पापमोचनी एकादशी व्रत कथा। Papmochani Ekadashi 2023 .

जैसा की आपको ज्ञात है पापमोचनी एकादशी कब है, हमारे जितने भी पाठक गण जो एकादशी का व्रत विधि विधान के साथ करते है उनको हम बता दें इस वर्ष तारीख 18 दिन शनिवार 2023 पापमोचनी एकादशी व्रत कथा आयोजन होगा। एकादशी व्रत का महत्त्व और विधि विधान के बारे में आप पढ़ सकते है पापमोचनी एकादशी व्रत तिथि का आरंभ 17 मार्च को रात के समय 12 बजकर 7 मिनट से होगा और अगले दिन यानी 18 मार्च को एकादशी तिथि 11 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी। पापमोचनी एकादशी का व्रत उदया तिथि के अनुसार, 18 मार्च को रखा जाएगा। व्रत का पारण 19 मार्च को सुबह 6 बजकर 28 मिनट पर होगा।

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जानिए पापमोचनी एकादशी का महत्व –

एक बार बहुत विचार करने के बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने पूछा – हे माधव, फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्त्व आपने सुनाया है, अब आप चैत्रमास के कृष्णपक्ष की एकादशी का महत्त्व बतलाइये। इस एकादशी का नाम क्या है। इसमें कौन से देवता की पूजा की जाती है। तथा विधि क्या है? सो विस्तार पूर्वक कहिये हमारी ज्ञान का प्रकाश दें।

पढ़िए पापमोचनी एकादशी व्रत कथा – Papmochani Ekadashi Vrat Katha.

श्री कृष्ण भगवान बोले-कि हे राजन! एक समय मान्धाता ने लोमष ऋषि से पूछा था कि हे मुनि! चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है कृपा कर के बतलायें। लोमश ऋषि बोले कि हे राजन! चैत्रमास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पाप मोचनी है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्यों के अनेक पाप नष्ट हो जाते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है।

प्राचीन काल में एक चैतरथ नामक वन था। उसमें अप्सरायें वास करती थीं। वहां हर समय बसन्त रहता था अर्थात उस जगह सदैव प्रत्येक तरह के पुष्प खिले-रहते। उस जगह गन्धर्व कन्यायें बिहार किया करती थीं उस बन में इन्द्र अन्य देवताओं के साथ कीड़ा करता था।

उस बन में एक मेधावी नामक मुनि तपस्या करते थे । वे शिव भक्त थे। एक दिन मंजुघोषा नामक एक अप्सरा उनको मोहित करने के लिये सितार बजा कर मधुर-मधुर गाने लगी ? उस समय शिव के शत्रु अनंग (कामदेव) भी शिव भक्त मेधावी मुनि को जीतने के लिये तैयार हुये कामदेव ने उस सुन्दर अप्सरा के भ्रू का धनुष बनाया। कटाक्ष को उसकी प्रत्यंचा (डोरी बनाई) उसके नेत्रों को उस मंजुघोषा अप्सरा का सेनापति बनाया। इस तरह कामदेव अपने शत्रु भक्त को जीतने को तैयार हुआ।

उस समय मेधावी मुनि भी युवा तथा हृष्ट-पुष्ट थे। उन्होंने यज्ञोपवीत तथा दंड धारण कर रखा था। वे दूसरे कामदेव के समान शोभा पाते थे । उस मुनि को देखकर कामदेव के वश में हुई मन्जुघोषा ने धीरे-२ मधुर वाणी से वीणा पर गाना शुरू कर दिया मेधावी मुनि मन्जुघोषा के मधुर गाने पर तथा उसके सौन्दर्य पर मोहित हो गये । वह अप्सरा उन मुनि को कामदेव से पीड़ित जान कर उनके ‘श्रालिंगन’ करने लगी। वह मुनि उसके सौन्दर्य पर मोहित होकर शिव रहस्य को भूल गये और काम के वशीभूत होकर उसके साथ रमण करने लगे।

उस मुनि को काम के वशी- भूत होने के कारण उस समय दिन रात्रि का कुछ भी ध्यान न रहा और बहुत समय तक रमण करते रहे। एक दिन मन्जुघोषा उस मुनि से बोली कि हे मुनि ! अब मुझे बहुत समय हो गया है स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिये।

उस अप्सरा के ऐसे वचनों को सुनकर मुनि बोले-हे सुन्दरी ! तू तो आज इसी संध्या को आई है अभी प्रातःकाल तक ठहरो मुनि के ऐसे वचनों को सुनकर अप्सरा उनके साथ रमण करने लगी और बहुत समय बिता दिया। फिर उसने मुनि से कहा हे देव ! अब आप मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिये। मुनि बोले- अभी तो कुछ भी समय नहीं हुआ है अभी कुछ देर ठहर ! इस पर वह अप्सरा बोली- मुनि ! आपकी रात्रि तो बहुत लम्बी है। अब आप सोचिये कि मुझे आपके पास आये कितना समय हो गया । उस अप्सरा के वचनों को सुन कर मुनि को ज्ञान प्राप्त हुआ और समय का विचार करने लगे ।

जब रमण करने से उसका प्रमाण 57 साल 7 माह 3 दिन ज्ञात हुआ तो उस अप्सरा को काल का रूप समझने लगे। वह महान क्रोधित हुये और उस तरका नाश करने वाली अप्सरा की तरफ देखने लगे उनके अधर कांपने लगे और इन्द्रियां व्याकुल होने लगीं। तब मुनि उस अप्सरा से बोले रे दुष्टे ! मेरे तप को नष्ट करने वाली तू अब मेरे श्राप से पिशाचिनी हो जा। तू महान पापिन और दुराचारिणी है तुझे धिक्कार है।

उन मुनि के क्रोध युक्त श्राप से वह पिशाचिनी हो गई तब वह बोली- हे मुनि ! अब मुझ पर क्रोध को त्याग कर प्रसन्न हो जाओ और इस श्राप का निवारण कीजिये विद्वानों ने कहा है साधुओं की संगत अच्छा फल देने वाली है, इसलिये आपके साथ में मेरे तो बहुत वर्ष व्यतीत हुये हैं। अतः अब आप मुझ पर प्रसन्न हो जाइये।

तब मुनि को कुछ शांति मिली और उस पिशाचिनी से बोले री दुष्टे, तूने मेरा बड़ा बुरा किया है परन्तु फिर भी मैं श्राप से छूटने का उपाय बतलाता हूँ । चैत्रमाह के कृष्णपक्ष की जो एकादशी है उसका नाम पापमोचनी है उस एकादशी का व्रत करने से तू पिशाचनी की देह से छूट जायेगी इस प्रकार मुनि ने उसको समस्त विधि बतला दी और अपने पापों के प्रायश्चित के लिये अपने पिता च्यवन ऋषि के पास गये। व्यवन ऋषि अपने पुत्र मेधावी को देखकर बोले- रे पुत्र ! यह तूने क्या किया ? तेरे समस्त तप नष्ट हो गये हैं। मेधावी बोले- हे पिताजी मैंने बहुत बड़ा पाप किया है आप उससे छटने का उपाय बतलाइये।

च्यवन ऋषि बोले- हे तात! तुम चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पाप मोचनी नाम की एकादशी का विधि तथा भक्ति पूर्वक व्रत करो, इससे तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे पिता के बचनों को सुनकर मेधावी ऋषि ने पाप मोचनी एकादशी का विधि पूर्वक उपवास किया। उसके प्रभाव से उनके समस्त पाप नष्ट हो गये । मन्जुघोषा अप्सरा भी पाप मोचनी एकादशी का व्रत करने से दिशाचिनी की देह से कट गई और सुन्दर रूप धारण करके स्वर्ग लोक को चली गई ।

लोमश मुनि बोले-हे राजन! इस पाप- मोचनी एकादशी के प्रभाव से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवण व पढ़ने से, एक हजार गौदान करने का फल मिलता है। इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या करने वाले, स्वर्ण चुराने वाले मद्यपान करने वाले, स्वर्ण चुराने वाले, अगम्या गमन करने वाले, आदि के पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में स्वर्ग लोक को जाते हैं।

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