कहानी 2. जानिए क्या है महापुरुष की महिमा | Mahapurush ki Mahima

हम यहाँ पर हमेशा कुछ न कुछ नया लिखते है जैसे हमारा पिछला लेख इस संसार में जिसकी जैसी करनी वैसी भरनी इसे जरुर पढ़ें लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे है एक महापुरुष की महिमा (Mahapurush ki Mahima) के बारे में | संसार में कई प्रकार की महिमाये है उनमे से एक महिमा के बारे में हम आज अपको यहाँ बताने वाले है उम्मीद है आपको पसंद आएगी|

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आज के समय में अगर देखा जाए तो कई ऐसे उदाहरण मिलते है जिसे जादुई चमत्कार कहा जा सकता है लेकिन क्या यह सच होते है इनमे कितनी सच्चाई है आपने कभी सोचा है ?? मेरे हिसाब से कुछ तो गलत है लेकिन कुछ महिमा ईश्वर की है जिसे आप या हम कोई भी नकार नहीं सकता है ऐसे ही आज भी कुछ मनुष्य रुपी भगवान के सामान लोग भी है इस संसार में जिनके दर्शन मात्र से आपको संतुष्टि मिलती है तो चलिए आज का हमारा लेख ऐसे ही एक महापुरुष की महिमा पर आधारित है चलिए लेख में आगे बढ़ते है :-

महापुरुष की महिमा | Mahapurush ki Mahima

एक समय की बात है मुनि नारद जी घूमते-फिरते मृत्युलोक में आ जाते है। यहाँ पर आकर मुनि ने देखा यहाँ एक गृहस्थ परिवार ने यद्यपि अनेक उपाय किये थे, फिर भी उसके पुत्र नहीं हुआ था। नारद जी बहुत कुछ सोचने के बाद उसके पास गए तब उस व्यक्ति ने नारद जी को प्रणाम किया और और उनसे विनती करते हुए कहा- ‘भगवन् ! मुझे ऐसा अशीर्वाद दीजिए कि जिससे मेरे पुत्र हो।

इतना सुनने के बाद पहले तो नारद जी कुछ संकुच में आये और सोचने लगे लगता है यह बहुत दुखी है पुत्र प्राप्ति को लेकर फिर नारदजी ने कहा- ‘बहुत ठीक है, तुम्हारे पुत्र होगा, परन्तु मैं भगवान विष्णु से पूछकर जवाब दूंगा।

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और इतना कह कर नारद जी वहां से चले जाते है और भगवान विष्णु जी के स्थान पहुचते है और भगवान की स्तुति करने के बाद बात शुरू करते है|

विष्णु जी से जाकर नारदजी ने कहा कि ‘प्रभु मैं उस गरीब को वचन दे आया हूँ इसलिए उसके पुत्र होना ही चाहिए।

भगवान बोले- नारद उसे व्यक्ति को सात जन्म तक एक भी पुत्र नहीं लिखा है,  तब इसी जन्म में पुत्र कैसे दिया जा सकता है ?  नारद जी ने लौटकर उस गृहस्थ को विष्णु की बात बतायी। जिससे वह निराश हो गया।

इसी समय उस गाँव में एक बहुत बड़े ज्ञानी राग-द्वेषहीन और वनवासी महात्मा आ गये। महात्मा ने बहुत दिनों से कुछ खाया नहीं था । अतएव वे गाँव में घूम-घूमकर कह रहे थे कि ‘जो मनुष्य मुझे जितनी रोटियाँ खिलायेगा, उसके उतने ही पुत्र होंगे।  उस गृहस्थ ने उन्हें तीन रोटियाँ दी और महात्मा आशीर्वाद देकर चले गये ।

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कुछ दिन बाद नारदजी फिर उस गृहस्थ के घर पहुँचे तो उन्होंने उसके घर तीन-तीन पुत्र खेलते देखे । गृहस्थ ने नारद से कहा- ‘तुम कितना झूठ बोलते हो । देखो, एक महात्माजी की कृपा से मेरे तीन पुत्र हुए।’ इससे नारद जी को बड़ा क्रोध आया और वे उसी आवेश में विष्णु के पास इसका कारण पूछने गये ।

नारद जी को देखकर भगवान विष्णु ने ढोंग करते हुए कहा- ‘अरे, मैं मरा जा रहा हूँ, कोई दवा दो’। नारद ने कहा ‘आप दवा का नाम बता दीजिए, मैं अभी ले आऊँ ।’

भगवान बोले- ‘यदि किसी भक्त का कलेजा काटकर ला सको तो उसी का रुधिर मलकर मैं इस दुःख से छूटूंवरना ऐसे ही कराहता रहूँ ।’ अब नारद जी रहा नहीं गया अब नारद जी भक्त का कलेजा ढूंढ़ने निकल चले और हर एक जगह खोजने के बाद भी उनको कुछ नहीं मिला और जो कुछ मिले भी किन्तु किसी ने उन्हें अपना कलेजा नहीं दिया | उलटे कहा कि ‘तुम्हीं अपना कलेजा काटकर क्यों नहीं दे देते ? भक्त होकर भी दूसरों से क्यों माँगते फिर रहे हो ?

हर जगह खोजने के बाद अन्त में उन्हें वह पुत्रदाता महात्मा मिला । नारद ने विष्णु के दुःख की बात बतायी तो वह राजी होकर नारद के साथ विष्णु भगवान के पास जा पहुँचा और कहा “भगवन् ! यदि मेरा कलेजा आपके काम आ सके तो इसे तुरन्त काट लीजिये ।”

यह तत्परता देखकर विष्णु ने नारद से कहा- ‘देखो नारद जी ! ऐसे महापुरुष ही निपते (निःसंतान) को पुत्र दे सकते हैं, हमारे-तुम्हारे जैसे लोग नहीं, क्योंकि अपना कलेजा पास रहते हुए भी तुम मेरे लिए दूसरे का कलेजा मांगने गये थे।” यह सुनकर नारदजी शरमा गये। यह है महापुरुष की महिमा और यह है उनका त्याग ।

अंतिम शब्द – महापुरुष की महिमा | Mahapurush ki Mahima

महापुरुष होना कोई ढोंग नहीं महापुरुष बनने के लिए बहुत ही कठिन त्याग चाहिए जो आप और हमारे बस की बात नहीं है इसलिए महापुरुष की महिमा अनंत है उनका सम्मान करे और उनकी बातों का अनुशरण करें |


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