श्री रूद्राष्टक नमामीशमीशान | Shri Shiv Rudrastak.

Shri Shiv Rudrastak श्री कागभुशुण्डिगुरु कृत रचित श्री रूद्राष्टक नमामीशमीशान |

– श्री रूद्राष्टक –

नमामीशमीशान निर्वाणरूपम् ।

विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥

अजं निर्गुण निर्विकल्पं निरीहम् ।

चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयम् ।

गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ॥

करालं महाकालकालं कृपालुम् ।

गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरम् ।

मनोभूतकोप्रिया श्रीशरीरम् ॥

स्फुरन्मौलिकल्लेलिनीचारूगङ्गा ।

लसद्भालवालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥

चलत्कुण्डलं शुभ्रनेत्रं विशालम् ।

प्रसन्नाननं नीलकण्ठंदयालुम् ॥

मृगाधीशचम्मम्बरं मुण्डमालम् ।

प्रियं शङ्करं सर्वनाथंभजामि ॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशम् ।

अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ॥

त्रयः शूलनिर्मूलनं शूलपाणिम् ।

भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी ।

सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी ।

प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दम् ।

भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ॥

न तावत्सुखं शांति सन्तापनाशम् ।

प्रसीद  प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥

ना जानामि योगं जपं नैव पूजाम् ।

नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ॥

जराजन्म दुःखौ घतातप्यमानम् ।

प्रभो पाहि आपन्नमामीश  शम्भो ॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेणा हरतोषये ।
ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु प्रसीदति ॥


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