श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा | Vindhyeshvari Chalisa

Vindhyeshvari Chalisa Lyrics –
श्री शिव पुराण के अनुसार मां विंध्यवासिनी (विन्ध्येश्वरी) को सती माना गया है। सती होने के कारण उन्हें वन दुर्गा भी जाता है। कहते हैं कि माँ आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं, लेकिन विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है। हमारे भारत में विंध्यवासिनी देवी का चमत्कारिक मंदिर विंध्याचल की पहाड़ी श्रृंखला के मध्य (मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश) पतित पावनी गंगा के कंठ पर बसा हुआ है। प्रयाग एवं काशी के मध्य विंध्याचल नामक तीर्थ है जहां मां विंध्यवासिनी निवास करती हैं। यह तीर्थ भारत के उन 51 शक्तिपीठों में प्रथम और अंतिम शक्तिपीठ है जो गंगा तट पर स्थित है।
चलिए स्मरण करते है विन्ध्येश्वरी स्तोत्र और विन्ध्येश्वरी चालीसा हिंदी में :-

श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा हिंदी
Vindhyeshvari Chalisa Hindi Lyrics.

– दोहा –

नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब ।

सन्तजनों के काज में, करती नहीं विलम्ब ।।

जय जय जय विन्ध्याचल रानी। आदिशक्ति जग विदित भवानी।।

सिंहवाहिनी जय जय’ जगमाता । जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता ।।

कष्ट निवारिणि जय जग देवी। जय जय सन्त असुरासुर सेवी।।

महिमा अमित अपार तुम्हारी। शेष सहस मुख वर्णत हारी ।।

दीनन के दुःख हरत भवानी। नहिं देख्यों तुम सम कोई दानी ।।

सब कर मनसा पुरवत माता। महिमा अमित जगत विख्याता ।।

जो जन ध्यान तुम्हारो लावै । सो तुरतहिं वांछित फल पावै ।।

तुम ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी। तुम ही शारदा अरु ब्राह्मणी ।।

रमा राधिका श्यामा काली। तुम ही मातु सन्तन प्रतिपाली ।।

उमा माधवी चण्डी ज्वाला । बेगि मोहि पर होहु दयाला ।।

तुम ही हिंगलाज महारानी। तुम ही शीतला अरु विज्ञानी ।।

दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता। तुम ही लक्ष्मी जग सुखदाता ।।

तुम ही जाह्नवी अरु उत्राणी । हेमावती अम्बे निर्वाणी ।।

अष्टभुजी वाराहिनी देवी । करत विष्णु शिव जाकर सेवी ।।

चौसट्ठी देवी कल्याणी । गौरी मंगला सब गुण खानी ।।

पाटन मुम्बा दन्त कुमारी । भद्रकाली सुन विनय हमारी।।

वज्रधारिणी शोक नाशिनी। आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी ।।

जया और विजया बैताली । मातु संकटी अरु विकराली ।।

नाम अनन्त तुम्हार भवानी। बरनै किमी मानुष अज्ञानी ।।

जा पर कृपा मातु तव होई। तो वह करै चहै मन जोई।।

कृपा करहु मो. पर ध्याना । ताकर सदा होय करावै ।

जो नर कहँ ऋण होय अपारा। सो नर पाठ करे शत बारा ।।

निश्चय ऋणमोचन होइ जाई। जो नर करै मन लाई ।।

अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावै । या जग में सो बहु सुख पावै।।

जाको व्याधि सतावै भाई। जाप करत सब दूरि पराई ।।

जो नर अति बन्दी महं होई। बारह हजार पाठ कर सोई ।।

निश्चय बन्दी ते छुटि जाई । सत्य वचन मम मानहु भई ।।

जा पर जो कछु संकट होई । निश्चय देवहिं सुमिरै सोई ।।

जा कहं पुत्र होय नहिं भाई । सो नर या विधि करै उपाई ।।

पाँच वर्ष सो पाठ करावै। नौरातर महँ विप्र जिमावै ।।

निश्चय होहि प्रसन्न भवानी । पुत्र देहिं ता कहं गुणखानी ।।

ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै । विधि समेत पूजन करावावै।।

नितप्रति पाठ करै मन लाई। प्रेम सहित नहिं आन उपाई।।

यह श्री विन्ध्याचल चालीसा। रंक पढ़त होवै अवनीसा ।।

यह जनि अचरज मानहु भाई। कृपा दृष्टि जापर होई जाई ।।

जय जय जय जग मातु भवानी। कृपा करहु मो पर जन जानी ।।


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