रानी सती दादी – भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा में अनेक वीरांगनाओं और संत महिलाओं का उल्लेख मिलता है, लेकिन (Rani Sati Dadi) रानी सती दादी जी का स्थान उनमें विशेष है। वे न केवल अपने पति के प्रति समर्पित रहीं, बल्कि उनके बलिदान और भक्ति ने उन्हें एक दिव्य शक्ति का स्वरूप बना दिया।
रानी सती दादी जी कौन थीं?
रानी सती दादी जी का जन्म एक सामान्य स्त्री के रूप में हुआ था, लेकिन विवाह के उपरांत जब उनके पति को युद्ध में वीरगति प्राप्त हुई, तो उन्होंने पति के साथ सती होने का निर्णय लिया। यह केवल सामाजिक परंपरा नहीं थी, बल्कि उनके भीतर की आत्मशक्ति और श्रद्धा का प्रतीक था। उन्होंने यह कृत्य बिना किसी दबाव के, पूर्ण श्रद्धा और समर्पण से किया।
उनका यह साहसिक निर्णय उन्हें मात्र एक साधारण स्त्री से दिव्य स्वरूप में परिवर्तित कर गया। आज उन्हें शक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है, विशेष रूप से मारवाड़ी समुदाय और राजस्थान में।

झुंझुनूं का रानी सती मंदिर (Rani Sati Dadi)
राजस्थान के झुंझुनूं जिले में स्थित रानी सती दादी जी का भव्य मंदिर श्रद्धालुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह मंदिर संगमरमर से बना हुआ है और इसकी वास्तुकला अत्यंत भव्य और आकर्षक है।
हर वर्ष भाद्रपद अमावस्या के दिन यहाँ विशाल मेले और भजन संध्या का आयोजन होता है। लाखों श्रद्धालु यहाँ रानी सती दादी जी के दर्शन के लिए आते हैं और मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं के भी मंदिर हैं, लेकिन रानी सती का मुख्य मंदिर सबसे प्रमुख है।
रानी सती की आरती और भक्ति
रानी सती दादी जी की आरती भक्तों द्वारा नित्य की जाती है। यह आरती केवल एक पूजा विधि नहीं, बल्कि एक भक्ति की अनुभूति है, जिसमें श्रद्धालु अपनी समस्त पीड़ा, कष्ट और इच्छाओं को दादी जी के चरणों में समर्पित करते हैं।
आरती में रानी सती को सिंह पर सवार, त्रिशूल धारण किए हुए, गोल मुखमंडल युक्त, और तेजस्वी स्वरूप में वर्णित किया जाता है। यह आरती घर, मंदिर और भजन मंडलियों में बड़े श्रद्धा से गाई जाती है।
अमावस्या और विशेष पूजन
अमावस्या का दिन रानी सती दादी जी की विशेष पूजा के लिए अति शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत रखने की परंपरा है और भक्तजन मंदिर जाकर विशेष पूजा, हवन और आरती करते हैं। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से सभी प्रकार के संकट, ऋण, और कष्टों का नाश होता है।
रानी सती की प्रेरणा
रानी सती दादी जी केवल भक्ति और शक्ति का ही प्रतीक नहीं, बल्कि वे नारी सशक्तिकरण की भी जीवंत मिसाल हैं। उन्होंने अपने जीवन में जो निर्णय लिया, वह आज भी लाखों महिलाओं को धैर्य, समर्पण, और आत्मबल की प्रेरणा देता है।
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