श्री मयूरेश स्तोत्र अर्थ सहित | Mayuresh Stotra Lyrics

“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ |
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा ||

श्री मयूरेश स्तोत्र | Mayuresh Stotra Lyrics

ब्रह्मोवाच

पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा।

मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम्।

गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया।

सर्वविघन्हरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि विभ्रतम्।

नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम्॥

इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम्।

सदसद्वयक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम्।

सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम्।

भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम्।

समाष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम्॥

सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम्।

सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम्।

अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

मयूरेश उवाच

इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम्।

सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम्॥

कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात्।

आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम्॥

श्री मयूरेश स्तोत्र अर्थ सहित | Mayuresh Stotra Lyrics

ब्रह्मोवाच
पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा।
मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अर्थ:
ब्रह्माजी बोले- जो पुराणपुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की क्रीड़ाएं करते हैं जो माया के स्वामी हैं तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाव्य है, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूं।

परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम्।
गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार, सबके हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित गुणातीत एवं गुणमय हैं, उन मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूं।

सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया।
सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो स्वेच्छा से ही संसार की सृष्टि पालन और संहार करते हैं, उन सर्वविघ्नहारी देवता मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं।

नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम्।
नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो अनेकानेक दैत्यों के प्राणनाशक हैं और नाना प्रकार के रूप धारण करते हैं, उन नाना अस्त्र-शस्त्रधारी मयूरेश को मैं भक्तिभाव से नमस्कार करता हूं।

इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम्।
सदसद्व्यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अर्थ:
इन्द्र आदि देवताओं का समुदाय दिन-रात जिनका स्तवन करते हैं तथा जो सत्य, असत्य, व्यक्त और अव्यक्त रूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं।

सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम्।
सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो सर्वशक्तिमय, सर्वरूपधारी और संपूर्ण विद्याओं के प्रवक्ता हैं, उन भगवान मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं।

पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम्।
भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो पार्वती जी को पुत्र रूप से आनन्द प्रदान करते और भगवान शंकर का भी आनंद बढ़ाते हैं, उन भक्त आनन्दवर्धन मयूरेश को मैं नित्य नमस्कार करता हूं।

मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम्।
समष्टिव्यष्टिरूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अर्थ:
मुनि जिनका ध्यान करते, मुनि जिनके गुण गाते तथा जो मुनियों की कामना पूर्ण करते हैं, उन समष्टि-व्यष्टि रूप मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं।

सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम्।
सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो समस्त वस्तु विषयक अज्ञान के निवारक, सम्पूर्ण ज्ञान के उद्भावक, पवित्र, सत्य ज्ञान स्वरूप तथा सत्य नामधारी हैं, उन मयूरेश को मैं नमस्कार करता हूं।

अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम्।
अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो अनेक कोटि ब्रह्माण्ड के नायक, जगदीश्वर, अनन्त वैभव-संपन्न तथा सर्वव्यापी विष्णु रूप हैं, उन मयूरेश को मैं प्रणाम करता हूं।

मयूरेश उवाच
इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम्।
सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम्॥
कारागृहगतानां च मोचनं दिनसप्तकात्।
आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम्॥

अर्थ:
मयूरेश ने कहा,
“यह स्तोत्र ब्रह्मभाव की प्राप्ति कराने वाला और समस्त पापों का नाशक है। मनुष्यों को सम्पूर्ण मनोवांछित वस्तु देने वाला तथा सारे उपद्रवों का शमन करने वाला है। सात दिन इसका पाठ किया जाये तो कारागार में बंद मनुष्य को भी छुड़ा लाता है। यह शुभ स्तोत्र मानसिक चिन्ता तथा व्याधि यानी सभी रोगों को भी हर लेता है और भोग एवं मोक्ष प्रदान करता है।”

भगवान गणेश संसार के कल्याण के लिए कई रूपों में अवतरित हुए हैं। इस मयूरेश स्तोत्र में उनके इन्हीं रूपों के बारे में बताया गया है।

इस स्तोत्र में ब्रह्माजी कहते हैं कि भगवान गणपति अनेकानेक दैत्यों के प्राणनाशक हैं और नाना प्रकार के रूप धारण करते हैं और जगत का कल्याण करते हैं।

भगवान गणेश जी का नाम सभी देवों में सर्वप्रथम लिया जाता है। भगवान गणेश देवताओं द्वारा भी पूजे जाते हैं। मयूरेश स्तोत्र में उनकी महिमा का वर्णन खुद ब्रह्माजी करते हैं।


मयूरेश स्तोत्र क्या है?

मयूरेश स्तोत्र भगवान गणेश के एक विशेष स्वरूप मयूरेश्वर को समर्पित एक स्तोत्र है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन भक्तों द्वारा पढ़ा जाता है जो भगवान गणेश से ज्ञान, बुद्धि, और बाधाओं से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। मयूरेश्वर, गणपति के आठ महत्वपूर्ण रूपों में से एक हैं और उनका यह रूप महाराष्ट्र के अष्टविनायक तीर्थ में मयूरेश्वर मंदिर में स्थापित है।

मयूरेश स्तोत्र का पाठ करने से क्या लाभ होता है?

मयूरेश स्तोत्र का नियमित पाठ करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं:

  1. जीवन में आने वाली बाधाएं और कष्ट दूर होते हैं।
  2. ज्ञान, बुद्धि, और स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है।
  3. कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
  4. शत्रुओं और नकारात्मक ऊर्जा से बचाव होता है।
  5. परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है।
  6. मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

मयूरेश स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?

मयूरेश स्तोत्र का पाठ करने का सबसे शुभ समय गणेश चतुर्थी, बुधवार, और चतुर्थी तिथि मानी जाती है।

  • प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • गणपति की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक और धूप जलाकर उनका स्मरण करें।
  • शांत मन से मयूरेश स्तोत्र का पाठ करें।
  • पाठ के बाद गणपति को दूर्वा, मोदक, और लाल पुष्प अर्पित करें।

मयूरेश स्तोत्र किसने रचा है?

मयूरेश स्तोत्र का रचयिता प्राचीन ऋषि या संत माने जाते हैं। यह स्तोत्र भगवान गणेश के मयूरेश्वर स्वरूप की महिमा का वर्णन करता है। विशेष रूप से, इसे भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रभावी माना जाता है।

मयूरेश स्तोत्र का पाठ किन लोगों को करना चाहिए?

मयूरेश स्तोत्र का पाठ उन लोगों को करना चाहिए:

  1. जिनके जीवन में बार-बार बाधाएं और रुकावटें आती हैं।
  2. जो शिक्षा, करियर, और व्यापार में सफलता चाहते हैं।
  3. जिनके जीवन में नकारात्मक ऊर्जा या शत्रुओं का प्रभाव अधिक है।
  4. जो शारीरिक, मानसिक, और आर्थिक समस्याओं से परेशान हैं।
  5. जिन्हें संतान प्राप्ति या परिवारिक शांति की आवश्यकता है।

मयूरेश्वर कौन हैं, और उनका महत्व क्या है?

मयूरेश्वर भगवान गणेश का वह स्वरूप है जिसमें उन्होंने मयूर (मोर) की सवारी की थी। यह स्वरूप विशेष रूप से महाराष्ट्र के मोरेगांव में पूजनीय है।

  • यह स्थान अष्टविनायक तीर्थ का पहला तीर्थस्थल है।
  • मयूरेश्वर को ज्ञान और बुद्धि का दाता माना जाता है।
  • यह स्वरूप भक्तों को जीवन की हर समस्या से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।

मयूरेश स्तोत्र और गणपति अथर्वशीर्ष में क्या अंतर है?

  • मयूरेश स्तोत्र भगवान गणेश के मयूरेश्वर स्वरूप की स्तुति है, जो विशेष रूप से मोरेगांव में पूजित है।
  • गणपति अथर्वशीर्ष वेदों का एक उपनिषद है, जो भगवान गणेश की महिमा और उनके ब्रह्मस्वरूप का वर्णन करता है।
  • दोनों ही पाठ भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावी हैं, लेकिन मयूरेश स्तोत्र विशेष रूप से मयूरेश्वर की स्तुति है।

मयूरेश स्तोत्र का पाठ कितने समय में प्रभाव दिखाता है?

मयूरेश स्तोत्र का प्रभाव व्यक्ति की श्रद्धा, विश्वास, और नियमितता पर निर्भर करता है। यदि इसे नियमित रूप से विधि-विधान से किया जाए, तो कुछ ही दिनों या हफ्तों में सकारात्मक परिणाम मिलने लगते हैं। कठिन समस्याओं के समाधान के लिए इसे 21 या 40 दिनों तक लगातार पढ़ने की सलाह दी जाती है।


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