संकट चतुर्थी व्रत कथा | Sankat Chaturthi Vrat Katha.

Sankat Chaturthi Vrat Katha – पढ़िए कथा संकट चतुर्थी व्रत की जिसमे भगवान शिव गणेश जी व्रत का महात्म्य बता रहे है |

संकट चतुर्थी व्रत कथा | Sankat Chaturthi Vrat Katha.

शंकर जी गणेश जी को बता रहे थे-पहले सतयुग में नल नाम का अति पवित्र चित्त वाला राजा था । उसकी दमयन्ती नाम की प्रसिद्ध और अति सुन्दर रानी थी। भाग्य के वश से एक समय उसको स्त्री वियोग और विषाद करने वाला श्राप मिल गया । अतः उस समय रानी ने राजा को और अपने आपको विपदाग्रस्त देखकर संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को किया था। यह वार्ता सुनकर श्री पार्वती जी ने पूछा कि हे पुत्र! दमयन्ती ने किस विधि से इस व्रत को किया था और कितने समय के पश्चात् उसको इस व्रत का फल प्राप्त हुआ था |

श्रीकृष्ण जी कहने लगे कि हे राजा युधिष्ठिर ! पार्वती जी के इस प्रकार पूछने पर गणनायकजी ने जो कुछ उनको विस्तारपूर्वक बताया, सुनो-श्री गणेशजी ने कहा कि हे माता! जब राजा नल पर विपत्ति आई, तब गजशाला से हाथी और अश्वशाला से घोड़े चोरी हो गए तथा चोरों ने राजा का सारा खजाना लूट लिया। जब राजा का महल आग में भस्म हो गया तो राजकार्य को करने वाले मंत्री भी राजा को छोड़कर अन्यत्र चले गए। इस प्रकार राजा की विपत्ति बढ़ती ही गई ।

राजा जुए में राजपाट तथा सब कुछ हार गया। इसके बाद राजा दमयन्ती को साथ लेकर वन में चला गया। परन्तु दुर्भाय ने वहाँ भी उसका पीछा न छोड़ा और दुर्देव के कारण दमयन्ती से भी उसका विछोहहो गया। तब राजा नल ने किसी नगर में जाकर नौकरी कर ली तथा रानी और राजपुत्र भी अन्यान्य ग्रामों में चले गए। वे अनेक प्रकार की व्याधियों से पीड़ित होकर, अपने-अपने कर्म के फल भोगते हुए पृथक-पृथक रहकर भिक्षा माँगकर दिन बिताने लगे।

एक समय दमयन्ती ने महामुनि शरभंग के दर्शन किए। रानी मुनि के चरणों पर मस्तक नवाकर कहने लगी कि हे भगवन्! मेरे पति, पुत्र और राज्य तथा हाथी, घोड़े आदि सारे ऐश्वर्य पहले की तरह किस प्रकार प्राप्त हो सकते हैं। इस प्रकार दमयन्ती के वचन सुनकर शरभंग ऋषि बोले कि हे दमयन्ती! समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला, एक व्रत तुमसे कहता हूँ, इसे ध्यानपूर्वक सुनो-भाद्रपद मास में कृष्णपक्ष की चतुर्थी कहलाती है। उस दिन स्त्रियों को श्रद्धापूर्वक श्री एकदन्त गजानन की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत को करने से तुम्हारी सब मनोकामनाएँ सफल हो जायेंगी और सात महीने में तुम राजा नल को अवश्य पाओगी।

तब से दमयन्ती भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की संकट चतुर्थी से इस व्रत को आरम्भ करके श्री गणेशजी के पूजन में तत्पर रही । तब सात महीने में उसके पति उसको प्राप्त हो गए।

श्रीकृष्ण जी कहने लगे कि-हे युधिष्ठिर, आप भी इस उत्तम व्रत को करें। इससे आपको भी अपना नष्ट हुआ राज्य अवश्य प्राप्त हो जाएगा और समस्त शत्रुओं का नाश हो जाएगा । हे राजन् ! इस प्रकार समस्त दुःखों का नाश करने वाला व्रतों में यह उत्तम व्रत मैंने आपसे कहा ।

शिवजी की आरती – Shiv ji Aarti

ॐ जय शिव ओंकारा, हर जय शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय०

एकानन, चतुराननं, पंचानन राजै ।

हंसानन, गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय०

दो भुज चारु चतुर्भुज दसभुज ते सोहे ।

तीनहुँ रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे ॥ॐ जय०

अक्षमाला, वनमाला, रुण्डमाला धारी ।

त्रिपुरारी कंसारी करमाली धारी ॥ ॐ जय०

श्वेताम्बर, बाघम्बर, पीताम्बर अंगे ।

ब्रह्मादिक सनकादिक प्रेतादिक संगे ॥ ॐ जय०

करके मध्ये सुकमण्डलु चक्रशूल धारी ।

सुखकारी, दुखहारी, जग पालन कारी ॥ ॐ जय०

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥ ॐ जय०

त्रिगुण स्वामी जी की आरति जो कोई गावे ।

कहत शिवानंद स्वामी सुख सम्पति पावे ॥ ॐ जय०


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