Narmada Jayanti 2025 – नर्मदा जयंती न केवल धार्मिक पर्व नहीं है बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर का भी उत्सव माना जाता है। यह हमें नदी संरक्षण और पर्यावरण संतुलन की प्रेरणा देता भी है। इस दिन हम न केवल अपने आध्यात्मिक कल्याण की कामना करते हैं साथ ही जल स्रोतों को बचाने का संकल्प भी लेते हैं। इसे केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक जीवंत देवी माँ के रूप में पूजा जाता है। जिसका जल मोक्ष प्रदान करने की शक्ति रखता है। नर्मदा जयंती और नर्मदा परिक्रमा जैसे पर्व इसकी महानता को और बढ़ाते हैं।
![माँ नर्मदा की महिमा | गंगा से भी पवित्र नदी का रहस्य | Narmada Jayanti 2025](https://bhagwanam.com/wp-content/uploads/2025/02/नर्मदा-जयंती-Narmada-Jayanti.jpg)
मुख्य तथ्य (Narmada Jayanti 2025)
- नर्मदा जयंती माघ शुक्ल सप्तमी को मनाई जाती है।
- नर्मदा नदी अमरकंटक, मध्य प्रदेश से निकलती है।
- यह भारत की सबसे पवित्र और प्राचीन नदियों में से एक है।
- नर्मदा परिक्रमा यात्रा सबसे कठिन आध्यात्मिक यात्राओं में से एक मानी जाती है।
- यहाँ के बाणलिंग शिवलिंग (नर्मदेश्वर) के रूप में पूजे जाते हैं।
- नर्मदा नदी में अस्थि विसर्जन नहीं किया जाता।
- प्रमुख आयोजन स्थल: जबलपुर, अमरकंटक, ओंकारेश्वर, महेश्वर।
नर्मदा जयंती भारत की पवित्र नदी का उत्सव
नर्मदा जयंती भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख धार्मिक पर्व है, जो नर्मदा नदी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व माघ शुक्ल सप्तमी (हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि) को मनाया जाता है। विशेष रूप से मध्य प्रदेश और गुजरात में यह पर्व अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु नर्मदा नदी में स्नान, पूजा-अर्चना, दान और दीपदान करते हैं, जिससे आत्मशुद्धि और पापों से मुक्ति का विश्वास किया जाता है।
नर्मदा नदी का आध्यात्मिक महत्व
नर्मदा नदी को हिंदू धर्म में माँ नर्मदा के रूप में देवी का दर्जा प्राप्त है।
- मान्यता है कि भगवान शिव ने नर्मदा को वरदान दिया कि इसका जल स्वयं शुद्ध होगा।
- अन्य नदियों की तुलना में नर्मदा नदी का महत्व विशेष है क्योंकि यह एकमात्र नदी है, जिसके जल को गंगा जल की तरह पवित्र और शुद्ध माना जाता है।
- नर्मदा नदी के तट पर अनेक ऋषि-मुनियों ने तपस्या की थी, जिनमें आदि शंकराचार्य भी प्रमुख हैं।
नर्मदा जयंती के मुख्य अनुष्ठान एवं उत्सव
- पवित्र स्नान (नदी में डुबकी लगाना): अमरकंटक, ओंकारेश्वर, महेश्वर जैसे प्रमुख स्थानों पर भक्त स्नान कर आत्मशुद्धि की कामना करते हैं।
- विशेष पूजा-अर्चना और आरती: नर्मदा तट के मंदिरों में भव्य महा आरती का आयोजन होता है, जिसमें हजारों भक्त भाग लेते हैं।
- दान-पुण्य: इस दिन भक्तगण गरीबों को भोजन, वस्त्र, और अन्नदान करते हैं।
- नर्मदा परिक्रमा: कुछ श्रद्धालु नर्मदा परिक्रमा यात्रा करते हैं, जो पूर्ण होने में तीन से छह महीने तक का समय ले सकती है।
- दीपदान: भक्तजन नदी में दीप प्रवाहित करते हैं, जिससे तटों का दृश्य अद्भुत और मनमोहक बन जाता है।
नर्मदा जयंती का विशेष महत्व
- यह पर्व शुद्धता, आध्यात्मिक ऊर्जा और जीवन के प्रवाह का प्रतीक है।
- इस दिन की गई पूजा और स्नान से पापों से मुक्ति मिलने की मान्यता है।
- यह पर्व नदियों के संरक्षण और उनके महत्व को समझाने का अवसर भी है।
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भगवान शिव के तप से नर्मदा का जन्म कैसे हुआ
पौराणिक मान्यता के अनुसार, नर्मदा नदी का जन्म भगवान शिव के तप से हुआ। कथा के अनुसार, भगवान शिव जब घोर तपस्या में लीन थे, तब उनके शरीर से पसीने की बूंदें टपकीं, जिससे नर्मदा का जन्म हुआ। इस कारण से नर्मदा को शिव की पुत्री (शंकर जी की कन्या) या शंकरदायिनी भी कहा जाता है।
गंगा और नर्मदा की प्रतिद्वंद्विता
एक अन्य कथा के अनुसार, गंगा और नर्मदा दोनों नदियाँ यह तय कर रही थीं कि कौन अधिक पवित्र है। गंगा ने स्वयं को सबसे पवित्र बताया क्योंकि लोग उसमें स्नान कर अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं। परंतु, नर्मदा को अहंकार नहीं था, और उसने भगवान शिव से विनती की कि वह कभी भी अपवित्र न हो। तब भगवान शिव ने वरदान दिया कि गंगा का जल तभी पवित्र रहेगा जब उसमें श्रद्धालु स्नान करेंगे, लेकिन नर्मदा का जल स्वयं शुद्ध और पवित्र रहेगा। इसीलिए, कहा जाता है कि नर्मदा जल को स्वयं स्नान करने की आवश्यकता नहीं होती, यह स्वयं शुद्ध रहता है।
नर्मदा और सोनभद्र की प्रेम कथा
यह कथा नर्मदा और सोनभद्र (सोन नदी) के प्रेम से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि नर्मदा और सोनभद्र एक-दूसरे से विवाह करना चाहते थे। लेकिन, जब विवाह का समय आया, तो सोनभद्र देर से पहुँचे। इस पर नर्मदा ने क्रोधित होकर पूर्व की ओर बहने से इनकार कर दिया और पश्चिम की ओर चल पड़ी, जबकि गंगा, यमुना और अन्य नदियाँ आमतौर पर पूर्व की ओर बहती हैं। यही कारण है कि नर्मदा पश्चिम प्रवाहित नदी है।
नर्मदा परिक्रमा का महत्व
ऋषि-मुनियों और संतों द्वारा नर्मदा की परिक्रमा यात्रा को अत्यंत शुभ और कठिन तपस्या माना गया है। कथा के अनुसार, भगवान शिव ने कहा था कि जो व्यक्ति नर्मदा की परिक्रमा करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है। इस परिक्रमा को पूरा करने में तीन से छह महीने तक का समय लगता है, और इसे पैदल पूरा करना बहुत कठिन माना जाता है।
नर्मदा के बाणलिंग का रहस्य
नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले शिवलिंग के आकार के पत्थर (बाणलिंग) अत्यंत पूजनीय माने जाते हैं। मान्यता है कि स्वयं भगवान शिव ने नर्मदा को यह आशीर्वाद दिया था कि उनके तट से मिलने वाले ये पत्थर शिवलिंग के रूप में पूजे जाएंगे। यही कारण है कि नर्मदा से प्राप्त बाणलिंग भारत के विभिन्न मंदिरों और घरों में पूजे जाते हैं।
राजा मंधाता और नर्मदा का आशीर्वाद
प्राचीन काल में राजा मंधाता, जो भगवान राम के पूर्वज थे, ने नर्मदा नदी के तट पर कठोर तपस्या की थी। वे भगवान शिव के अनन्य भक्त थे और मोक्ष की प्राप्ति के लिए वर्षों तक नर्मदा के किनारे ध्यानमग्न रहे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि नर्मदा का जल हमेशा उनके वंश के लिए कल्याणकारी रहेगा। यही कारण है कि ओंकारेश्वर (जहाँ राजा मंधाता ने तपस्या की थी) को शिव का प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है।
परशुराम का नर्मदा स्नान
भगवान परशुराम, जो भगवान विष्णु के छठे अवतार थे, ने जब इक्कीस बार धरती से क्षत्रियों का संहार किया, तब वे अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए नर्मदा नदी में स्नान करने आए। नर्मदा ने उन्हें शुद्ध किया और उनके हृदय में शांति का संचार किया। इस घटना के बाद से यह मान्यता बन गई कि नर्मदा में एक बार स्नान करने से पापों का नाश हो जाता है।
अगस्त्य मुनि और नर्मदा का वरदान
अगस्त्य मुनि ने एक बार नर्मदा नदी के किनारे घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, नर्मदा देवी ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से इस नदी की पूजा करेगा, वह जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करेगा और मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त करेगा। यही कारण है कि नर्मदा तट पर कई संतों और ऋषियों ने तपस्या की।
नर्मदा का जल कभी अशुद्ध नहीं होता
एक बहुत ही प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब सभी नदियाँ सत्ययुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग में पवित्र मानी जाती थीं, तो कलियुग में गंगा सहित सभी नदियाँ अशुद्ध हो जाएँगी। लेकिन, केवल नर्मदा नदी ऐसी होगी, जिसका जल हमेशा शुद्ध और पवित्र रहेगा। यही कारण है कि नर्मदा के जल को गंगा जल के समान ही दिव्य माना जाता है, और इसे घरों में पूजा के लिए रखा जाता है।
नर्मदा की एक झलक से मोक्ष
कई धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति नर्मदा स्नान नहीं कर सकता, तो केवल इसे देखने या स्पर्श करने मात्र से भी पवित्रता प्राप्त हो जाती है। एक कथा के अनुसार, एक बार नारद मुनि ने भगवान विष्णु से पूछा कि नर्मदा इतनी पवित्र क्यों है? तब भगवान विष्णु ने उत्तर दिया कि जो पुण्य गंगा में स्नान करने से मिलता है, वही पुण्य केवल नर्मदा के दर्शन से ही प्राप्त हो जाता है
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