श्री सोमवार व्रत कथा आरती (Somvar Vrat Katha Aarti)

(Somvar Vrat Katha Aarti) शास्त्रों में कहा गया है भगवन शिव से बड़ा दयालु कोई देवता नहीं है, क्यूंकि वे इतने सरल है की मात्र एक बेलपत्र से प्रसन्न हो जाते है और यह सोमवार व्रत कथा उनके भक्तों की सुख शांति के लिए ही है, जो कोई भी सोमवार को व्रत करता है तथा इस कथा को पढ़ता या सुनता है, उसकी समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। आइये स्मरण करें :-

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श्री सोमवार व्रत कथा आरती (Somvar Vrat Katha Aarti)

|| व्रत कथा आरम्भ ||

एक बहुत धनवान साहूकार था। उसके यहाँ धन आदि किसी प्रकार की कमी न थी, परन्तु उसको दुःख यह था कि उसके कोई पुत्र नहीं था। साहूकार इसी चिन्ता में रहता था और पुत्र की कामना के लिये प्रत्येक सोमवार को शिवजी का व्रत और पूजन किया करता था। सायंकाल को शिव मन्दिर में दीपक जलाया करता था। 

उसकी इस भक्ति को देखकर एक समय श्री पार्वती जी ने शिवजी से कहा कि महाराज ! यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है, सदैव ही आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है। इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए। शिवजी ने कहा कि पार्वतीजी ! यह संसार कर्मक्षेत्र है, किसान खेत में जैसा बीज बोता है, वैसी ही फसल काटता है।

इसी तरह संसार में जो जैसा कर्म करते हैं, वैसा ही फल भोगते हैं। श्रीपार्वतीजी ने अत्यन्त आग्रह से कहा-आपके इस भक्त को यदि किसी प्रकार का दुःख है तो आपको अवश्य दूर करना चाहिये। आप सदैव अपने भक्तों पर दयालु रहते हैं, उनके दुःखों को दूर करते हैं। आप ऐसा न करेंगे तो मनुष्य क्यों आपकी सेवा, व्रत-पूजन करेंगे?

श्रीपार्वतीजी का ऐसा आग्रह देख शिवजी महाराज कहने लगे हे पार्वती ! इसके कोई पुत्र नहीं है, इसी पुत्र-चिन्ता से यह अत्यन्त दुखी रहता है। इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति का वरदान देता हूँ, परन्तु वह पुत्र बारह वर्ष तक जीवित रहेगा, इसके पश्चात् वह मृत्यु को प्राप्त होगा। इससे अधिक मैं और कुछ इसके लिये नहीं कर सकता। यह सब बातें वह साहूकार सुन रहा था। इससे उसको न तो कुछ प्रसन्नता हुई और न कुछ दुःख हुआ। 

वह साहूकार पूर्ववत वैसे ही शिवजी महाराज का सोमवार को व्रत और पूजन करता रहा। कुछ काल व्यतीत हो जाने पर साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसके गर्भ से अति सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई। साहूकार के घर में बहुत खुशी मनाई गई परन्तु साहूकार ने उसकी केवल बारह वर्ष की आयु जान कोई अनेक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और न किसी को यह भेद ही बताया। 

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जब ग्यारह वर्ष का हो गया तो उस बालक की माता ने उसके विवाह आदि के लिये कहा। परन्तु वह साहूकार कहने लगा कि मैं अभी इसका विवाह नहीं करूंगा और काशीजी में पढ़ने के लिये भेजूंगा। फिर उस साहूकार ने अपने साले अर्थात् बालक के मामा को बुलाकर उसको बहुत-सा धन देकर कहा कि तुम इस बालक को काश्रीजी में पढ़ने के लिये ले जाओ, रास्ते में जिस जगह भी रुको उसी जगह यज्ञ करना और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए जाना। 

वे दोनों मामा-भानजे सब जगह यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक बड़ा शहर पड़ा। उस शहर के राजा की कन्या का विवाह था और दूसरे देश के राजा का लड़का जो बारात लेकर आया था, वह एक आँख से काना था। उसके पिता को बड़ी चिन्ता थी कि कहीं वर को देख कन्या के माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा न कर दें। इस कारण जब उसने सेठ के अति सुंदर लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न द्वाराचार के समय इस लड़के से वर का काम ले लिया जाये ! 

जब राजा ने अपनी इच्छा लड़के और मामा से कही तो वहराजी हो गये। वो साहूकार के लड़के को स्नान कराके वर के कपड़े पहना घोड़ी पर चढ़ाकर द्वाराचार पर ले गये और बड़ी सुन्दरता से सब कार्य करा लिये। अब वर के पिता ने लड़के के मामा से कहा-यदि अंग फेरों और कन्यादान का काम भी करा दें तो आपकी बडी कृपा होगी। हम इसके बदले में बहुत-सा धन देंगे। 

उन्होंने यह भी स्वीकार कर लिया और तब विवाह कार्य बहुत अच्छी तरह से हो गया। फेरों के बाद देवों के पूजन के बाद से वर-कन्या एक कमरे में ले जाये गये। वहाँ का कार्य समाप्त होने पर वर जाने लगा तो उसने अवसर देखकर राजकुमारी की चूँदरी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे, वह एक आँख से काना है। मैं तो काशीजी पढ़ने जा रहा हूँ। 

उस राजकुमारी ने जब अपनी चुन्दरी पर ऐसा लिखा पाया तो उसने काने राजकुमार के साथ जाने से इन्कार कर दिया और कहा कि यह मेरा पति नहीं है, मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है। मेरा पति तो काशीजी पढ़ने गया है। राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात बिना बहू के वापिस चली गई। 

इधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुँच गये। वहाँ जाकर उन्होंने यज्ञ करना शुरु कर दिया। जब लड़के की आयु 12 वर्ष की हो गई तब उस दिन उन्होंने यज्ञ रच रखा था। लड़के ने अपने मामाजी से कहा मामाजी! आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है। यह सुन मामा ने कहा कि अन्दर जाकर सो जाओ। 

वह लड़का अन्दर जाकर सो गया। वहाँ थोड़ी देर में उसके प्राण पखेरु निकल गये। जब उसके मामा ने आकर देखा कि लड़का तो मरा पड़ा है। तब उसने सोचा कि मैं यदि रोना-पीटना मचा दूँगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जायेगा।अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त करके ब्राह्मणों को विदा करके रोना-पीटना आरम्भ कर दिया। 

संयोगवश उस समय शिवजी महाराज और पार्वतीजी उधर से जा रहे थे। जब उन्होंने जोर-जोर से रोने-चिल्लाने की आवाज सुनी तो पार्वतीजी शिवजी से आग्रह करके उसके पास गयी। वहाँ एक सुन्दर लड़के को मरा हुआ देखकर कहने लगीं कि यह तो उसी सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से पैदा हुआ था।! शिवजी ने कहा कि हाँ, पार्वती जी ! इसकी आयु तो इतनी ही थी। पार्वतीजी ने कहा कि महाराज ! इस बालक को आयु दो, नहीं तो इसके माता-पिता तड़प-तड़प कर मर जायेंगे। 

पार्वतीजी के इस प्रकार बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको वरदान दिया और शिवजी महाराज की कृपा से लड़का जीवित हो गया। शिव-पार्वती कैलाश चले गये। अब वह लड़का और उसका मामा उसी प्रकार यज्ञ कराते हुए अपने घर की तरफ चल पड़े रास्ते में उसी शहर में आये जहाँ पर उस लड़के का विवाह हुआ था।

वहाँ पर आकर जब उन्होंने यज्ञ आरम्भ कर दिया तो उस लड़के के श्वसुर राजा ने उसको पहचान लिया और अपने महलमें लाकर उसकी बड़ी खातिर की। साथ ही बहुत सा धन और दासियों के सहित बड़े ही आदर और सत्कार के साथ अपनी लड़की और जमाई को विदा किया। जब वह अपने शहर के निकट आये तो उसके मामा ने कहा कि पहले मैं तुम्हारे घर जाकर खबर दे देता हूँ। 

उस समय उसके माता-पिता अपने घर की छत पर बैठे हुए थे। उन्होंने यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल घर आया तो राजी-खुशी नीचे उतर जायेंगे नहीं तो छत से गिरकर अपने प्राण दे देंगे। इतने में उस लड़के के मामा ने आकर यह समाचार दिया कि तुम्हारा पुत्र आ गया है उन्हें विश्वास नहीं आया। तब मामा ने शपथपूर्वक कहा कि तुम्हारा पुत्र अपनी स्त्री तथा बहुत सा धन साथ लेकर आया है तो सेठ ने बड़े आनन्द के साथ उनका स्वागत किया। अब वह बड़ी ही प्रसन्नता के साथ रहने लगे। जो कोई भी सोमवार को व्रत करता है तथा इस कथा को पढ़ता या सुनता है, उसकी समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।

॥ बोलो शंकर भगवान् की जय ॥

आरती जय शिव ओंकारा | Shiv Ji Ki Aarti Lyrics.

आरती जय शिव ओंकारा | Shiv Ji Ki Aarti Lyrics.

जै शिव ओंकारा, हर शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा ।। जय.

एकानन चतुरानन पंचानन राजै।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ।। जय.

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज ते सोहे ।

त्रिगुण रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ।। जय.

अक्षमाला वनमाला मुंडमाला धारी ।

चन्दन मृगमद सोहे भाले शुभकारी ।। जय.

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे ।

ब्रह्मादिक सनकादिक भूतादिक संगे ।। जय.

लक्ष्मी वर गायत्री पार्वती संगे ।

अरधंगी अरु त्रिभंगी सिर गंगे ।। जय.

करके मध्य कमंडल चक्र त्रिशुल धर्ता ।

जगकरता जगहरता जगपालन करता ।। जय.

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

प्रणवक्षर अनुमध्ये ये तीनों एका ।। जय.

त्रिगुणात्मक की आरती जो कोई गावै ।

कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पत्ति पावै।। जय.

सोमवार व्रत के किन मन्त्रों का जाप करना चाहिए ?

1. ।। ओम तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात ।।
2. शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।
ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिमहिर्बम्हणोधपतिर्बम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।।

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