विपत्तियाँ केवल कमजोर, कायर, डरपोक और निठल्ले व्यक्तियों को ही डराती व पराजित करती हैं और उन लोगों के वश में रहती हैं, जो उनसे जूझने के लिए कमर कसकर तैयार रहते हैं।
ऐसे व्यक्ति भली-भाँति जानते हैं कि जीवन यह फूलों की सेज नहीं वरन् रणभूमि है, जहाँ हमें प्रतिक्षण दुर्भावनाओं, दुष्प्रवृत्तियों और आपत्ति से निडर होकर जूझना है।
वे इस संघर्ष में सूझबूझ से काम लेते हुए अपना जीवन-क्रम तदानुसार ढाँचे में ढालने का प्रयास करते रहते हैं और सदैव इस बात का स्मरण रखते हैं कि किसी भी तात्कालिक पराजय को पराजय न माना जाये, बल्कि हर पराजय से उचित शिक्षा ग्रहण कर नये मोर्चे पर युद्ध जारी रखा जाये और अन्तिम विजयश्री का वरण किया जाये।
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इस प्रकार के दृढ़ संकल्प वाले कर्मठ व्यक्ति कभी अपने जीवन में निराश नहीं होते, अपितु वे दूसरे निराश एवं हताश व्यक्तियों के लिए प्रेरणा के केन्द्र बन जाते हैं।
बिना संकटों के मनुष्य का जीवन निखर नहीं सकता और न उसमें त्याग, तितिक्षा एवं सहिष्णुता का ही विकास हो पाता है। अतः कठिनाईयों को चुनौती समझकर उनका हँसते- हँसते सामना करना सीखिए। फिर आप देखेंगे कि ज्यों ही हम विपत्तियों का सामना करने के लिए कटिबद्ध होंगे, त्यों ही विपत्तियाँ दुम दबाकर भाग खड़ी होंगी, संकटों के सब बादल छँट जायेंगे और परिस्थिति निष्कंटक होकर हमारे लिए अनुकूल हो जायेगी …।।
“रात बहुत गहरी है तो समझ लीजिए अब उजाला होने वाला ही है।”
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