निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadashi Vrat Katha

Nirjala Ekadashi Vrat Katha –
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी जयेष्ट माह के शुक्ल पक्ष एकादशी मनाई जाएगी इस एकादशी को प्रायः लोग निर्जला एकादशी व्रत भी कहते है, यह एकादशी व्रत कथा सुनने और व्रत रखने से सभी मनोकामनाओ की पूर्ति होती है ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा गया है साथ ही इस दिन व्रत रखने से तीर्थ स्नान के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है तो चलिए स्मरण करते है निर्जला एकादशी व्रत कथा और महत्त्व:-

प्रत्येक वर्ष के अनुसार इस बार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि मंगलवार, 30 मई दोपहर 01 बजकर 07 मिनट से प्रारंभ हो रही है और ये तिथि अगले दिन 31 मई दिन बुधवार को दोपहर 01 बजकर 45 पर तक होगी। ऐसे में इस बार निर्जला एकादशी 31 मई 2023 को मनाई जाएगी अधिक जानकारी के लिए पंचांग या हमारे पंडित जी से संपर्क अवश्य करें। 

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निर्जला एकादशी व्रत कथा और महत्त्व –

श्री भीम सेन ने एक बात पितामह से कहा हे पितामह युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव श्रादि एकादशी के दिन व्रत करते हैं और मुझसे एकादशी के दिन अन्न खाने को मना करते हैं। मैं उनसे कहता हूँ कि भाई मैं भक्ति पूर्वक भगवान की पूजा कर सकता हूँ और दान दे सकता हूँ, परन्तु मैं एकादशी व्रत के दिन भूखा नहीं रह सकता। इस पर व्यास जी बोले- हे भीमसेन ! यदि तुम नरक बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो, तो प्रत्येक माह की दोनों एकादशियों को अन्न न खाया करो ।

इस पर भीमसेन ने बोला- हे पितामह आप से प्रथम कह चुका हूँ कि मैं एक दिन एक समय भी भोजन किये बिना नहीं रह सकता फिर मेरे लिए पूरे दिन का उपवास करना तो कितना कठिन है। मेरे पेट में अग्नि का वास है जो अधिक अन्न पर शान्त होती है यदि मैं प्रयत्न करूं तो एक व्रत अवश्य कर सकता हूँ । अतः आप मुझे कोई एक ऐसा व्रत बतलाइये जिससे मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो ।

श्रीव्यासजी बोले कि हे वायु पुत्र । बड़े-२ ऋषि और महर्षियों ने बहुत से शास्त्र आदि बनाये हैं। यदि कलियुग में उन पर मनुष्य आचरण करे तो अवश्य ही मुक्ति को प्राप्त होता है । उनमें धन बहुत कम खर्च होता है। उनमें से जो पुराणों का सार है उसे कहता हूँ कि मनुष्य को दोनों पक्षों की एकादशियों का व्रत अवश्य करना चाहिये। इससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

निर्जला एकादशी व्रत कथा महत्त्व
श्रीव्यासजी बोले- हे भीमसेन ! कृष्ण और मिथुन संक्रांति के मध्य में ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी होती है। उसका निर्जला व्रत करना चाहिये। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन में जल वर्जित नहीं है लेकिन आचमन में 6 माशे जल से अधिक जल नहीं लेना चाहिये । इस श्राचमन से शरीर की शुद्धि हो जाती है। श्राचमन में 6 माशे से अधिक जल मद्यपान के समान हैं। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिये क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।

यदि सूर्योदय से सूर्यास्त तक मनुष्य जल पान न करे तो उससे बारह एकादशी के फल की प्राप्ति होती है। द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिये । इसके पश्चात भूखे ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिये । तत्पश्चात स्वयं भोजन करना चाहिये। इसका फल एक वर्ष सम्पूर्ण एकादशियों के फल के बराबर हैं । हे भीमसेन ! स्वयं भगवान ने मुझसे कहा था कि इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दोनों के बराबर है।

एक दिन निर्जला रहने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं । उनको मृत्यु के समान भयानक यम- दूत नहीं दिखते हैं। उस समय भगवान विष्णु के दूत स्वर्ग से आते हैं और उसको पुष्पक विमान पर बिठा स्वर्ग को ले जाते हैं। अतः संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी व्रत है।

अतः यत्न पूर्वक इस एकादशी व्रत करना चाहिये। उस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय, मन्त्र का उच्चारण करना चाहिये। उस दिन गो दान करना चाहिये व्यासदेव जी के ऐसे वचन सुनकर उसने निर्जला व्रत किया इस एकादशी को भीमसेन या पाण्डव एकादशी भी कहते हैं।

निर्जला व्रत करने से पहले भगवान की पूजा करनी चाहिये और उनसे विनय करनी चाहिये कि हे भगवान! आज मैं निर्जला व्रत करता हूँ इसके दूसरे दिन भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करूँगा। उससे मेरे सब पाप नष्ट हो जाय। इस दिन एक बड़े वस्त्र से ढक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिये । जो मनुष्य इस व्रत का पहर में स्नान तथ आदि करते हैं, उनको करोड़ पल स्वर्ण दान का फल मिलता है। जो मनुष्य इस दिन होम आदि करते हैं, उसका फल वर्णन भी नहीं हो सकता।

इस निर्जला एकादशी व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, उन्हें चान्डाल समझना चाहिये । वे अन्त नरक में जाते हैं। ब्रह्म हत्यारे, मद्य पान करने वाले, चोरी करने वाले, गुरु से द्वेष करने वाले, असत्य बोलने वाले इस व्रत को करने से स्वर्ग को जाते हैं।

हे कुन्ती पुत्र ! जो पुरुष या स्त्री निर्जला एकादशी व्रत कथा को श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके निम्नलिखित कर्तव्य हैं – उन्हें सर्वप्रथम विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिये । तत्पश्चात गौ दान करना चाहिये। उस दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा, मिष्ठान आदि देना चाहिये । निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, उपाइन आदि का दान करना चाहिए। जो मनुष्य इस कथा को प्रेम पूर्वक सुनते है व् पढ़ते है, उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है।


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