क्या भगवान होते हैं, भगवान है या नहीं | Kya Bhagwan Hai ?

क्या भगवान है…! (Kya Bhagwan Hai) क्या भगवान होते हैं, भगवान है या नहीं..!

एक मेजर द्वारा लिखी एक सच्ची घटना (Bhagwan) भगवान क्या है..?

अक्सर लोग सोचते हैं क्या ईश्वर सच में होते हैं? क्या सच में भगवान है? आइए इस सत्य घटना से जानते हैं। ये सच्ची घटना जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा सेक्टर की है। Indian Army के 15 सिख जवान अपने मेजर के नेतृत्व में, हिमालय के ऊँचाइयों में बनी आर्मी पोस्ट जा रहे थे। अगले 3 महीनों तक उन्हें इसी Army post पर रहना था।

हिमालय की बर्फीली ऊँचाइयों पर बनी इन आर्मी पोस्ट पर सैनिकों की तैनाती हर 3 महीने पर बदलती रहती है। जाहिर है, उस पोस्ट पर जो आर्मी की टुकड़ी थी, उन्हें इस आने वाली टुकड़ी का बेसब्री से इंतजार था।

सर्दी का मौसम था और बीच-बीच में बर्फ पड़ने की वजह से कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. इससे इन दुर्गम रास्तों पर सफ़र और भी मुश्किल हो गया था। सफ़र के बीच मेजर के मन में ख्याल आया – काश ! एक कप चाय मिल जाती तो बड़ी राहत मिलती।

काश इसलिए क्योंकि ये देर रात का समय था और इतनी ठंडी में कौन ही दुकान खोलेगा।

एक घंटे ऐसे ही पैदल चलने के बाद, ये काफिला सूनसान में बनी छोटी सी दुकान के पास रुका जोकि चाय की दुकान लग रही थी. दुकान पर ताला पड़ा हुआ था। मेजर ने कहा – जवानों चाय तो किस्मत में नहीं, हाँ थोड़ा आराम कर लो यहाँ पर। सेना की इस टुकड़ी ने करीब 3 घंटे पहले सफ़र शुरू किया था।

एक जवान बोला – सर ! ये चाय की दुकान है, हम चाय बना सकते हैं…बस ये ताला तोड़ना होगा।

आर्मी मेजर सोच में पड़ गये. ये एक अनैतिक सलाह थी, लेकिन ठंड में थके सेना के जवानों को एक कप चाय से बड़ी सहायता मिलेगी, ये सोचकर उन्होंने अनुमति दे दी।

किस्मत उनके साथ थी, दुकान में चाय बनाने का सब सामान और बिस्कुट के कुछ पैकेट भी थे। फटाफट गर्मागर्म चाय बनी। चाय बिस्कुट से तरोताजा होकर Army के जवान आगे बढ़ने को तैयार थे।

मेजर ने सोचा, उन्होंने दुकान तोड़ी और बिना दुकान के मालिक की आज्ञा के चाय बिस्कुट लिया। लेकिन हम कोई चोर मण्डली तो हैं नहीं, हम तो आर्मी के अनुशासित जवान हैं।

मेजर ने 1,000 रुपये पर्स से निकाले और दुकान के काउंटर पर एक डिब्बे से ऐसे दबाकर रखा कि चायवाले को आसानी से मिल जाये। मेजर अब अपराध भावना से मुक्त हुए. उन्होंने दुकान के दरवाजे बंदकर आगे बढ़ने का आदेश दिया।

3 महीने का समय बीता। इंडियन आर्मी के इस टुकड़ी ने बड़ी जिम्मेदारी और सजगता से आर्मी पोस्ट पर Duty निभाई। सबसे अच्छी बात ये थी कि इस दौरान हुई कई झड़पों के बावजूद सभी सही सलामत थे।

अब समय आ गया था कि अगली टीम उनकी जगह लेने के लिए आये। वो दिन भी आ गया, उस टुकड़ी ने आगामी टुकड़ी को जिम्मेदारियाँ सौंपी और वापसी को निकल पड़े. संयोग से वो फिर उसी दुकान पर रुके। इस बार दिन का समय था, दुकान खुली थी और चायवाला मौजूद था।

चायवाला एक बूढ़ा व्यक्ति था। इतने सारे ग्राहकों को एक साथ देखकर वो बहुत खुश हुआ। सभी को उसने चाय बनाकर पिलाई और नाश्ता दिया।

मेजर चाय वाले से बात करने लगा। मतलब वो कहाँ रहता है, कब से ऐसे सूनसान जगह पर दुकान चला रहा है। बूढ़ा अपने अनुभव और कई कहानियाँ बताने लगा। हर कहानी में भगवान का एहसान और विश्वास, ये विचार समाहित था।

एक जवान बोल पड़ा – अरे बाबा ! अगर भगवान हर जगह है, तो उसने आपको इतनी गरीबी में क्यों रखा है ?

ऐसा मत बोलो साहब ! भगवान कहाँ नहीं है, भगवान वाकई हर जगह है, मेरे पास सबूत है – चायवाले ने कहा।

3 महीने पहले की बात है। बड़ा बुरा समय चल रहा था। मेरे एकलौते बेटे को आतंकवादियों ने कुछ जानकारी पता करने के लिए बुरी तरह से मारा था, ऐसी जानकारी जो उसे पता ही नहीं थी।

मुझे दुकान बंद करके लड़के को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। दुकान कई दिन बंद रही और उधर दवाईयों, इलाज का खर्च के लिए पैसे भी खत्म हो गये थे।

आतंकवादियों के डर से लोग भी मुझे उधार देने से बच रहे थे। मैं बड़ा निराश और नाउम्मीद हो चला था।

साहब ! उस दिन मैंने भगवान को याद किया और मदद के लिए प्रार्थना की।

और वाकई भगवान उस दिन मेरी मदद करने दुकान पर आये। हुआ यह कि अगले दिन सुबह जब मैं दुकान पर लौटा तो क्या देखता हूँ कि दुकान का ताला टूटा पड़ा है।

मेरी तो सांस ही रुक गयी, लगा कि सब खत्म हो गया। जो थोड़ा बहुत था वो भी चला गया। तभी मेरी नजर काउंटर पर डिब्बे से दबे 1,000 रुपयों पर गयी।

साहब ! आप अंदाजा नहीं लगा सकते, उस दिन मेरे लिए उन रुपयों की क्या कीमत थी। कौन कहता है भगवान नहीं हैं। भगवान सच में हैं साहब ! बिलकुल हैं।

चायवाले की आँखों में गहरे विश्वास की चमक थी। सभी जवानों की ऑंखें मेजर की आँखों से मिली। मेजर समझ गये और इशारों में ही सबको आदेश दिया कि कोई कुछ नहीं बोलेगा।

मेजरसाब उठे, चाय का पैसा दिया और बूढ़े से हाथ मिलाकर बोले – सही कहते हो बाबा ! वाकई भगवान सच में होते हैं। और हाँ ! चाय के लिए शुक्रिया, आपकी चाय बहुत अच्छी थी।

सभी जवानों की आँखें मेजर की आँखों से मिली जोकि थोड़ा नम हो चली थी, पहली बार उन्होंने ऐसा नोटिस किया।

सेना के जवानों के लिए उस रात वो दुकान भगवान की कृपा बन गयी और अगली सुबह बूढ़े चायवाले के लिए मेजरसाब भगवान बन गए…।।

भगवान कहाँ है..? भगवान हर जगह है। कई बार आप भी किसी के लिए भगवान का रूप बन सकते हैं। भगवान ऐसे ही लोगों को माध्यम बना कर अपना काम करतें है।

कभी कभी हमारे मन में ख्याल आता है भगवान होते हैं कि नहीं। हम सोचते हैं भगवान हमें चमत्कार दिखाकर अपने होने का सबूत दे। भगवान की सत्ता ऐसे कार्य नहीं करती। न ही आपके लिए उन्हें खुद को सिद्ध करने की आवश्यकता या मजबूरी है।

भगवान तो एक बच्चे के समान निश्छल हैं, सिर्फ प्रेम और विश्वास से ही उन्हें पाया जा सकता है।

आपके अंदर भी उन्हीं की शक्ति है। उस शक्ति पर भरोसा रख कर दिमाग के घोड़े दौड़ाइए, सारे सम्भव प्रयास कीजिये। उस चायवाले ने भी सारे प्रयास करने के बाद भगवान को याद किया।

कहा भी गया है –:

God help those who help themselves !!


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