सूर्य को जल क्यों चढ़ाते हैं ?

क्या आपको लगता है आप अपनी आर्थिक तंगी से परेशान से होते जा रहे हैं या फिर आपका बनता हुआ काम बिगड़ता ही जा रहा है। बीमारियां आपके घर में आकर बसती जा रही हैं तो हमारे हिसाब से आपको रोजाना सिर्फ एक काम करना चाहिए। ज्योतिष के मुताबिक अगर ये काम आप नियमित रूप से प्रतिदिन करते हैं तो आप सारी बाधाएं पार कर लेंगे और आपका जीवन सुखमय और वृद्धि जनक होने लगेगा|  

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य को जल दिये बिना अन्न ग्रहण करना पाप है। अलंकारिक भाषा में वेदों में कहा है संध्या के समय सूर्य को दिए गए अर्घ्य के जलकण वज्र बनकर असुरों का नाश करते हैं ।

नित सूर्य को जल चढ़ाने से हमारे व्यक्तित्व पर भी अधिक सीधा असर पड़ता है। क्यूंकि सूर्य को सभी ग्रहों के स्वामी कहा गया है, इसलिए अगर वो प्रसन्न हो जाएं तो बाकी के ग्रह अपने आप कृपा बरसाएंगे ऐसा हमारे कुछ पूर्वजों ने कहा है और पुराणों में भी सूर्य की उपासना को सभी रोगों को दूर करने वाला बताया गया है।

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तो वहीं हिंदू धर्म के मुताबिक सूर्य को जल देने से आपके जीवन में संतुलन आता है। और संतुलित जीवन सफलता की कुंजी है तो ऐसे में सूर्य को जल चढ़ाना और उपासना दोनों ही महत्वपूर्ण मानी जाती है|

विज्ञान की दृष्टि में मनुष्य के शरीर के अन्दर असुर, टाइफाइड, निमोनिया, टी.बी. आदि को कहा गया है । इनको नष्ट करने की दिव्य शक्ति सूर्य की किरणों में होती है । एन्थ्रेक्स के वायरस जो कई वर्षों के शुष्कीकरण से नहीं मिटते, वे सूर्य की किरणों से एक-डेढ़ घंटे में मर जाते हैं । हैजा, निमोनिया, चेचक आदि के कीटाणु पानी में उबालने पर भी नहीं मरते किन्तु सूर्य की प्रभात कालीन किरणें इन्हें शीघ्र ही नष्ट कर देती हैं । सूर्य को अर्घ्य देते समय साधक के ऊपर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं

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शास्त्रों के अनुसार प्रातः काल पूर्व की ओर मुख करके तथा संध्या के समय पश्चिम की ओर मुख करके जल देना चाहिए । जल के लोटे को छाती के बराबर ऊँचाई रखकर जल गिराएँ और लोटे के उभरे भाग को तब तक देखते रहें जब तक जल समाप्त न हो जाए। ऐसा करने से मोतिया बिन्द नहीं होता ।


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