालीसा वन्दन करौं, श्री शिव भैरवनाथ ।।
श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ।
श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल ।।
।। चौपाई।।
जय जय श्री काली के लाला ।
जयती जयती काशी-कुतवाला ।।
जयती ‘बटुक भैरव’ भय हारी ।
जयती ‘काल भैरव’ बलकारी ।।
जयती ‘नाथ भैरव’ चिख्याता ।
जयती ‘सर्व भैरव’ सुखदाता ।।
भैरव रूप कियो शिव धारण ।
भव के भार उतारण कारण ।।
भैरवं रव सुनि है भय दूरी ।
सब विधि होय कामना पूरी ।।
शेष महेश आदि गुण गायो ।
काशी के कोतवाल कहलायो ।।
जटा जूट शिव चन्द्र विराजत ।
बाला, मुकुट बिजायठ साजत ।।
कटि करधनी घुंघरू बाजत ।
दर्शन करत सकल भय भाजत ।।
जीवन दान दास को दीन्हयो ।
कृपा नाथ तब चीन्ह्यो ।।
वसि रसना बनि सारद-काली ।
दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली ।।
धन्य धन्य भैरव भय भंजन ।
जय मनरंजन खल दल भंजन ।।
कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा ।
कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा ।।
जो भैरव निर्भय गुण गावत ।
अष्टसिद्धि नवनिधि फल पावत ।।
रूप विशाल कठिन दुःख मोचन ।
क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन ।।
अगणित भूत-प्र -प्रेत संग डोलत ।
बं बं बं शिव बं बं बोलत ।।
रूद्रकाय काली के लाल ।
महा कालहू के हो कालाः ।।
बटुक नाथ हो काल गंभीरा ।
श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा ।।
करत तीनहुं रूप प्रकाशा ।
भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा ।।
रत्न जड़ित कंचन सिंहसान ।
व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआसन ।।
तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं ।
विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं ।।
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय ।
जय उन्नत हर उमानन्द जय ।।
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय ।
बैजनाथ श्री जगतनाथ जय ।।
महाभीम भीषण शरीर जय ।
रुद्र त्र्यत्वक धीर वीर जय ।।
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय ।
रूवानारूढ़ सयचन्द्र नाथ जय ।।
निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय ।
गहत अनाथन नाथ हाथ जय ।।
त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय ।
क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ।।
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय ।
कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ।।
रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर ।
चक्र तुण्ड दश पाणिव्यालधर ।।
करि मद पान शम्भु गुण गावत ।
चौंसठ योगिन संग नचावच ।।
करत कृपा जन पर बहु ढंगा ।
काशी कोतवाल अड़बंगा ।।
देय काल भैरव जब सोटा ।
नसै पाप मोटा से मोटा ।।
जनकर निर्मल होय शरीरा ।
मिटै सकल संकट भव पीरा ।।
श्री भैरव भूतों के राजा ।
बाधा हरत करत शुभ काजा ।।
ऐलादी के दुःख निवार्यो ।
सदा कृपा करि काज सम्हार्यो ।।
। सुन्दरदास सहित अनुरागा ।
श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ।।
‘श्री भैरव जी की जय’ लेख्यो ।
सकल कामना पूरण देख्यो ।।
।। दोहा ।।
जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिए, शंकर के अवतार ।।
जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार ।।
उस घर सर्वानन्द हो, वैभव बढ़े अपार ।।
श्री भैरव देव जी आरती – Aarti Shri Bhairav Ji.
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।
जय काली और गौर देवी कृत सेवा ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिन्धु तारक ।
भक्तो के सुख कारक भीषण वपु धारक ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।
महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे ।
चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तेल चटकी दधि मिश्रित भाषावाली तेरी ।
कृपा कीजिये भैरव, करिए नहीं देरी ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
पाँव घुँघरू बाजत अरु डमरू दम्कावत ।
बटुकनाथ बन बालक जल मन हरषावत ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहे धरनी धर नर मनवांछित फल पावे ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
काल भैरव के आठ स्वरूप कौन कौन से है ?
काल भैरव जी के रूप भीषण भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, रुद्र भैरव, असितांग भैरव, संहार भैरव, कपाली भैरव, उन्मत्त भैरव हैं।
काल भैरव जी का पूजा मंत्र क्या है ?
काल भैरव मंत्र ‘ऊँ कालभैरवाय नम:’ है।
काल भैरवाष्टमी क्यों मनाई जाती है ?
इस दिन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव के अवतार काल भैरव का अवतरण हुआ था। इसलिए काल भैरवाष्टमी मनाई जाती है।
काल भैरव अष्टमी 2022 में कब है?
काल भैरव अष्टमी 16 नवम्बर 2022 दिन बुधवार को आ रही है|
काल भैरवाष्टमी के दिन क्या दान करना चाहिए ?
काल भैरव को खिचड़ी, गुड़, तेल, चावल आदि का भोग लगाया जाता है। इस दिन आप नींबू, अकौन के फूल, काले तिल, धूप दान, सरसों का तेल, उड़द की दाल, पुए आदि चीजों का दान कर सकते हैं। इन चीजों का दान करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं
कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र | Kalbhairavashtak Stotra Lyrics Video.
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