सफला एकादशी व्रत कथा | Saphala Ekadashi Vrat Katha.

कहते है यदि आपके मन में किसी यज्ञ करके सफलता प्राप्त करने की इच्छा है या फिर किसी कार्य की सफलता के लिए प्रतिष्ठान का विचार कर रहे है तो आपके लिए सफला एकादशी व्रत (Saphala Ekadashi Vrat Katha in hindi) बहुत उत्तम फल प्रदान करने वाला व्रत हो सकता है | क्यूंकि शास्त्रों की माने तो सफला एकादशी व्रत कथा और पूजन करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ के बराबर का फल मिलता है।

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एकादशी के सन्दर्भ में श्री नंद कुमार जी महाराज ने बताया कि इस दिन मनुष्य को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान ध्यान चाहिए। यदि तीर्थ स्नान संभव नहीं है तो घर पर ही स्नान जल में गंगाजल की कुछ बूंदे डालकर नहाने से तीर्थ जल स्नान का फल मिलता है। इस दिन एकादशी तिथि पर तिल स्नान का महत्व भी बताया गया है। क्यूंकि सफला एकादशी व्रत पौष महीने और खरमास के संयोग में आती है। इसलिए पानी में थोड़े से तिल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इस तरह स्नान करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं।

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सफला एकादशी व्रत पर सूर्य देव की पूजा का खास महत्व होता है। सूर्य देव यानि भगवान विष्णु का ही रूप है, इसलिए इन्हें सूर्य नारायण भी कहा गया है यह नाम भी भगवान विष्णु जी के एक नाम है। पौष महीने के स्वामी सूर्य ही होने से इस दिन उगते हुए सूरज को जल चढ़ाने और नमस्कार करने का विधान है इससे आपकी मन और तन में एक उर्जा का प्रसार होता है। इसके बाद दिन में श्रद्धा अनुसार जरूरतमंद लोगों को कपड़े या खाने की चीजों का दान दें और हो सके असहाय लोगो की मदद करें।

अथ सफला एकादशी व्रत कथा | Saphala ekadashi vrat katha in hindi

एक समय की बात है अर्जुन ने कृष्ण जी से कहा -हे भगवान! पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का क्या नाम है उस दिन किस देवता की पूजन अर्चना की जाती है और इसकी विधि क्या है ? यह सब आप मुझे विस्तारं पूर्वक समझाइये ।

श्री कृष्ण भगवान बोले- हे अर्जुन ! आज तुम्हारे प्रेम के कारण मैं तुम्हारे प्रश्नों का विस्तार सहित उत्तर देता हूँ।

अब तुम इस एकादशी व्रत का महात्म्य सुनो पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम सफला एकादशी है। इस एकादशी के देवता श्री हरी नारायण हैं। इस एकादशी को पहिले लिखी विधि के अनुसार व्रत करना चाहिए और नारायण जी की सफला नाम की एकादशी में मुझे ऋतु के अनुकूलफल अर्पण करें मनुष्य को पांच सहस्त्र साल तपस्या करने से जिस पुन्य का फल मिलता है वह पुन्य भक्ति पूर्वक रात्रि जागरण सहित सफला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को मिलता है। हे अर्जुन ! अब तुम सफला एकादशी की कथा ध्यान पूर्वक सुनो।

एक समय चम्पावती नगरी में एक महष्मिान नाम का राजा राज्य करता था। उस राजा के चार पुत्र थे उन पुत्रों में सबसे बड़ा लुम्पक राजा का पुत्र महापापी था वह हमेशा पर स्त्री गमन तथा वैश्याओं के यहां अपने पिता का धन व्यय किया करता था। वह सदैव देवता, ब्राह्मण, वैष्णव आदि की निन्दा किया करता जब उसके पिता को अपने बड़े पुत्र के बारे में ऐसे समाचार ज्ञात हुए तब उसने उस को अपने राज्य से निकाल दिया।

जब लुम्पक सबके द्वारा त्याग दिया गया, तब वह सोचने लगा कि अब मैं क्या करूं? कहाँ जाऊं ? अन्त में उसने रात्रि को पिता की नगरी में चोरी करने की ठानी। वह दिन में कहीं वन में रहने लगा और रात को अपने पिता की नगरी में जाकर चोरी तथा अन्य बुरे कर्म करने लगा। रात्रि में वह आकर नगर के निवासियों को मारता तथा कष्ट देता । कुछ दिनों में संपूर्ण नगरी को समाप्त कर दिया । प्रातः उसे पहरेदार पकड़ने पर भी राजा के भय से छोड़ देते थे ।

जिस वन में वह रहता था वह भगवान को बहुत प्रिय था । उस बन में एक बहुत पुराना पीपल था तथा उस वन को सब लोग देवताओं का क्रीडास्थल मानते थे। इस जंगल में पीपल के वक्ष के नीचे, महापापी लुम्पक रहता था। कुछ दिनों के बाद पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह वस्त्रहीन होने के कारण शीत के मारे भूर्छित हो गया । शीत के कारण वह रात्रि को न सो सका और उसके हाथ पैर जकड़ गये उस दिन वह रात्रि बड़ी कठिनता से बीती परन्तु सूर्य नारायण के उदय होने पर भी उसकी मूर्छा न गई ।

सफला एकादशी व्रत के मध्यान्ह तक वह दुराचारी मूर्छित ही पड़ा रहा। जब सूर्य की गर्मी से उसे कुछ गर्मी मिली तब उसे होश आया और अपने स्थान से उठ कर गिरते बढ़ते वन में भोजन की खोज में चल पड़ा उस दिन वह जीवों को मारने में असमर्थ था इस लिये जमीन पर गिरे हुये फलों को लेकर पीपल के वृक्ष के नीचे आया । तब तक सूर्य भगवान अस्ताचल को प्रस्थान कर गये।

उस ने उन फलों को पीपल की जड़ के पास रख दिया और कहने लगा कि हे भगवान ! इन फलों से आप ही तप्त होवें ऐसा कह कर वह रोने लगा और रात्रि को उसे नींद न आई। उस महापापी के इस व्रत तथा रात्रि जागरगा से भगवान अत्यन्त प्रसन्न हुये और उसके समस्त पाप नष्ट हो गये प्रातःकाल होते ही एक दिव्य रथ अनेकों सुन्दर वस्तुओं से सजा हुआ आया और उसके सामने खड़ा हो गया।

इसी समय आकाशवाणी हुई कि हे राजपुत्र ! भगवान नारायण के प्रभाव से तेरे समस्त पाप नष्ट हो गये हैं अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर ले, लुम्पक ने जब ऐसी आकाशवाणी सुनी तो वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ और कहा हे भगवान! आपकी जय हो। ऐसा कहता हुआ सुन्दर वस्त्रों को धारण करने लगा और अपने पिता के पास गया । उसने सम्पूर्ण कथा कह सुनाई और पिता ने उसको अपना राज्य भार सौंपकर वन का रास्ता लिया ।

अब लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा उसकी स्त्री, पुत्र आदि भी नारायण के परम भक्त बन गये वृद्धावस्था आने पर वह अपने पुत्र को गद्दी देकर भगवान का भजन करने के लिये वन में चला गया और अन्त में परमपद को प्राप्त हुआ ।

इस दिन एकादशी व्रत धारण करने से और सफला एकादशी व्रत कथा पढने और सुनने मात्र से ही मनुष्य को अश्वमेघ यज्ञ के बराबर का फलप्राप्त होता है और अंत में मनुष्य श्री नारायण भगवान के चरणों में स्थान प्राप्त करता है |

— अथ श्री सफला एकादशी व्रत कथा समाप्त —

आरती सफला एकादशी व्रत –

– श्लोक –

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्.,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

– आरती प्रारंभ –

जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट, छन में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे..

जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका।
सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका॥
ॐ जय जगदीश हरे..

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे..

तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे..

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं मुरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे..

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती॥
ॐ जय जगदीश हरे..

दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पडा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे..

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढाओ, संतन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे..

सफला एकादशी से सम्बंधित :-

सफला एकादशी व्रत कथा - Saphala ekadashi vrat katha

उपर के भाग में हमने आपको सफला एकादशी व्रत की विधि, सफला एकादशी व्रत की कहानी, सफला एकादशी व्रत पूजा से सम्बंधित जानकारियाँ बताई है यहाँ हम आपको आपके द्वारा पूछे गए कुछ प्रश्न के उत्तर भी बता रहे है जिनके बारे में प्रायः लोग जानना चाहते है।

सफला एकादशी व्रत के नियम क्या है?

सफला एकादशी व्रत के नियम में दशमी की रात से लेकर द्वादशी के सुबह एकादशी व्रत के पारण करने तक अन्न ग्रहण नहीं किया जाता, स्त्री हो या पुरुष भक्त को अपनी श्रद्धा और शक्ति से निर्जला, सिर्फ पानी लेकर, फल लेकर या एक समय फलाहार लेकर एकादशी व्रत को करना चाहिए। यदि आप व्रत धारण करना चाह रहे है तो एकादशी व्रत में दशमी को सूर्यास्त के पहले भोजन करके कुछ नहीं खाना चाहिए और प्रभु श्री नारायण का ध्यान करना चाहिए।

पवित्र सफला एकादशी व्रत कैसे धारण करें?

व्रत पूजा कोई भी हो स्थान या सामग्री इन सब से ज्यादा आपका मन साफ़ होना चाहिए ज्ञात रखें इस दिन किसी भी का झूट अधर्म या जीव हत्या न हो इन सबका भी विशेष ध्यान रखें। सफला एकादशी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर साफ-सफाई करके स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु का मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का  ध्यान करें और व्रत का संकल्प मन में ही लें। पूजा के लिए भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या फिर तस्वीर को चौकी पर स्वच्छ लाल कपड़े बिछाकर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल से तस्वीर समेत चारों तरफ छीटें दें और पूजा करें।

सफला एकादशी के व्रत में क्या भोजन करना चाहिए?

सफला एकादशी का व्रत बहुत ही नियमों के साथ किया जाने वाला उपवास है। कहते है क‍ि इस दिन चावल का सेवन निषेध है गुरूजी के अनुसार मनुष्य व्रत धारण करे या न धारण करे लेकिन चावल का सेवन न करे, शास्‍त्रों में भी ऐसा कहा गया है कि चावल का सेवन करने से मनुष्य रेंगने वाले जीव की तरह योनि में जन्म लेता है। इस एकादशी के दिन एकदम सादा भोजन ग्रहण करना चाहिए।

एकादशी व्रत में पूजा कैसे किया जाता है?

इस दिन मनुष्य को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान ध्यान चाहिए। यदि तीर्थ स्नान संभव नहीं है तो घर पर ही स्नान जल में गंगाजल की कुछ बूंदे डालकर नहाने से तीर्थ जल स्नान का फल मिलता है। इस दिन एकादशी तिथि पर तिल स्नान का महत्व भी बताया गया है। क्यूंकि सफला एकादशी व्रत पौष महीने और खरमास के संयोग में आती है। इसलिए पानी में थोड़े से तिल मिलाकर स्नान करना चाहिए। इस तरह स्नान करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं।

सफला एकादशी व्रत कथा से क्या फल मिलता है ?

शास्त्रों की माने तो सफला एकादशी व्रत कथा और पूजन करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ के बराबर का फल मिलता है।


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