2023 Sankata Chauth Vrat Katha –
साल की पहली गणेश चतुर्थी जिसे संकष्टी चतुर्थी और संकटा चतुर्थी 2023 भी कहा जा रहा है लेकिन निश्चिन्त रहे हम यहाँ पर आपको हिन्दू बनारस के पंचांग के अनुसार संकटा चौथ 2023 गणेश चतुर्थी व्रत कथा का श्रवण करा रहे है जो की हमने विद्वानों के निष्कर्ष के बाद यहाँ पर लिखी है इसमें किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है|
यहाँ पर हम किसी भी प्रकार की असत्य वस्तु या लेख का उल्लेख नहीं करते जिस पर हमको स्वयं विश्वास न हो, तो चलिए व्रत कथा में आगे बढ़ते है :-
संकटा चौथ 2023 गणेश चतुर्थी व्रत कथा –
Sankata Chauth Vrat Katha –
एक बार की बात है माता पार्वतीजी ने गणेश जी से प्रश्न किया और कहा कि हे वत्स माघ की चतुर्थी को किसका व्रत और पूजन करना चाहिए हमें यह बताइये । इस पर श्री गणेशजी ने कहा कि हे जननी ! माघ मास की चतुर्थी को भालचन्द्र गणेश की षोडशोपचार के साथ पूजा करना चाहिए पूजा के बाद तिल के लड्डू बनाकर श्री गणेशजी को भोग लगावें । प्रसाद वितरण कर इन्हीं लड्डुओं को प्रसाद के रूप में खावें ।
इस व्रत की एक सुन्दर कथा सुनाता हूँ श्रवण करिए। सतयुग में महान् धर्मात्मा सत्यवादी राजा श्री हरिश्चन्द्र राज्य करते थे । उनके राज्य में ऋषिशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहते थे। उनके एक छोटी आयु का बालक था। कुछ समय बाद ऋषिशर्मा का देहान्त हो जाता है । विधवा ब्राह्मणी अपने सुख के दिनों को जैसे तैसे बिताकर अपने बालक का पालन करने लगी। वह ब्राह्मणी गणेश चतुर्थी का सदा व्रत करती थी ।
एक दिन ब्राह्मणी का पुत्र गणेश जी की प्रतिमा को लेकर खेलने जाता है उसे खेलता हुआ देखकर एक पापी कुम्हार ने किसी के कहने पर उस ब्राह्मणी के पुत्र को आवां में बंद कर आग लगा दी । बालक जब घर नहीं पहुँचा तो ब्राह्मणी विलाप करती हुई गणेशजी से प्रार्थना करने लगी-हे संकटरक्षक भक्तों की पुकार सुनने वाले गणेश मुझे मेरा पुत्र प्राप्त कराओ । मैं आपकी शरण में हूं यदि मेरा पुत्र संकट में है तो उसकी रक्षा करें। यदि मुझे पुत्र नहीं मिला तो मैं प्राण त्याग दूंगी।
ऐसी प्रार्थना सुन भगवान मुस्कुराये और सवेरा होने पर जब कुम्हार ने अपना आवां देखा तो उसमें कटि पर्यन्त जल में बालक को खेलते हुए देखा तो कुम्हार को बड़ा आश्चर्य हुआ।
पापी कुम्हार से राजा हरिश्चन्द्र के पास जाकर कहा कि राजन् ! मैंने घोर पाप कर्म किया है मेरा वध किया जावे। मैंने आवां पकाने के लिए आग लगाई थी किन्तु बर्तन पके नहीं तब किसी दुष्ट ने कहा कि आवें किसी बालक की बलि दोगे तब तुम्हारा आवां पकेगा। मैंने एक बालक को आवें में दबाकर आग लगा दी किन्तु जब आवें को खोलकर देखा तो कमर तक जल में यह बालक खड़ा हुआ खेल रहा था।
यह समाचार सुनकर वहाँ ब्राह्मणी आ गई और अपने बालक को उठाकर छाती से लगा लिया । राजा ने ब्राह्मणी से पूछा हे साध्वी ! तेरा बालक अग्नि में जला क्यों नहीं ? तू ऐसा कौन-सा जप-पूजन या व्रत करती है जिसके प्रभाव से बालक जीवित है ।
ब्राह्मणी ने कहा- राजन् ! मैं कोई विद्या या मन्त्र आदि नहीं जानती हूँ, न कोई तप करती हूँ। मैं तो केवल दुखहर्ता संकटा चौथ गणेश चतुर्थी व्रत पूजन करती हूँ । इसी व्रत के प्रभाव से तथा श्री गणेशजी की कृपा से मेरा पुत्र मुझे प्राप्त हो गया । राजा ने सारी प्रजा को संकटा चौथ गणेश चतुर्थी व्रत के करने की आज्ञा दी, सारी प्रजा बड़ी श्रद्धा के साथ संकटा चौथ गणेश चतुर्थी व्रत को करने लगी |
भगवान श्री कृष्णजी ने भी धर्मराज से कहा कि तुम भी इस व्रत को किया करो जिससे तुम्हारी सारी कामनाएं पूरी होंगी और अपने राज्य को प्राप्त कर सुख का भोग करो । श्री युधिष्ठिर ने वैसा ही किया जिससे उनका राज्य प्राप्त हो गया और सुख शांति का निवास हुआ।
जो कोई भी भक्त संकटा चौथ गणेश चतुर्थी व्रत कथा को श्रवण करता है और पूजन, गणेश जी की आरती करता है उसके संकट गणेश जी हार लेते है इसलिए इस व्रत का नाम संकटा चौथ गणेश चतुर्थी व्रत कथा है।
बोलिए गणेश भगवान की जय
संकट नाशक गणेश जी महाराज जी जय
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बहुत बढ़िया, शुद्ध और स्पष्ट रूप में यह कथा लिखी है, धन्यवाद.. जय गणेश