शास्त्रों में तैंतीस करोड़ देवता क्यों बताए गये हैं इसमें क्या रहस्य है ?

हमारे धर्म में शास्त्रों की महत्वपूर्ण भूमिका है हमारे आचरण और हमारी जीवन शैली का आधार हमारे शास्त्र ही है, जिसने हमें योग्य और सदाचरण का मार्ग और जीवन शैली का पाठ दिया है जिससे हम मनुष्य आज भी पूजते है और उसका अनुसरण करते आ रहे है इसी से उत्पन्नित एक प्रश्न बहुत से मित्रों ने पूंछा “शास्त्रों में तैंतीस करोड़ देवता बताए गये हैं इसमें क्या रहस्य है ?” इसी बात को आइये कुछ संछिप्त में समझें :-

शास्त्रों में तैंतीस करोड़ देवता क्यों बताए गये हैं ?

  • विद्वानों के कथनानुसार आकाश में तैंतीस करोड़ तारे हैं। उन्हें ही देवता कहा गया है।
  • अष्टवसु, एकादश रुद्र, द्वादश आदित्य, प्रजापति और इन्द्र मिलकर इनकी संख्या ३३ है।
  • प्रत्येक देवता की विभिन्न कोटियों की दृष्टि से तैंतीस करोड़ की संख्या लोक व्यवहार में प्रचलित हो गई।

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अष्ट वसु एकादश रुद्र और द्वादश आदित्यों के क्या-क्या नाम हैं ?

  • अष्ट वसु – अनिल, धर, अनल, प्रत्भूत, सोम, प्रभास, आय, ध्रुव।
  • एकादश रुद्र – धृत ध्वज, भव, मनु, मन्यु, वामदेव, महन्त, काल, शिव, उम्रतेरस, ऋतुध्वज और महिनस।
  • द्वादश आदित्य पर्जन्य, धातु, त्वष्टा, इन्द्रा, आर्यमन, अंशुमान, विष्णु, वैवस्वत्, वरुण, मित्र, भग, पूषन।

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