कमला एकादशी / पद्मिनी एकादशी व्रत कथा | Kamla Ekadashi Vrat Katha.

Kamla Ekadashi Vrat Kathaपिछले पोस्ट में आपने पढ़ा कामिका एकादशी व्रत कथा और महत्त्व और इस पोस्ट में आप पढेंगे कमला एकादशी/ पद्मिनी एकादशी व्रत कथा

कमला एकादशी / पद्मिनी एकादशी व्रत कथा महात्म्य

धर्मराज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवान ! अब आप अधिक (लौंद) मास की शुक्लपक्ष की कमला एकादशी के बारे में बतलायें । उस एकादशी का नाम क्या है तथा उसके व्रत की विधि सो विधि पूर्वक कहिये ।

श्रीकृष्णा बोले कि राजन ! अधिक लौंद मास की एकादशी जो कि अनेक पुरायों को देने वाली है उसका नाम पद्मिनी एकादशी या कमला एकादशी भी कहते है। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। हे राजन ! इस विधि को मैंने सबसे प्रथम नारदजी से कहा था। वह विधि अनेक पापों को नष्ट करने वाली तथा भक्ति और मुक्ति प्रदान करने वाली है। अब मैं तुमसे उस विधि को पुनः कहता हूँ । आप ध्यानपूर्वक श्रवण कीजिये ।

दशमी के दिन व्रत को शुरू करना चाहिये ओर कांसे के पात्र में भोजन, मांस, मसूर, चना कोदों शहद शाक और पराया अन्न दशमी के दिन नहीं खाना चाहिये इस दिन हविष्य भोजन करना चाहिये और नमक भी नहीं खाना चाहिये । उस रात्रि को भूमि पर शयन करना चाहिये और ब्रह्मचर्यपूर्वक रहना चाहिये ।

एकादशी के दिन प्रातः उठकर नित्य क्रिया से निवृत होकर दातुन करनी चाहिये और बारह कुल्हा करके पुराय क्षेत्र में स्नान करने चला जाना चाहिये । उस समय गोबर मृत्तिका, तिल कुश तथा आमन्न की पूर्ण विधि पूर्वक स्नान करना चाहिये स्नान करने से प्रथम शरीर में मिट्टी लगाते हुये उसी से प्रार्थना करनी चाहिये।

हे मृत्तिके ! तुमको भगवान ने शूकर रूप धारण करके निकाला है। ब्रह्माजी ने तुम्हें दिया है और कश्यपजी ने तुमको मंत्रों से पूजा है इसलिये तुम मुझे भगवान की पूजा करने के लिये शुद्ध बना दो । समस्त ओषधियों से पैदा हुई, गौ पेट में स्थित करने वाली और पृथ्वी पवित्र करने वाली तुम मुझे शुद्ध करो। ब्रह्म के थूक से पैदा होने वाली । तुम मेरे शरीर को छू कर मुझे पवित्र करो। हे शंख चक्र गदा धारी देवों के देव ! जगन्नाथ ! आप मुझे स्नान के लिये आज्ञा दीजिये इसके उपरान्त वरुण मंत्र को जपकर स्नान करना चाहिये। पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुये किसी तालाब में स्नान करना चाहिये ।

स्नान करने के पश्चात स्वच्छ बगैर फटे वस्त्र को धारण करके तथा संध्या तर्पण करके मन्दिर में जाकर भगवान की पूजा करनी चाहिये । स्वर्ण की राधा सहित कृष्ण भगवान की प्रतिमा और पार्वती सहित महादेवजी की प्रतिमा बनाकर पूजन करे । धान्य के ऊपर मिट्टी या तांबे का घड़ा रखना चाहिये । उस घड़े को वस्त्र तथा गन्ध आदि से अलंकृत कर के उसके मुंह पर तांबे, चांदी या सोने का पात्र रखना चाहिये।

इसके बाद उस पात्र पर भगवान की प्रतिमा रखकर धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प केशर आदि से उनकी पूजा करनी चाहिये। उसके उपरान्त भगवान के सन्मुख नृत्य गान आदि करे उस दिन पतित तथा रजस्वला स्त्री का स्पर्श नहीं करना चाहिये । उस दिन असत्य बोलना तथा गुरु और ब्राह्मण की निन्दा नहीं करनी चाहिये। उस दिन भक्तजनों के साथ भगवान के सामने पुराण की कथा सुननी चाहिये। अधिक (लोंद) मास की शुक्ल पक्ष की पद्मिनी एकादशी का व्रत निर्जल करना चाहिये ।

यदि मनुष्य शक्ति रहित हो तो उसे जलपान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिये रात्रि में जागरण करके नाच और गान करके भगवान का स्मरण करते रहना चाहिये । प्रति पहर मनुष्य को भगवान या महादेव जी की पूजा करनी चाहिये। भगवान को पहले पहर में नारियल दूसरे में बिल्वफल, तीसरे में सीता फल और चौथे में सुपारी, नारंगी, अर्पण करना चाहिये।

इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में बाजपेय यज्ञ का तीसरे में अश्वमेव यज्ञ का और चौथे में राजसूय यज्ञ का फल मिलता है। इस फल से अधिक संसार में न यज्ञ है न विद्या है न दान आदि है।

एकादशी का व्रत करने वाले मनुष्य को समस्त तीर्थ और यज्ञों का फल मिल जाता है। इस तरह से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिये और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये । सभी पदार्थ भगवान की प्रतिमा सहित ब्राह्मणों को देना चाहिये।

इस प्रकार जो मनुष्य विधि पूर्वक भगवान की पूजा तथा व्रत करते हैं उनका जन्म सफल होता है और इस लोक में अनेक सुखों को भोगकर अन्त में परमधाम को जाते हैं है राजन ! मैंने आपको एकादशी के व्रत का पूरा विधान बता दिया अब जो पद्मनी एकादशी का भक्ति पूर्वक व्रत कर चुके हैं उनकी कथा को कहता हूँ ध्यान पूर्वक श्रवण कीजिये यह सुन्दर कथा पुलस्त्यजी ने नारदजी से कही थी।

एक समय कीर्तवीर्य ने रावण को कारा- गार में बन्द कर रखा था। उसको पुलस्त्यजी ने कीर्तवीर्य की विनय करके छुड़ाया। इस घटना को सुनकर नारदजी ने पुलस्त्यजी से पूछा कि हे महाराज ! उस महावीर रावण को जिसने समस्त देवताओं सहित देवराज इन्द्र को ‘जीत लिया था कीर्तवीर्य ने किस प्रकार जीता सो आप मुझे समझाइये । इस पर पुलस्त्यजी बोले कि हे नारदजी ! आप पहले कीर्तवीर्य की उत्पत्ति सुनो।

त्रेतायुग में महिष्मती नाम की नगरी में कार्तवीर्य नामक एक राजा राज्य करता था । उस राजा के सौ स्त्री थीं उनमें से किसी के भी राज्य भार लेने वाला योग्य पुत्र नहीं था बस राजा ने आदर पूर्वक पण्डितों को बुल-वाया और पुत्र की प्राप्ति के लिये यज्ञ किये परन्तु सब असफल रहे जिस प्रकार दुःखी मनुष्य को भोग नीरस मालूम पड़ते हैं उसी प्रकार उसको भी राज्य पुत्र बिना सुख देने वाला प्रतीत नहीं होता था।

अन्त में वह तप के द्वारा ही सिद्धियों को प्राप्त जानकर तपस्या करने के लिये बन को चला गया। उसकी स्त्री हरिश्चन्द्र की पुरी प्रमदा वस्त्रालंकारों को त्याग कर अपने पति के साथ गन्धमादन पर्वत पर चली गई । उस स्थान पर इन लोगों ने दस सहस्त्र वर्ष तक तपस्या की परन्तु सिद्धि प्राप्त न हो सकी।

राजा के शरीर में केवल हड्डियां रह गईं यह देख कर प्रमदा ने विनय सहित महासती अनुसूइया से पूछा कि मेरे पतिदेव को तपस्या करते हुये दस सहस्त्र वर्ष बीत गये परन्तु अभी तक भगवान प्रसन्न नहीं हुये हैं. – जिससे मुझे पुत्र प्राप्त हो । इस पर अनुसूइयाजी बोलीं कि अधिक (लौंद) मास में जो कि बत्तीस महीने बाद आता है उसमें दो एकादशी होती हैं जिसमें शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम कमला एकादशी या पद्मिनी एकादशी और कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम परमा है।

उस के जागरण और व्रत करने से भगवान तुम्हें अवश्य ही पुत्र देंगे । इसके पश्चात अनुसुइया जी ने व्रत की विधि बतलाई रानी ने अनुसूइया की बतलाई विधि के अनुसार कमला एकादशी का व्रत और रात्रि में जागरण किया।

इससे भगवान विष्णु उस पर बहुत प्रसन्न हुये और वरदान मांगने के लिये कहा । रानी उस पर भगवान की स्तुति करने लगी रानी ने कहा कि आप यह वरदान मेरे पति को दीजिये प्रमदा का वचन सुनकर भगवान विष्णु बोले कि ह प्रमदे ! मल मास मुझे बहुत प्रिय है । जिसमें एकादशी मुझे सबसे अधिक प्रिय है इस कादशी का व्रत यथा रात्रि जागरण तुमने विधि पूर्वक किया । इसलिये मैं तुम पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ इतना कहकर भगवान विष्णु राजा से बोले कि हे राजेन्द्र ! तुम अपनी इच्छा के अनुसार वर मांगो। क्योंकि तुम्हारी स्त्री ने मुझको प्रसन्न किया है ।

भगवान की सुन्दर वाणी को सुनकर राजा बोला कि हे भगवान ! आप मुझे सबसे श्रेष्ठ सबके द्वारा पूजित तथा आपके अति- रिक्त देव, दानव, मनुष्य आदि से अजेय उत्तम पुत्र दीजिये । भगवान उससे तथास्तु कहकर अन्तर्ध्यान हो गये । वह दोनों अपने राज्य को वापिस आये। उन्हीं के यहां कीर्तवीर्य उत्पन्न हुये थे । वह भगवान के अतिरिक्त सबसे अजेय थे।

इसी से इन्होंने रावण को जीत लिया था । यह सब पद्मनी एकादशी (कमला एकादशी) के व्रत का प्रभाव था । नारदजी से इतना कहकर पुलस्त्य जी वहां से चले गये ।

भगवान बोले कि हे धर्मराज ! यह मैंने अधिक (लौंद) मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत कहा है जो मनुष्य इस व्रत को करता है वह विष्णु लोक जाता है भगवान का वचन सुनकर युधिष्ठिर ने भी अपने कुटुम्ब सहित इस व्रत को किया । सूतजी बोले कि हे ब्राह्मणो ! जो आपने पूछा था सो मैंने सब कह दिया अब आप क्या सुनना चाहते हैं ? जो मनुष्य इसकी कथा को सुनेंगे वे स्वर्गलोक को जावेंगे।


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