निर्वाण का अर्थ है “निराकार”।
श्री निर्वाणषट्कम् इस बारे में है कि – आप यह या वह नहीं बनना चाहते। यदि आप यह या वह नहीं बनना चाहते, तो आप क्या बनना चाहते हैं? आपका मन यह नहीं समझ सकता, क्योंकि आपका मन हमेशा कुछ न कुछ बनना चाहता है। अगर मैं कहूं, “मैं यह नहीं बनना चाहता, मैं वह नहीं बनना चाहता,” तो आप सोचेंगे, “अरे, कोई महान चीज की बात कर रहे हैं!” महान नहीं। “अरे, तो क्या रिक्तता?” रिक्तता भी नहीं। “शून्यता?” शून्यता भी नहीं।
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हजारों साल पहले आदि शंकर द्वारा रचित निर्वाण षट्कम आज भी श्रोताओं को मुग्ध करता है। यह हमें राग व रंगों से परे के आयाम में ले जाता है...
सद्गुरु के एक लेख के अनुसार निर्वाण षट्कम का मूल भाव वैराग्य है। यह मंत्र ब्रह्मचर्य मार्ग का समानार्थी माना गया है। इसकी ध्वनि हमारे अंतरतम की गहराइयों में हलचल पैदा कर देती है। ईशा योग केंद्र आने वाले बहुत से लोग इसे सुन कर आंसुओं से भर गए। तो आइये स्मरण करें श्री निर्वाणषट्कम्
श्री निर्वाणषट्कम् (Sri Nirvana Shatakam lyrics)
मनो-बुद्धि-अहंकार चित्तादि नाहं
न च श्रोत्र-जिह्वे न च घ्राण-नेत्रे ।
न च व्योम-भूमी न तेजो न वायु
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ १॥
न च प्राण-संज्ञो न वै पञ्च-वायु:
न वा सप्त-धातुर्न वा पञ्च-कोष: ।
न वाक्-पाणी-पादौ न चोपस्थ पायु:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ २ ॥
न मे द्वेष-रागौ न मे लोभ-मोहौ
मदे नैव मे नैव मात्सर्य-भाव: ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्ष:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ ३ ॥
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं
न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञा: ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ ४ ॥
न मे मृत्यु न मे जातिभेद:
पिता नैव मे नैव माता न जन्मो ।
न बन्धुर्न मित्र: गुरुर्नैव शिष्य:
चिदानंद-रूपं शिवो-हं शिवो-हं ॥ ५॥
अहं निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुत्त्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणां ।
सदा मे समत्त्वं न मुक्तिर्न बंध:
चिदानंद रूपं शिवो-हं शिवो-हं॥ ६॥
श्री निर्वाणषट्कम् (Sri Nirvana Shatakam lyrics English)
Mano-Buddhy-Ahangkaara Cittaani Naaham
Na Ca Shrotra-Jihve Na Ca Ghraanna-Netre |
Na Ca Vyoma Bhuumir-Na Tejo Na Vaayuh
Cid-Aananda-Ruupah Shivo[a-A]ham Shivo[a-A]ham ||1||
Na Ca Praanna-Samjnyo Na Vai Pan.ca-Vaayuh
Na Vaa Sapta-Dhaatuh Na Vaa Pan.ca-Koshah |
Na Vaak-Paanni-Paadam Na Copastha-Paayu
Cid-Aananda-Ruupah Shivo[a-A]ham Shivo[a-A]ham ||2||
Na Me Dvessa-Raagau Na Me Lobha-Mohau
Mado Naiva Me Naiva Maatsarya-Bhaavah |
Na Dharmo Na Ca-Artho Na Kaamo Na Mokssah
Cid-Aananda-Ruupah Shivo[a-A]ham Shivo[a-A]ham ||3||
Na Punnyam Na Paapam Na Saukhyam Na Duhkham
Na Mantro Na Tiirtham Na Vedaa Na Yajnyaah |
Aham Bhojanam Naiva Bhojyam Na Bhoktaa
Cid-Aananda-Ruupah Shivo[a-A]ham Shivo[a-A]ham ||4||
Na Mrtyur-Na Shangkaa Na Me Jaati-Bhedah
Pitaa Naiva Me Naiva Maataa Na Janmah |
Na Bandhurna Mitram Gurur-Na-Iva Shissyam
Cid-Aananda-Ruupah Shivo[a-A]ham Shivo[a-A]ham ||5||
Aham Nirvikalpo Niraakaara-Ruupo
Vibhu-Tvaacca Sarvatra Sarve[a-I]ndriyaannaam |
Na Caa-Sanggatam Naiva Muktirna Meyah
Cid-aananda-ruupah Shivo[a-A]ham Shivo[a-A]ham ||6||
श्री निर्वाणषट्कम् की रचना किसने की है ?
श्री निर्वाणषट्कम् की रचना सद्गुरु आदि शंकराचार्य जी कई हजारो वर्षों पहले की थी.
श्री निर्वाणषट्कम् किस देवता के लिए है ?
श्री निर्वाणषट्कम् में भगवन शंकर की स्तुति की जाती है.
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