Vishnu Chalisa lyrics – श्री हरी विष्णु जगत के पालनहार आज हम यहाँ पर विष्णु चालीसा पाठ जो की हिंदी भाषा में लिखित है आपके लिए लाये है हमारे कुछ पाठकों की कमेंट में हमने पढ़ा था की हमें विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र पाठ और श्री हरि स्तोत्र के बारे में भी बताएं इसलिए हमने इस भाग में श्री विष्णु चालीसा पाठ हिंदी लिरिक्स में आपके लिए उपलब्ध कराया है उम्मीद है आपको पसंद आएगा हमारा या लेख Shree Vishnu Chalisa.
श्री विष्णु चालीसा | विष्णु चालीसा पाठ | Vishnu Chalisa
|| श्री विष्णु चालीसा प्रारंभ ||
श्री विष्णु सुनिये विनय, सेवक की चिट ले
कीरत कुछ वर्ण करूँ, दिजिये ज्ञान बताय।
नमो विष्णु भगवान खरारी, कशात नशावन अखिल बिहारी
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी।
सुंदर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहिनी मूरत
तन पर पिताम्बर अति सोहत, वैजंती माला मन मोहत।||
शंख चक्र कर गड़ा बिराजे, देखता दैत्य असुर खल भजे
सत्य धर्म मद लोभ न गजे, काम क्रोध पागल लोभ न छजे।
संतभक्त सज्जन मनरंजन, दानुज असुर दुश्मन दल गंजन
सुख उपजे कश्त सब भंजन, दोश मिले करत जन सज्जन
पाप कात भव सिंधु उतरन, कश्त नशा भक्त उबरन
करत कई रूप प्रभु धरन, केवल आप भक्ति के करन।
धरणी देनु बन तुमही पुकारा, तब तुम रूप राम का धरा
भार उतर असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा
आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया
धर मतस्य तन सिंधु मथाया, चौड़ा रतन को निकला।
अमिलक असुरन दवंद मचाया, रूप मोहिनी आप दिखया
देवन को अमृत पान कराया, असुरों को छवी से बहलाया।
कूर्म रूप धर सिंधु मचाया, मंदराचल गिरी तुरंत उत्थान
शंकर का तुम फंड चूड़ा, भस्मासुर को रूप देखा।
वेदान को जब असुर दुबया, कर के प्रबंधन उन्ही दुंधवाया
मोहित बंकर खली नाचया, उसी कर से भस्म कार्य।
असुर जालंधर अति बालदाई, शंकर से उन कीं लड़ाइ
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से चल खल जय।
सुमिरन कीन तुमहिन शिवरानी, बटलाई सब विपत कहानी
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृंदा की सब सूरती भौलानी।
देखते दीन दानुज शैतानी, वृंदा आए तुमे लपतानी
हो स्पर्श धर्म क्षति मणि, हना असुर उर शिव सैलानी।
तुमने ध्रुव प्रह्लाद उबरे, हिरण्यकुश आदिक खल मारे
गणिका और आजमिल तारे, बहुत भक्त भव सिंधु उतरे।
हरहु सकल संतप हमारे, कृपा करु हरि सिरजन हरे
देखो मैं नित आदर्श तुम्हारे, दीन बंधु भक्तन हितकारे।
चाहत आपका सेवक दर्शन, करु दया अपनी मधुसूदन
जानू नहीं योग जप पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन।
शील दया संतोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलाक्षण:
करु आपका किस विधु पूजन, कुमाती विलोक गर्म दुख भीषण।
करु प्रणाम कौन विधि सुमिरन, कौन भांति में करु समर्पण
सुर मुनि करत सदा सिवकाई, कठोर राहत परम गति पाई।
दीन दुखिन पर सदा सहाय, निज जान जान लेव अपने
पाप दोष संताप नशाओ, भाव बंधन से मुक्त करो।
सुत संपति दे सुख उपजो, निज चरणन का दास बनाओ;
निगम सदा ये विनय सुनावे, पाए सुने सो जान सुख पावें।