श्राद्ध का सबसे उपयुक्त समय है “कुतुप बेला” है। दिन का आठवाँ मुहूर्त “कुतुप काल” कहलाता है। दिन के लगभग अपराह्न 11:36 से लेकर दोपहर 12:56 तक का समय श्राद्ध कर्म के लिए विशेष रूप से शुभ माना गया है और इसे ही कुतुप काल कहते हैं। ( Pitru Paksha Rules ) इसी समयावधि में अपने पितरों के निमित्त धूप जलाएं, तर्पण करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं। गाय, कौवां, स्वान को भी कुछ खाने को जरूर दें, इससे सम्बंधित एक गया तीर्थ की कथा प्रचलित है इसका भी श्रवण करे।।
चलिए जानते है पितृ पक्ष में श्राद्ध करने के कुछ नियम जो आपको जरुर ध्यान रखना चाहिए पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पहले और पितरों को जलांजलि मंत्र के साथ ही अर्पण किया जाता है मन में उन मन्त्रों का स्मरण अवश्य करें
श्राद्ध करने के कुछ नियम | पितृ पक्ष | Pitru Paksha Rules
सबसे पहले सुबह जल्दी स्नान करने के उपरांत भगवान सूर्य नारायण को जल अर्पित करें और सूर्यनारायण भगवान से अपने पितरों की मुक्ति की प्रार्थना करें।
श्राद्ध की संपूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके की जाए तो बहुत अच्छा माना जाता है, क्योंकि पितर-लोक को दक्षिण दिशा में बताया गया है।
श्राद्ध क्रिया में सफेद या पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं व समस्त मनोरथों को प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं।
पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध या तर्पण करते समय काले तिल का प्रयोग भी करना चाहिए, क्योंकि शास्त्रों में इसका बहुत महत्व माना गया है।
श्राद्ध के दिनो पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें। श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहें। तामसिक भोजन लहसुन प्याज जैसी वस्तुओं से परहेज करें।
यदि संभव हो सके तो पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए पीतल, चांदी के बर्तनों व पत्तों की पत्तल में भी भोजन कराना अच्छा माना गया है।
आप गाय को गुड, हरा चारा, गेहूं का दलिया आदि खिलाकर भी पितरों का श्राद्ध संपन्न कर सकते हैं अर्थात श्राद्ध के दिन गाय को यह सब खिलाने से भी श्राद्ध का कार्य संपन्न हो जाता है।।
पितरों के मुक्ति के लिए श्राद्ध के दिनों में गीता के पाठ करें। संपूर्ण गीता पाठ संभव न हो सके तो कम से कम गीता का सातवां अध्याय जरूर करें।
श्राद्ध पक्ष में पितरों के प्रति श्रद्धा भाव से यदि आप श्राद्ध संपन्न करते हैं, तो निश्चित रूप से आपकी कुंडली में मौजूद पितृ दोष का प्रभाव कम हो जाता है।
यदि आपको किसी तरह की तर्पण व श्राद्ध विधि इत्यादि नहीं आती है। तो भी आप इस मंत्र से तर्पण व श्राद्ध कार्य कर सकते हैं। सुबह स्नान के बाद 108 बार इस मंत्र का जाप श्रद्धा पूर्वक करते हुए अपने पितरों को नमस्कार कर सकते हैं। गीता का सातवां अध्याय पढ़ सकते हैं।
||ॐ पितृ देवतायै नम:||
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